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कोविड-19 का प्रभावः दक्षिणी राजस्थान के क्लिनिक्स पर डॉक्टर्स ने टयूबरक्लोसिस एवं बच्चों क

कोविड-19 का प्रभावः दक्षिणी राजस्थान के क्लिनिक्स पर डॉक्टर्स ने टयूबरक्लोसिस एवं बच्चों के पोषण को देखा और इसके भेद को स्पष्ट किया।

कोविड-19 का प्रभावः परिवार और समुदाय की स्थितियां लगातार नाजुक बनीं हुई, परामर्श, हेल्थकेयर एवं पूरक पोषाहार अतिआवश्यक है।

 

 

भारत में 30 जनवरी को SARS-COV-2 का पहला मामला खबर में आया था और इसके परिणाम स्वरूप भारत सरकार ने तत्काल प्रभाव से 24 मार्च की मध्य रात्रि को संम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी। यातायात को बन्द करते हुए इस पर सख्ती शिकंजा कस दिया गया। इस सख्त निर्णय के परिणाम स्वरूप लाखों प्रवासी शहरों में  फस गए। इस दौरान इनकी मजदूरी मारी गई, रोजगार खत्म हो गया, घर-परिवार से दूर हो गए एवं भोजन की कमी से जूझने लगे। इन कठिन परिस्थितियों के मद्देनजर लाखों प्रवासी मजदूरों ने कोसों दूर अपने घर वापसी के लिए पैदल एवं साइकिल के द्वारा जाना शुरू कर दिया। इस बीच रास्ते में उन्होंने कई परेशानियों का सामना किया जैसेः पैदल चलने की थकावट, वाहनों की दुर्घटना, लाॅकडाउन का उल्लंघन करने के चलते पुलिस कार्यवाही का सामना आदि….

अन्ततः 10.4 मिलियन भारतीयों ने शहरों को छोड दिया एवं गांव स्थित अपने घर को लौट आएं। (सरकारी आंकलन के अनुसार)

परन्तु इसी दौरान जब वे अपने घर पहुँचे तो प्रवासियों और उनके परिवारों को बहुत ही भयंकर विपत्तियो  का सामना करना पड़ा। अकस्मात इनके रोजगार छिन जाने व खत्म हो जाने के कारण इनकी मजदूरी मारी गई, घर में भोजन व जरूरत के राशन की कमी होने लगी एवं कोरोना के कारण डर एवं लांछन से गुजरना पड़ा। कई व्यक्ति जो बीमार थे वह इलाज के लिए नहीं पहुँच पा रहे थे क्योकि लॉकडाउन के कारण सार्वजनिक एव निजी क्षेत्र की सभी सामान्य स्वास्थ्य सेवाएं बन्द कर दी गई थी या आंशिक रूप से संचालित थी। इसके परिणाम स्वरूप आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं जैसे कि टीकाकरण, अनुसंधान, टयूबरक्लोसिस, कैंसर की निरंतर देखभाल बहुत ही प्रभावित हुई।

लॉकडाउन समाप्ति के साथ ही जैसा की अपेक्षित था कि “अन् लॉकिंग“ के साथ-साथ समस्याएँ व कष्ट कम होगें एवं जन-जीवन बेहतर रूप से बहाल होगा। हालांकि जैसा कि हमने देखा दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य गांवों में प्रवासियों के कष्ट व विपत्तियो अगले छह माह तक इसी प्रकार बने रहे जिस प्रकार की लाकडाउन लागू होने के समय थे। रोजगार का अभाव, राशन की कम उपलब्धता, बाधित यातायात, स्थानीय स्तर पर रूक-रूक कर अतंराल पर लगने वाला लाॅकडाउन, अवरूद्ध हेल्थ केयर, आंशिक रूप से संचालित सेवाओं आदि ने स्वास्थ्य एवं इसके कल्याण पर गहरी चोट पहुँचाई।

कम जमीन, छोटी कृषि-जोत, अनियमित वर्षा, स्थानीय स्तर पर रोजगार की अनुपलब्ध्ता आदि के कारण दक्षिणी राजस्थान स्थित इस ग्रामीण इलाके से बड़ी संख्या में प्रवासी पुरूष अहमदाबाद, सूरत और मुम्बई जैसे बडे़ शहरों में रोजगार के लिए पलायन करते है। दक्षिणी राजस्थान स्थित उदयपुर जिले के दूरदराज ग्रामीण इलाको में जहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी है वहाँ पर हमने छह गैर लाभकारी प्राइमरी हेल्थकेयर क्लिनिक्स का एक नेटवर्क संचालित किया है। इन्हें अमृत क्लिनिक कहा जाता है। यह क्लिनिक्स कम दाम पर गुणवत्तापूर्ण इलाज किया जाता है इसके साथ ही बीमारियों की रोकथाम, संवर्धनात्मक और उपचारात्मक स्वास्थ्य की देखभाल की जाती है। अलग-थलग एकांकी रूप से बसे हुए इस समुदाय को प्रत्येक क्लिनिक लगभग 12000 की आबादी को अपनी सेवाएं उपलब्ध करवाता है जिसमें की 90 % आदिवासी है। यहाँ लगभग 60% घरों से कम से कम एक व्यक्ति शहर में रोजगार के लिए प्रवास पर जाता है।

स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध करवाने के बीच हमारे पत्यक्ष अनुभव के आधार पर हम इस समुदाय के बारे में यह कह सकते है कि कैसे यह समुदाय और प्रवासी परिवार इस महामारी एवं इसके दुष्परिणामों से प्रभावित होकर लगातार काफी नाजुक दौर से गुजर रहा है। यह स्पष्ट है कि एक लम्बे समय तक लगातार इन पर ध्यान देने वं सहयोग करने की आवश्यकता बनी रहेगी।

ट्यूबरक्लोसिस व एच.आई.वी. पर प्रभाव:

प्रवासी समुदाय के परिवारों से हमने बडी संख्या में ट्यूबरक्लोसिस के मरीजों का जुड़ाव करवाया है। प्रवास के दौरान कार्यस्थल पर यह मीट्टी एवं सिलिका के सम्पर्क में आने, पोषण का खराब स्तर  एवं शहरों में तंग व भीड़ भाड़ वाली जगहों पर रहने के कारण प्रवासी इस बीमारी से ग्रसित हो जाते है।

निम्नलिखित तालिका प्रदर्शित करती है कि लॉकडाउन की अधिसूचना जारी होने के बाद दक्षिणी राजस्थान के सभी आदिवासी बाहुल्य जिलों में ट्यूबरक्लोसिस के केसों में कमी आई है। हालांकि हम देख रहे है कि हमारे क्लिनिक्स पर लाॅकडाउन के पहले के महीनों एव पिछले वर्ष (समानान्तर अवधि) की तुलना में बड़ी संख्या में ट्यूबरक्लोसिस के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

समुदाय में कई महिनों से कईयों में इस रोग संम्बधित लक्षण पाए दिखाई दे रहे थे। लेकिन इनमें से कई इसका इलाज ढूढनें में सक्षम नहीं थे, कई अन्य शहरों एव कस्बों से इलाज ले रहे थे। बहुतों को इसका इलाज लेने में व्यवधान आ गया था। व्यवधान एवं इलाज में देरी होने के सामान्य कारण इस प्रकार थे: यातायात का अभाव, अस्पताल में इलाज के दौरान कोविड-19 से सक्रमित होने का डर, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच बनाने से वंचित होना, पैसो की तंगी के कारण अस्पताल तक पहुँचने व दवाई खरीदनें में सक्षम न होना। इनमें से कई तो हमारे पास गंभीर ट्यूबरक्लोसिस से ग्रसित होकर पहुँचे जिनके पास बहुत कम पैसे व खराब पोषण स्तर से पीड़ित थे।

लॉकडाउन के तुरन्त बाद एच.आई.वी. संक्रमित मरीज गांवो से ए.आर.टी. सेन्टर (Anti Retroviral Treatment centre) नहीं पहुँच पा रहे थे जो कि शहर में स्थित है। हमारे एक क्लिनिक एरिया में हमने लगातार तीन महिनों तक 16 एच.आई.वी. पेशेंट की दवाइयों को उनकी दहलीज तक पहुँचाया। लेकिन आज 6 माह बाद भी कई मरीज लगातार सेन्टर पर पहुचने व वहां से दवाई प्राप्त करने में कठिनाई महसूस कर रह है।

भोजन की उपलब्धता एवं बच्चों में कुपोषण:

हमारे फील्ड एरिया के ऐसे परिवार जो मजदूरी एवं प्रवास पर निर्भर है उन परिवारों में खाद्यान की उपलब्धता के आंकलन के लिए हमने मई महीने में एक सर्वेक्षण किया। हमने जितने साक्षात्कार किए उनमें से 47: ने विवरण दिया कि वे खाना खाना छोड चुके है या कभी कबार खाते है। इन घरों में खाद्यान की उपलब्धता अत्यन्त कम थी: वस्तुतः आठ दिनों को तक काम चल जाए इतनी मात्रा में ही दाले उनके घरों में उपलब्ध थी।

हमने पाँच वर्ष से कम आयु के 1000 बच्चों की ग्रोथ माँनिटरिंग भी की यह सभी बच्चे आदिवासी समुदाय से आते है एवं इनमें से अधिकतर प्रवासी परिवारों से थे। जबकि हमने लॉकडाउन के बाद के तीन महीनों तक बच्चों की ग्रोथ माँनिटरिंग नहीं की थी। जून महीने से हमने उचित निर्णय लेते हुए सावधानी पूर्वक सर्तकता के साथ पुनः उनका वजन करना शुरू किया। जबकी हम सर्वे के  बीच का अनुपात देखे तो हमारे पिछले 12 मापदंण्डों में 68%  बच्चें कुपोषित थे परन्तु जून के महीनें में बच्चों में कुपोषण का स्तर बढ़ कर 76 %हो गया।

 

प्रजनन स्वास्थ्य:

प्रवासी व्यक्ति गांवों में एक लम्बे समय तक के लिए घर वापसी कर चुके थे और अब इनके पास आजीविका चलाने का कोई साधन भी नहीं था। फलस्वरूप् इन परिस्थितियों ने घरेलू हिंसा को बढ़ावा दिया। हम इसके गवाही देते है कि इस दौरान घरेलू हिंसा के कारण महिलाओं पर चोट व जख्मों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। इसी तरह हमारे आउटरीच स्टाफ ने भी घरेलू हिंसा के कई मामलो को उजागर किया एवं इसकी सूचना दी।

इसी दौरान यहाँ एक बड़ी लहर चली जिसमें गर्भवती महिलाओं ने स्वयं स्वीकार किया कि वे गर्भवती है और उन्हें गर्भनिरोधक साधनों एवं गर्भपात की दवाइयों की जरूरत है। महिलाओं में गर्भधारण (ए.एन.सी.) के बाद इजाल मांगने की संख्या में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई। हमारे क्लिनिक पर औसत प्रथम त्रैमास में 40 पर महीना, द्वितीय त्रैमास में 48 पर महीना एवं तृतीय त्रैमास मे 53 प्रति महीना की बढ़ोतरी दर्ज की गई। यह वृद्धि दोनो कारणों से हुई एक कारण तो यह था कि प्रवासी लोग लम्बे समय से घरों पर ठहरे हुए थे वैस ही दूसरा उन्हें सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुँच व प्रत्यायित करने में मुश्किल हो रही थी।

हमने यह भी देखा कि इन परिस्थितियो के कारण सभी बीमारियों एवं रोगो की संख्या में  बढ़ोतरी हुई है। जैसे की डाइअबीटीज और हाइपर्टेन्शन आदि इनके इलाज में भी व्यवधान उत्पन्न हुआ। इसके कारण उसी प्रकार है जो की पहले ऊपर वर्णित किए जा चुके है। क्लिनिक से अनियंत्रित डाइअबीटीज व गंभीर हाइपर्टेन्शन के जितने मरीज इस दौरान इलाज लेने आए उतने पहले कभी नहीं आए।

कोविड-19 संक्रमण का फैलाव:

हमने पहले ही बताया कि जब प्रवासी लॉकडाउन के तुरन्त बाद पैदल ही घर वापसी कर रहे थे। उस दौरान इस समुदाय में कोविड-19 का संक्रमण नहीं फैला था। जैसा कि जबसे प्राधिकारियों ने बलपूर्वक उन्हें वापस जाने एवं शहर में ठहरने के लिए मजबूर किया एवं एक माह बाद उन्हें घर वापसी की अनुमति प्रदान की इसके बाद से ही इस समुदाय में कोविड-19 का बीजारोपण हुआ। जैसा कि हमने देखा प्रवासी आगे बढ़ते हुए लगातार बार-बार शहरो की यात्रा कर रहे थे जैसे अहमदाबाद व राजकोट जबकि उनके गांव दक्षिणी राजस्थान में है। ग्रामीण क्षेत्र में इस प्रच्छन्नता पूर्ण व्यवहार ने कोविड-19 की केसो की संख्या में इजाफा किया। नीचे जो चार्ट दर्शाया गया है यह स्पष्ट करता है कि सघन प्रवासी क्षेत्र डूँगरपुर जिले में अगस्त महीने से कोविड-19 के केसो की संख्या बढ़ी है।

शहरों में संक्रमण बढ़ने व ज्यादा फैलने के कई उदाहरण सामने आए जैसे किः अहमदाबाद में एक भवन स्थल पर जहाँ हम प्रवासियों के बच्चों के लिए डे-केयर-सेन्टर संचालित करते है। वहाँ देखने में आया कि जहाँ 450 मजदूरों स्क्रीनिंग की गई उसमें से 49 मजदूर कोविड-19 से संक्रमित पाए गए।

प्रयासों को अमल में लाना आवश्यक है:

राजमार्गों पर प्रवासियों द्वारा पैदल ही वापसी की वह तस्वीरें राष्ट्र के अतःकरण को विचलित कर देने वाली थी। आज छह माह बाद, हमारे दिमांग से प्रवासियों एवं उनके परिवारों द्वारा उठाएं गए कष्टों पर संवेदनशीलता कम होती जा रही है, जिसे वापस लाना चाहिए। प्रवासी समुदाय के लिए लगातार जरूरत महसूस कि जा रही है कि इनके लिए तुरन्त प्रभाव से पोषित भोजन तक पहुँच सुनिश्चित बने, यातायात पुनः सुव्यस्थित संचालित हों, देखभाल एवं इलाज उपलब्ध हो, स्थानीय स्तर पर रोजगार उत्पन्न हो और कोविड-19 की जाँच व निगरानी बढ़े।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से प्रवासी एवं प्रवासी परिवारों को अतिरिक्त अनाज की सहायता उपलब्ध करवाई जा रही है। परन्तु यह स्वास्थ बने रहने के लिए पर्याप्त नहीं है। आंगनवाड़ी जो कि छोटे बच्चों के लिए पूरक पोषाहार प्राप्त करने का मुख्य स्त्रोत है, वह अभी तक बन्द है। जिसे तुरन्त शुरु करते हुए बच्चों को पूरक पोषाहार उपलब्ध कराने की जरूरत है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाने का तेल एवं दाले उपलब्ध कराने की भी आवश्यकता है।

दूरदराज के अतिवंचित समुदाय तक स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चत रुप से पहुँचे इस हेतु सकारात्मक प्रयासों की आवश्यकता है। उदाहरण के तौर पर संदेहास्पद टी.बी. मरीज की समय पर पहचान कर तुरन्त इलाज सुनिश्चित किया जाए, यातायात सुविधा में मदद की जाए, मरीज के खंखार की जांच के बजाय उनके घर के नजदीक मोबाईल-एक्स-रे सुविधा उपलब्ध करवाई जाए और दवाइयाँ इनके घर की दहलीज तक पहुँचाई जाए। परिधीय क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं को जोड़ना जैसे कि सहायक नर्स टेली काउन्सलींग के माध्यम से मरीज एवं उसके परिवार को आवश्यक बुनियादी सेवाओं के बारे में जानकारी उपलब्ध करवा सके। यह समय है जब इस सघन प्रवास युक्त ग्रामीण समुदाय में प्राइमरी हेल्थ केयर को मजबूत करने की जरूरत है।

प्रवासी पुरूष भयंकर खराब परिस्थितियों का सामना कर रह है। इन्होंने अपना रोजगार खो दिया है और ऐसी परिस्थितियों से उबरते हुए स्वयं जीवन में गतिशीलता लाने में अक्षम है। तो ऐसे में हमें इनके साथ सक्रिय सम्पर्क बनाकर उन्हें साथ लेकर चलने की जरुरत है। हमने यह पाया है कि सक्रिय सम्पर्क एवं सहायता से इनको ऐसी परस्थितियों से बाहर निकला जा सकता है। और उन्होंने अपनी व अपने परिवार की खुशहाली को बढ़ाने के लिए अपने आप से प्रयास भी किए है। इस समय उनके परिवार को स्वास्थ्य देखभाल एवं सहायता विषय पर पहले से कई ज्यादा मात्रा में परामर्श की आवश्यकता है। स्वास्थ्य कार्यकताओं से अपेक्षा की जाती है कि उनके द्वारा समुदाय के साथ सहानुभूति पूर्ण व्यवहार, टेली काउन्सलीग सर्विसेज और हेल्पलाइन्स सेवाओं की आने वाले लम्बे समय तक जरूरत रहेगी।

अंग्रेजी से हिन्दी में रूपान्तरण- राहुल शाकद्वीपीय

लेखक- डॉ .संजना, डॉ. पवित्र एवं अर्पिता (बी.एच.एस.)

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