भारत में अक्सर यह बात उठती रही है कि मुस्लमानों की जनसंख्या वृद्धि दर और सरकारों द्वारा वोट की राजनीतिवश उनके धार्मिक नियमों को अधिक संरक्षण दिए जाने के कारण वह दिन दूर नहीं, जब भारत मुस्लिम बाहुल्य वाला देश हो जाएगा। मेरे विचार से यह बात ऐसी सोच रखने वाले लोगों की नकारात्मक सोच के सिवाय और कुछ नहीं है।
आइए इस तथ्य की जांच–पड़ताल करते हैं। भारत की जनगणना 2011 एवं 1951 के अनुसार भारत में विभिन्न धर्मानुयायियों की तुलनात्मक आबादी निम्नवत रही है;
(आंकडे़ करोड़ में)
धर्म | अनुयायियों की संख्या2011 | % 2011 | अनुयायियों की संख्या1951 | % 1951 | % वृद्धि |
हिन्दू | 96.62 | 79.80% | 30.35 | 84.10% | 318.35% |
मुस्लिम | 17.22 | 14.23% | 03.54 | 09.80% | 486.44% |
ईसाई | 02.78 | 02.30% | 0.83 | 02.30% | 334.94% |
सिख | 02.08 | 01.72% | 0.68 | 01.89% | 305.88% |
बौद्ध | 0.84 | 0.70% | 0.27 | 0.74% | 311.11% |
जैन | 0.45 | 0.37% | 0.17 | 0.46% | 264.71% |
अन्य | 0.79 | 0.66 % | 0.16 | 0.43% | 493.75% |
कोई धर्मनहीं | 0.29 | 0.24 % | 0.11 | 0.29% | 263.64% |
योग | 121.07 | 100.00% | 36.11 | 100.00% | 335.28% |
उपरोक्त आंकड़ों के अवलोकन से स्पष्ट है कि आज़ादी के बाद पिछले 60 सालों में जनसंख्या में वृद्धि का सबसे कम प्रतिशत जैन धर्म के लोगों का रहा है और सबसे अधिक वृद्धि प्रतिशत मुस्लिमों का रहा है। इसका मतलब यह कतई यह नहीं है कि भारत में मुसलमान अपनी जनसंख्या जानबूझकर बड़ी तेज़ी से बढ़ा रहे हैं ताकि भारत जल्दी ही मुस्लिम बाहुल्य राष्ट्र बन जाए। बल्कि मुस्लिम आबादी के वृद्धि के कारण कुछ और हैं।
आइए मुस्लिम आबादी वृद्धि के सम्बंध में प्रचारित उपरोक्त तथ्य की पड़ताल करते हैं। इस तथ्य की पड़ताल के लिए उन मिथकों की सत्यता की जांच करना आवश्यक है। जिनको मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार मानते हुए प्रचारित किया जाता है। यह मिथक हैं-
- मुस्लिम 4 शादियां करते हैं और लव जिहाद करके कई बच्चे पैदा करते हैं।
- मुस्लिम जनसंख्या नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन को नहीं अपनाते, बल्कि जानबूझकर जनसंख्या बढ़ाते हैं।
- पाकिस्तान में आज़ादी के समय 15% प्रतिशत हिंदू थे जो आज बस 1.5% रह गए हैं। जिसका कारण उनका कत्लेआम और धर्मांतरण है।
पहला मिथक
मुस्लिम विवाह कानून के अनुसार कुछ शर्तों के तहत कोई मुसलमान चार शादियां कर सकता है लेकिन सभी मुसलमान ऐसा करते ही हैं, यह सही नहीं है। क्योंकि भारत की जनगणना-2011 के अनुसार प्रति 1000 मुस्लिम पुरूषों के पीछे 951 महिलाएं होना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2005-06 के आंकडों के अनुसार धार्मिक आबादी के हिसाब से भारत में 2% लोग एक से अधिक वैवाहिक सम्बंधों में संलग्न पाए गए हैं।
इनमें हिंदू विवाह कानून के अनुसार एक विवाह की अनुमति के बावजूद हिंदुओं में यह प्रतिशत 1.77% और मुस्लिम कानून के अनुसार बहुपत्नी की अनुमति के रहते मुस्लिमों में यह प्रतिशत 2.55% है।
यह आंकड़ा मुस्लिमों के चार विवाह करने के मिथक को गलत साबित कर देता है। इसके अतिरिक्त एक आंकडे़ के अनुसार भारत में केवल 2.1% शादियों का अंतरधार्मिक शादी होना और उनमें में से लवजिहाद यानी जबरन या धोखा देकर की गई अंतरधार्मिक शादियों का प्रतिशत और भी कम होना इस मिथक को झुठलाता ही है।
दूसरा मिथक
मुसलमान परिवार नियोजन नहीं अपनाते, इसके सम्बंध में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2005-06 के आंकडों के अनुसार वर्ष 1991-92 में 22% मुस्लिम महिलाएं परिवार नियोजन अपना रही थी, जो 2005-06 में बढ़कर 36.4% हो गया।
वहीं, 1991-92 में 37.7% हिंदू महिलाएं परिवार नियोजन अपना रहीं थीं, जो 2005-06 में बढ़कर 50.2% है। इससे यह स्पष्ट है कि मुस्लिम महिलाओं में परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता हिंदू महिलाओं की तुलना में काफी कम है लेकिन उनमें वृद्धि ज़्यादा है।
इस प्रकार मुसलमानों द्वारा परिवार नियोजन ना अपनाने वाला मिथक उचित नहीं है। जहां तक मुसलमानों द्वारा जानबूझकर जनसंख्या बढ़ाने की बात है, यह केवल कपोल कल्पना मात्र है, क्योंकि यह सर्वमान्य तथ्य है कि जनसंख्या वृ्द्धि का प्रमुख कारण-जन्म दर का मृत्यु दर से अधिक होना है और अन्य गौण कारणों में धर्मांतरण, शरणार्थी समस्या एवं घुसपैठियों की संख्या में वृद्धि होना है। दूसरी ओर यह भी सच है कि जनसंख्या वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार उपरोक्त सारे कारक लोगों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति पर निर्भर करते हैं। यानी समाज का शिक्षा स्तर, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा जैसे सामाजिक-आर्थिक कारण जनसंख्या को प्रभावित करते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 1991-92 में मुस्लिम और हिंदू प्रजनन दर क्रमश: 4.4 और 3.3 थी, जो घटकर 2005-06 में क्रमश: 3.4 और 2.59 रह गई है। इस प्रकार यह सही है कि अभी भी मुसलमानों की प्रजनन दर जनसंख्या स्थिरता मानक दर 2.1 और हिंदू प्रजनन दर से अधिक है लेकिन मुस्लिम की जनसंख्या वृद्धि दर अधिक होने का कारण केवल उनकी प्रजनन दर का अधिक होना नहीं है।
बल्कि मुसलमानों का पुरूष-महिला अनुपात (939 के सापेक्ष 951) औसत जीवन प्रत्याशा (65 के सापेक्ष 68) हिंदुओं से अधिक है। शिशु मृत्यु दर (76 के सापेक्ष 70) कम होना भी है। इसके अलावा एक अध्ययन में यह पाया गया है कि अशिक्षा या कम शिक्षा वाले समाज में बच्चे पैदा करने की प्रवृति तुलनात्मक अधिक पाई जाती है। यह बात हमारी धार्मिक जनसंख्या एवं साक्षरता के आंकड़ों से भी प्रमाणित है। भारत की जनगणना-2011 के आंकड़ों को आधार मानकर सरकार द्वारा जारी किए गए धर्म, लिंग आधारित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सर्वाधिक साक्षरता दर 86.40 प्रतिशत जैन समुदाय की है। जबकि सबसे कम साक्षरता प्रतिशत 57.3% मुस्लिमों का है। इसके अलावा हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध की साक्षरता प्रतिशत क्रमश: 63.6, 74.3, 67.5 और 71.8 प्रतिशत है। इस प्रकार धार्मिक साक्षरता और धार्मिक जनसंख्या के आंकड़ों से यह प्रमाणित होता है कि जनसंख्या वृद्धि का प्रमुख कारक निरक्षरता है। जिसके कारण ही सर्वाधिक निरक्षरता प्रतिशत वाले मुस्लिम में जनसंख्या वृद्धि दर सर्वाधिक है। वहीं, सर्वाधिक साक्षर जैनियों में जनसंख्या वृद्धि दर न्यूनतम है। इसी प्रकार सच्चर कमेटी की रिपोर्ट 2006 के अनुसार वर्ष 2004-05 में भारत में 22.7% आबादी औसत गरीबी रेखा से नीचे है। जबकि मुसलमानों में यह आंकड़ा 31% है। इसका सीधा मतलब है कि मुसलमानों में शिक्षा की कमी और गरीबी अधिक जनसंख्या के लिए उत्तरदायी है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मुस्लिम आबादी बढ़ने का कारण उनकी सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थितियों का उन्नत और अच्छा ना होना है और उनके द्वारा मुस्लिम बाहुल्य देश बनाने के उद्देश्य से जनसंख्या बढ़ाने वाली बात आधारहीन है।
तीसरा मिथक
प्रचारित आंकड़ों की सत्यता पर कोई मत बनाने से पूर्व यह जानना ज़रूरी है कि सन् 1947 में भारत से अलग हुए तत्कालीन पाकिस्तान में वर्तमान पाकिस्तान के साथ बांगलादेश यानी पूर्वी पाकिस्तान भी शामिल था। यह सही है कि देश विभाजन के बाद 1951 में हुई जनगणना के अनुसार तत्कालीन पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम आबादी 14.2% थी, जिसमें वर्तमान पाकिस्तान (पश्चिमी पाकिस्तान) में 3.44% तथा वर्तमान बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) में 23.2% थी। जबकि 1998 के आंकड़ों के अनुसार वर्तमान पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम आबादी 1.85% या 2.4 मिलियन और बांग्लादेश में 10.7% रह गई है। इस प्रकार गैर-मुस्लिम आबादी में गिरावट बांग्लादेश में अधिक हुई है। जिसका प्रमुख कारण हिंदुओं का बांग्लादेश से माइग्रेशन करके भारत आना है। इस प्रकार उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में मुसलमानों द्वारा जानबूझ कर जनसंख्या बढ़ाकर भारत को मुस्लिम बाहुल्य राष्ट्र बनाने वाली बात सही नहीं है, बल्कि जनसंख्या वृद्धि के वास्तविक कारण सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक परिस्थितियां हैं।
कैसे होगा सुधार?
इन परिस्थितियों में समय बीतने के साथ हुए बदलाव के कारण भारत में मुस्लिम आबादी की 1961-71 के दशक की वृद्धि दर 33.19% के सापेक्ष 2001-11 में घटकर 23.40% रह गई है। ऐसी दशा में एक-दूसरे पर दोषारोपण करने के बजाय जनसंख्या वृद्धि के नियंत्रण हेतु औसत आयु में वृद्धि लाने के उद्देश्य से स्वास्थ्य सुविधाओं को अत्याधुनिक, गुणवत्तापरक और सर्वसुलभ बनाकर मृत्यु दर में कमी लानी होगी। वहीं, दूसरी ओर यौन शिक्षा तथा जनसंख्या के प्रति जागरूकता लाकर प्रजनन दर में भी तदनुसार सापेक्षिक कमी लाने की आवश्यकता है। इसके अलावा जनसंख्या वृद्धि के अन्य सामाजिक और आर्थिक कारणों के प्रति भी गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है। आज़ादी के बाद हमने मृत्यु दर को सफलतापूर्वक कम करके औसत आयु में वृद्धि करने में तो सफलता प्राप्त कर ली है। यही काम प्रजनन दर के नियंत्रण हेतु अपेक्षाकृत नहीं किया जा सका है। प्रजनन दर के सम्बंध में हुई एक रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार भारत की प्रजनन दर (2.35) अभी भी यू.के.(1.86), चीन(1.6), जापान(1.43), यू.ए.ई,(1.73), नेपाल (1.96), रूस (1.6) आदि देशों से अधिक है। जबकि भारत की प्रजनन दर विश्व की औसत दर 2.42 से कम होना और जनसंख्या स्थिरता मानक दर 2.1 के काफी करीब होना एक शुभ संकेत ज़रूर है।
संदर्भ:-
1. भारत के जनगणना2011 के ऑकडे
2.परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण
रिपोर्ट 2005-06
3.Scroll.in पर उपलब्ध लेख दि.08/07/2014-Muslim woman& surprising fact of poligamy in India
4.satyagrah.scroll.in पर उपलब्ध लेख दि.03/03/2017 – क्या भारत में कभी मुस्लिम आबादीहिन्दुओं से ज्यादा भी हो सकती है?
5.प्यू रिसर्च सेंटर अमेरिका की जनसंख्या रिपोर्ट
6.इंडिया टूडे, इंडिया स्पेन्ड, द वायर, क्लैरीऑन इंडिया, इंडिया टूडे, टाइम्स ऑफ इंडिया, वर्ल्डोमीटर