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ओजोन लेयर का छेद हमारी इम्युनिटी पर डाल सकता है बुरा असर

जब से धरती पर मानव जीवन आया है, तब से ही लोग अपने कवच की सुरक्षा करते आए हैं। फिर चाहे बात पौराणिक काल की हो, ऐतिहासिक काल की हो या फिर ग्रंथों और कथाओं में, लेकिन क्यों आज आधुनिकता की होड़ में दौड़ता मानव अपने ही कवच को तोड़ रहा है?

जब क्रिकेटर क्रिकेट खेलने के लिए मैदान में आते हैं, तब वे अपने हाथ पर क्रीम लगा कर आते हैं। इसी प्रकार जब हम घर से बाहर निकल रहे होते हैं, खासकर धूप में तब हम सनस्क्रीन लगाकर बाहर निकलते हैं, इसका केवल एक ही कारण है कि सूरज की किरणें हमारी त्वचा को प्रभावित ना करें। आज ‘विश्व ओजोन डे’ है लेकिन क्या आपको पता है कि हम इसे क्यों मनाते हैं और ओजोन क्या है?

क्या होता है ओजोन?

ओजोन हमारी धरती के ऊपर एक ऐसी परत है जो सूरज की पराबैंगनी किरणों यानी अल्ट्रावायलेट रेज़ को सीधे धरती पर पड़ने से रोकती है। 99% तक ओजोन परत अल्ट्रावायलेट किरणों को खुद सोख लेती हैं और धरती के ऊपर एक छाते का काम करती है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

दरअसल यह परत हमारे वायुमंडल में मौजूद स्ट्रेटोस्फीयर के निचले भाग की सतह होती है, जो करीब 10 किलोमीट से 50 किलोमीटर तक स्थित है। ओजोन, ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है, धरती से 30-40 किलोमीटर की ऊंचाई पर ओजोन गैस का करीब 91% हिस्सा ओजोन परत का निर्माण करता है।

इसके बारे में कब पता चला?

ओजोन परत की खोज 1913 में फ्रांस के 2 भौतिकीविद फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी। काफी शोध करने के बाद वे दोनों इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को एक परत सोख रही है, जो हमारे वायुमंडल में मौजूद है और इसी परत को ‘ओजोन परत’ का नाम दिया गया।

लेकिन आज मानवीय हस्तक्षेप के कारण वायुमंडल और हमारे पर्यावरण के अभिन्न अंग इस ओजोन परत का क्षरण हो रहा है। जी हां, तरह-तरह की गैसें हमारे इस कवच को खोखला कर रही हैं।

बदलते परिवेश में एक-दूसरे से आगे निकलने और सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त करने की होड़ में लगा मनुष्य अपने पीछे मुड़कर यह भी नहीं देख रहा कि वह अपने ही अंत का कारण बन रहा है। प्रकृति की ओर से प्रदान किया गया यह अभेद कवच आज कहीं-ना-कहीं टूटता जा रहा है। दिन पर दिन बढ़ते औद्योगिकीकरण के अंतर्गत आने वाली औद्योगिक गतिविधियां इस ओजोन परत के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।

ओजोन परत में छेद से हमारी पृथ्वी को कैसे नुकसान पहुंच रहा है?

दरअसल यह परत सीधे तौर पर हमें सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है। हमारे घर में लगे एसी, फ्रिज, आसमान में उड़ रहे हवाई जहाज, कारखानों और बड़ी फैक्ट्रियों से निकल रही जहरीली गैसें, बढ़ता प्रदूषण, पेस्टिसाइड का प्रयोग यह सभी गैसें मिलकर हमारे वायुमंडल में गर्माहट पैदा करती हैं, इन्हीं गैसों को हम ग्रीनहाउस गैस कहते हैं।

गर्माहट पैदा होने की वजह से हमारी ओजोन परत में छेद हो रहा है, छेद होने का मतलब यह नहीं कि उसके अंदर कहीं एक जगह पर गहरा गड्ढा हो रहा है, छेद का मतलब यह है कि जो मोटाई उस परत की है वह धीरे-धीरे कम हो रही है।

कारखानों से निकलती ज़हरीली गैसें, प्रतीकात्मत तस्वीर

हवाई जहाज से निकल रही नाइट्रोजन ऑक्साइड, एसी और फ्रिज से निकल रहे क्लोरोफ्लोरोकार्बन, प्रदूषण से जनित होतीं जहरीली गैसे ना केवल ओजोन के लिए बल्कि मनुष्य के जीवन चक्र पर भी असर डाल रही हैं।

यह सब नहीं रुका तो क्या होगा इसका परिणाम?

ओजोन गैस से बनी यह ओजोन परत जो हल्के नीले रंग की होती है यदि इसे बचाना है, तो मनुष्य को अपने कदम पीछे खींचने हीं होंगे। क्योंकि यदि यह सब ऐसे ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब हर दूसरा व्यक्ति स्किन कैंसर यानी त्वचा कैंसर और ऐसे कई रोगों जैसे चर्म रोग और आंखों की गंभीर बीमारियों से जूझेगा और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी खत्म हो सकती है।

यही नहीं, यदि ओजोन परत में यूं ही नकारात्मक बदलाव होते रहे तो इससे हमारी जैव विविधता पर भी खासा असर पड़ेगा। इसके साथ ही जलीय जीवन समेत वे छोटे-छोटे जीवाणु और कीट-पतंगे जो हमारे इस पर्यावरण के लिए ज़रूरी है, इनका अस्तित्व भी संकट में आ जाएगा।

‘वर्ल्ड ओजोन डे’ क्यों मनाया जाता है?

प्रतिवर्ष 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “ओजोन परत संरक्षण दिवस” यानी ओजोन डे मनाया जाता है। पर्यावरण की ओर लगातार मनुष्य के बढ़ते नकारात्मक कदम जो ओजोन पर भी बुरा असर डाल रहें है, इन्हें ध्यान में रखते हुए 80 के दशक में दुनियाभर की सरकारों ने इस पर विचार करना शुरू किया।

पूरे विश्व में इस पर कई चर्चाएं हुईं, वाद-विवाद हुए और फिर 16 सितंबर 1994 को हुई संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में यह घोषणा की गई कि प्रतिवर्ष 16 सितंबर को वैश्विक स्तर पर ओजोन संरक्षण दिवस मनाया जाएगा ताकि लोगों को ओजोन परत की महत्वता का पता चले और वें इसके प्रति जागरूक हों।

प्रतीकात्मक तस्वीर

पहला ओजोन दिवस 16 सितंबर सन 1995 में मनाया गया था, उसके बाद से हर वर्ष हम ओजोन के ऊपर चर्चा करते हैं रैलियां निकालते हैं, जागरूकता लाने का प्रयास करते हैं।

हालांकि हर्ष का विषय यह है कि पिछले कुछ वर्षों में ओजोन परत में होने वाले छेद या कहें कि ओजोन परत जो लगातार पतली होती जा रही थी, इसमें काफी हद तक सुधार आया है। 2018 की रिपोर्ट के अनुसार,

ओजोन में सकारात्मक प्रभाव देखे गए हैं। वर्तमान में चल रहे कोरोनावायरस की वजह से भी इसमें सुधार हुआ है, क्योंकि पूरे विश्व में कारखाने बंद हैं, लगभग सभी एयरलाइंस/ एयरपोर्ट भी बंद है, मनुष्य भी अपने घरों के अंदर कैद है और प्रदूषण भी ना के बराबर हो रहा है।

इस समस्या से निपटने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

आइए जाने कि संकट की ओर बढ़ती इस भयावह स्थिति से निपटने के लिए क्या किया जा रहा है और हम अपने स्तर पर क्या कर सकते हैं?
ओजोन को बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर कदम उठाए जा रहे हैं, हर देश की सरकार अपनी आवाम को इसके प्रति जागरूक कर रही है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

यह बात सही है कि हमारी अनदेखी की वजह से ओजोन को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है लेकिन कहीं-ना-कहीं क्योंकि हम भी ओजोन पर निर्भर हैं। यह हमारे लिए ज़रूरी भी है इसलिए इसके संरक्षण के लिए हमें ही आगे आना होगा और यह हमारा कर्तव्य भी बनता है।

यदि हम अपने स्तर पर प्रकृति के इस अमूल्य उपहार को बचाने के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो हमें यह सब करना होगा:

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