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भारत में सहिष्णुता की स्थिति

प्राचीन काल से महिला एवं दलितों की उपेक्षा के बाबजूद भारत में विभिन्न धर्म, पंथ, संप्रदाय एवं संस्कृति के लोगों के बीच एक साथ मिलजुल कर रहने का चिरकालीन इतिहास रहा है।लेकिन विगत पांच-छ: वर्षों से अतिवादी विचारधारा के मुखर होने के कारण वैश्विक बदलाव के साथ ही भारतीय समाज मे आए भूचाल के परिणामस्वरूप भीड़-हत्या (Mob-Lynching),महिला गैंगरेप/हत्या एवं समाज के निचले तबके के प्रति दुर्व्यवहार एवं शोषण की घटनाओं में अप्रत्याशित बृद्धि हुयी है।इस दौरान न केवल मुसलमान अपितु महिला एवं दलित वर्ग विशेष रूप से उत्पीड़न का शिकार हो रहा है।संविधान द्वारा रक्षित अभिव्यक्ति की आजादी के बाबजूद बुद्धिजीवियों,शिक्षाविदों,युवा छात्रों,समाजसेवियों एवं किसानों तक को अपनी बात कहने से रोका जा रहा है और सरकारी नीतियों से मतभेद होने की दशा में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने पर दमनकारी व्यवहार किया जाना मानो आम बात हो गयी हो।ऐसे असामान्य माहौल में अधिकांश मीडिया भी सामाजिक एवं आर्थिक महत्व के प्रमुख मुद्दों की उपेक्षा कर गैर महत्व के मुद्दों पर स्वयं को केन्द्रित कर आम जनता को मुख्य मुद्दों से भटकाने का कार्य कर रही है ,जिसने लोगों को निराश ही किया है। इन सब के परिणामस्वरूप देश में भय, निराशा एवं अविश्वास का माहौल व्याप्त है। यह सारी घटनाएं और परिस्थितियां भारत की सहिष्णुता के आज के स्तर को दर्शाती हैं। 
          कुछ लोगों द्वारा इप्सास मोरी (IPSOS MORY) द्वारा 27देशो  मे 20हजार लोगों से किए गए सर्वे के आधार पर जारी की गयी सहिष्णुता सम्बंधी रिपोर्ट के आधार पर विश्व मे सहिष्णु देशो की सूची में ऊपर से कनाडा, चीन एवं मलेशिया के बाद भारत को  स्थान दिए जाने को भारत में असहिष्णुता का स्तर बढ़ने को गलत ढहराने का प्रयास किया जा रहा है।उन्हें ऐसे सर्वे आधारित रिपोर्टों पर विश्वास करने के बजाय वास्तविकता से रूबरू होने की जरूरत हैं, क्योंकि नि:संदेह विगत कुछ सालों से बदली परिस्थितियों ने भारतीय समाज मे बिखराव पैदा किया है और महात्मा बुद्ध और जैन ऋषियों के प्रेम एवं अहिंसा पर आधारित सहिष्णुता के भाव को गहरी ठेस पहुंचायी है।यह परिस्थिति प्रगतिशील समाज एवं देश दोनों के लिए हितकर नहीं है।अतएव समय रहते इस प्रवृत्ति को नियंत्रित कर “सर्वे भवंतु सुखिन:,सर्वे संतु निरामय:”के मार्ग पर चलकर वैचारिक मतभेदों के बाबजूद मनभेद न रखने की सीख के साथ आपस में भाई-चारा कायम करना ही हितकर होगा।
रीता विद्यार्थी, नोएडा 

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