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क्या ट्विटर पर #PMModi_rojgarDo ट्रेंड कराने भर से रोज़गार मिल जाएगा?

#PMModi_rojgarDo ट्रेंड करवाने से रोज़गार दे देंगे मोदी जी? प्रधानमंत्री जी समझाइए ना इन लोगों को, ऐसी दस हैशटैग ट्रेंड करवाना तो आपके बाए हाथ का खेल है। नौकरी ट्रेंड, हैशटैग, लाइक-डिसलाइक, रिट्वीट से नहीं सड़क से संसद तक वाले नियम से मिल सकती है।

हां, मिल सकती है लिखना पड़ रहा है, क्योंकि अब तो इतनी देर हो चुकी है कि उससे भी सरकार को पता नहीं कुछ फर्क पड़ेगा कि नहीं। यहां यह तर्क कोई ना दे कि अभी परिस्थितियां नहीं हैं सड़क पर आने वाली, जब थी तब क्या किया गया? तब क्या रोज़गार की भरमार थी देश में?

सेलेक्टिव होकर चलने से कुछ नहीं मिलने वाला

आज सबको नौकरी के लिए हैशटैग ट्रेंड करवाना है। यह ट्रेंड कराना कितना आसान है ना? एक ट्वीट, दो-चार रिट्वीट और काम खत्म। यह भी समझना होगा कि क्यों जब सड़क पर जेएनयू, जामिया और दिल्ली विश्वविद्यालय के स्टूडेंट लाठियां खाते हैं, तो कहा जाता है कि ये तो बस बवाल चाहते हैं। तब ऐसे ट्रेंड नज़र क्यों नहीं आते हैं? सब जगह सेलक्टिव होकर चलने से कुछ नहीं मिलने वाला।

प्रतीकात्मक तस्वीर

आज आपको रोज़गार के लिए ट्रेंड चलाना है और विरोध करना है। सबका सपोर्ट चाहिए। मिल भी रहा है लेकिन जब आप जामिया और जेएनयू के पिटे बच्चों पर खुशी मना रहे थे। ठिठोलियां कर रहे थे। तब यह समझदारी कहा थी? लोकतंत्र में चीज़ें सामूहिक रूप से चलती हैं, सेलेक्टिव होकर नहीं।

आज नौकरी का मामला है तो ट्रेंड चला देंगे लेकिन जब किसी की लिंचिंग होगी, किसी को उसकी आइडेंटिटी के बेस पर पुलिस उठा लेगी, सस्ती शिक्षा मांगने पर डंडे बरसा दिए जाएंगे, कहीं किसी को उसकी जाति के आधार पर पीट दिया जाएगा, जब जमकर हिंदू-मुसलमान होगा, सरकार के विरोध में कुछ भी कहने पर एंटी नेशनल घोषित कर दिया जाएगा, तब चुप्पी साध ली जाएगी। कोई ट्रेंड नहीं, कोई ट्वीट नहीं, कोई आवाज़ नहीं। ऐसा क्यों?

हैशटैग चलाने भर से क्या हो जाता है?

चलाया तो गया #NoJEENEETExamInCovid का ट्रेंड क्या हुआ? रूक गई परीक्षा? सुन लिया सरकार ने? दरअसल जिस ट्रेंड, ट्वीट और हैशटैग का खेल आप सरकार के साथ खेल रहे हैं। इस खेल की शुरूआत ही सरकार ने की थी।

एक बार ध्यान से सोचिए कि कितने हैशटैग, ट्वीट, रिट्वीट और ट्रेंड से सरकार ने अपना फैसला बदल दिया है? साथ ही यह भी कि इससे पहले कब और किन मुद्दों पर आप अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे थे या फिर किसी के पीटने पर हंसी-ठिठोली की जा रही थी?

कोविड के इस दौर में मैं सड़क पर आकर भीड़ लगा लेने का समर्थन नहीं कर रहा हूं लेकिन हमें यह सोचना होगा कि आखिर किस पैटर्न पर चीज़ें चल रही हैं, जहां हम हैशटैग ट्रेंड कराकर खुश हो ले रहे हैं।

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