हां मैं हूं अलग, पर गलत नहीं,
हां कुछ कमियां हैं मुझमें, पर अच्छाईयां भी हैं कई,
आप सब जैसे साधारण मैं नहीं,
लेकिन असाधारण होना कोई बुरी बात भी तो नहीं,
हां प्रकृति ने बनाया है मुझे कुछ अलग,
लेकिन उसी प्रकृति ने ज़रूर दिया होगा मुझे कुछ विशेष हुनर,
हां मैं हूं अलग, पर गलत नहीं।
है मेरे जैसे कई असाधारण बच्चे बड़े और बूढ़े,
कुछ अपाहिज, कुछ गूंगे, बहरे या अंधे,
शारीरिक या मानसिक, विकलांगता हो कोई भी,
असमर्थ नहीं कोई, अपार क्षमता है सभी की,
बस चाहिए एक समान अपनापन और प्यार।
पढ़ना है हमें साधारण स्कूल में, करना है हमें साधारण व्यवहार,
कोई करता है जब हमें साधारण लोगों या जगहों से अलग,
मानो हम इंसान नहीं, प्राणी है कोई अलग ,
पर अपनापन, प्यार, हुनर, भावनाएं हममें भी कम नहीं,
हां हम हैं अलग, पर गलत नहीं।
सिर्फ विकलांग या असाधारण नहीं,
अनेकों हैं जिन्हे यह विश्व स्वीकारता नहीं,
गोरों के देश में काले, या कालों के देश में गोरे,
अनेक रंग में बंट जाते हम, फिर भले ही हो सभी भूरे,
एक जाती दूसरी जाति को,
या कोई धर्म दूसरे धर्म को,
एक इंसान एक इंसान को,
जब समझेगा ना सभी को अपना,
मुस्कुराएगा यह हमारी छत जो आसमान,
पूरा होगा तब उसका इस विश्व एक घर का सपना।