Site icon Youth Ki Awaaz

कौन बनेगा बिहार का मुख्यमंत्री?

कौन बनेगा बिहार का मुख्यमंत्री?

 

बिहार यूं तो राजनीति का गढ़ रहा है पर इस बार का विधानसभा चुनाव बेहद खास है क्योंकि यह कोरोना काल में देश में होने वाला पहला चुनाव है। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण के नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। पहले चरण की 71 सीटों पर 1057 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन किया है। यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस बार बिहार में मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी जताने के लिए कई उम्मीदवार हैं। महागठबंधन से जहां तेजस्वी यादव ने कमान संभाली है तो वहीं एनडीए ने फिर से नितीश कुमार के नेतृत्व में अपना भरोसा जताया है। 

 

क्या तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बन पाएंगे?

 

यह विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के भविष्य के लिहाज़ से सबसे महत्वपूर्ण होने जा रहा है। बिहार के वोटरों के मन में बस एक ही सवाल है कि क्या तेजस्वी भी अपने पिता लालू यादव की तरह बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे? तेजस्वी युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं। वह राजद के परंपरागत मुस्लिम-यादव समीकरण से ऊपर उठ कर सोचते हैं और इस बार बड़ी तादाद में सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट बांट रहे हैं।  2017 में जनता दल (यूनाइटेड) के महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनाने के बाद महागठबंधन में सिर्फ राजद और कांग्रेस बचे थे। 

 

हालांकि बाद के दिनों में उपेंद्र कुशवाहा की “रालोसपा” और जीतन राम मांझी की “हम” भी महागठबंधन का हिस्सा बनी थी। फिर इस चुनाव के पहले ही अलग हो गई। बीते 3 अक्टूबर को मुकेश साहनी ने भी बीच प्रेस कांफ्रेंस में महागठबंधन से अलग होने का फैसला लेकर सबको चौंका दिया। अब वामदल भी राजद के साथ हैं तो मुकाबला और भी रोमांचक हो चला है। बहरहाल, यह चुनाव न तो कांग्रेस के लिहाज़ से कुछ खास महत्वपूर्ण है और ना ही वामदलों के लिहाज से। यह चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है तेजस्वी यादव के भविष्य के लिए। 

 

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद यह दूसरा और शायद आखिरी बड़ा मौका है जब महागठबंधन के बाकी दलों ने तेजस्वी के नेतृत्व पर अपना भरोसा जताया है। आखिरी मौका इसलिए है क्योंकि जिस हिसाब से सीटों के बंटवारे को लेकर पिछले कुछ दिनों में महागठबंधन में तनाव की स्थिति बनी थी उसे देखते हुए कांग्रेस या वामदलों का शीर्ष नेतृत्व भी अलग होने के बारे में विचार कर सकता था।

 

चिराग पासवान की राजनीति और सत्ता की चाभी

 

चिराग पासवान को लेकर भाजपा में अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। लोजपा ने जमकर भाजपा से आए हुए नेताओं को जनता दल (यूनाइटेड) के खिलाफ टिकट दिया है। अब इससे तीन बातें निकल कर सामने आती हैं। एक तो यह कि भाजपा और जनता दल (यूनाइटेड) फिर से सरकार बना लें और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनें। दूसरा यह कि भाजपा और लोजपा मिलकर सरकार बना लें और चिराग मुख्यमंत्री बनें। तीसरा यह कि लोजपा चुनाव के बाद महागठबंधन में शामिल हो जाएं और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री तथा चिराग उपमुख्यमंत्री बनें। पहली स्थिति को जाने दिया जाए तो सत्ता की चाभी चिराग के ही पास है।  ठीक उसी प्रकार जैसे किसी ज़माने में उनके दिवंगत पिता राम विलास पासवान के पास हुआ करती थी। 

 

पुष्पम प्रिया चौधरी की एंट्री

 

इन सब के बीच बिहार में पुष्पम प्रिया चौधरी का नाम भी राजनैतिक हलकों में  लखूब उछाला जा रहा है। 8 मार्च को पुष्पम ने खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर के अच्छी-खासी लोकप्रियता बटोरी थी। इनकी पार्टी प्लुरल्स के कार्यकर्ताओं और नेताओं को बिहार में स्लम बस्तियों इत्यादि में सभा करते देखा जा सकता है। पुष्पम खुद बिहार विधानसभा में दो सीटों से चुनाव लड़ रही हैं।  इनमें पटना ज़िले की बांकीपुर सीट और मधुबनी की बिस्फी सीट शामिल हैं। खास बात यह है कि प्लुरलस ने 50 प्रतिशत सीटों पर महिलाओं को उतारा है। 

 

जातिगत समीकरण

 

बिहार की राजनीति में जातियों का विशेष महत्व है। कोई भी राजनैतिक पार्टी क्षेत्र विशेष में हमेशा जातिगत भावनाओं का ख्याल रख कर ही अपना उम्मीदवार उतारती है। हालांकि, हाल ही में पुष्पम प्रिया चौधरी की पार्टी प्लुरलस ने जब अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की तो उन्होंने जाति के कॉलम में उन्होंने हर उम्मीदवार का पेशा डाला। यह देखने में बड़ा ही सकारात्मक और विकासशील लगता है परंतु असल बात यह है कि प्लुरल्स ने भी हर विधानसभा क्षेत्र की सबसे प्रमुख जाति से ही उम्मीदवार इस चुनाव में उतारे हैं। महागठबंधन ने इस बार सबको खुश रखने की कोशिश की है और टिकट बांटते समय सवर्ण, दलित, अतिपिछड़ा और अल्पसंख्य समाज की भावनाओं का ख्याल रखा है। दूसरी ओर एनडीए में मुकेश साहनी को साथ लाकर लोजपा की कमी पूरी करने की कोशिश की गई है।

 

बिहार का भविष्य तय करेगा यह चुनाव

 

इस चुनाव की सबसे अहम बात यह है कि यह बिहार का भविष्य तय करने वाला चुनाव है। उम्र के हिसाब से देखें तो यह 69 वर्षीय मुख्यमंत्री नितीश कुमार का सम्भवतः आखिरी चुनाव है।  इस बीच बिहार की हर पार्टी में युवा नेताओं की एक बड़ी खेप तैयार हो चुकी है बस जद(यू) और भाजपा छोड़कर। एक ओर राजद में जहां लालू यादव के बेटों तेजस्वी और तेज प्रताप को बागडोर सौंपी गई है वहीं दूसरी ओर रामविलास पासवान पहले ही चिराग को लोजपा की ज़िम्मेदारी सौंप चुके थे।  

 

प्लुरल्स की पुष्पम प्रिया और वामदल से कन्हैया कुमार भी युवा नेताओं की फेहरिस्त में शामिल हैं। जद(यू) भले ही 15 सालों से चुनाव जीतते आ रही है परंतु एक अंतिम सत्य यह भी है कि जद(यू) में सीएम नितीश कुमार के अलावा कोई और ऐसा नेता नहीं है जो अपने दम पर ताल ठोंक सके। कमोबेश यही स्थिति भाजपा की भी है। यदि नीतीश कुमार की बैसाखी को हटा दिया जाए तो बिहार में भाजपा का कोई नेता नहीं है जो खुद को सीएम कैंडिडेट कह सके। फर्ज़ कीजिए आज नितीश कुमार एनडीए से अलग हो जाएं तो बिहार में भाजपा किसे उनके खिलाफ सीएम कैंडिडेट के रूप में उतारेगी? इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ऐसी स्थिति में भाजपा के लिए चिराग एक बेहतरीन विकल्प हो सकते हैं।  इसी तरह एक और केंद्रीय पार्टी कांग्रेस ने 1990 के बाद कभी भी बिहार में कोई मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं दिया। 

 

कोरोना काल और मत प्रतिशत पर प्रभाव

 

बिहार अब भी चिकित्सा के मामले में देश भर अंतिम पायदान पर है। कोरोना से हो रही मौतों में लगातार इज़ाफा हो रहा है और साथ ही सोलह ज़िलों में अब भी बाढ़ की स्थिति है। ऐसे में राजद, लोजपा समेत कई पार्टियों ने चुनाव आयोग से अनुरोध किया था कि चुनाव इस साल के बदले अगले साल करवा लिए जाएं। बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में 56.66% मत प्रतिशत रहा था तो वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार का मत प्रतिशत 67.09% रहा था। यह दोनों चुनाव सामान्य परिस्थितियों में हुए थे। ऐसे में ज़ाहिरी तौर पर यह बात कही जा सकती है कि बिहार में इस कोरोना काल में मत प्रतिशत काफी कम रहेगा। हो सकता है यह सबसे कम मत प्रतिशत वाला चुनाव भी रहे। 

 

बहरहाल, इस चुनौती भरे समय में ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि बिहार की जनता किसे अपना नेता चुनती है।

 

Exit mobile version