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“महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ही बाग्लादेश के आर्थिक विकास का फर्मूला है”

एक मुल्क, जो भारत और पाकिस्तान के आज़ाद होने के बाद स्वयं अपनी खुदमुख्तारी करने का फैसला करता है। अपनी आज़ादी के पचास साल बाद अपने सर पर विकसित देशों का चस्पा किया गया ‘अंतराष्ट्रीय भिखारी’ की पहचान को उखाड़ फेंकता है।

खासकर उन दिनों जब पूरी दुनिया कोरोना काल में अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर या मंदी से उबारने की कोशिश कर रही है। बांग्लादेश ने भारत और पाकिस्तान को पीछे छोड़ खुद को अगली कतार में जा खड़ा कर लिया है। यह उस देश के नागरिकों के लिए गौरव का पल है। बांग्लादेश भारत का पड़ोसी है, जिसने अपनी आज़ादी में भारत से सहायता ली और स्वयं को बेहतर साबित भी किया।

क्या बांग्लादेश विकासशील देश से विकसित देश में शामिल हो पाएगा?

उम्मीद है 2024 तक बांग्लादेश कम विकसित देशों की सूची से निकलकर विकासशील देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा। अपने आप को खुदमुख्तार मुल्क घोषित करने के बाद गरीबी, आकाल और दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी, बांग्लादेश संकट से लंबे समय तक तबाह रहा।

2006 तक उसकी स्थिति में बेहतरी होने की शुरुआत हुई, जो अभी तक जारी है। इस साल उसने अपनी क्रयशक्ति और प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत और पाकिस्तान को भी पीछे छोड़ दिया है।

महिलाओं की भागीदारी से बदलता स्वरूप

आखिर बांग्लादेश ने यह किया कैसे? यह सवाल हर ज़हन में ज़रूर उठ रहे हैं। बांग्लादेश की इस प्रगति के पीछे उसके वस्त्र निर्माण उधोग की भूमिका कही जा रही है, जिसमें उसके कुल श्रम बल में 70% से अधिक महिलाएं हैं। बांग्लादेश जैसे देश में यह आसान तो कतई नहीं रहा होगा, क्योंकि कट्टरपंथी धार्मिक समूहों ने महिलाओं की भागीदारी पर सवाल तो ज़रूर ही उठाए होंगे।

मगर लगातार कई दशकों से बांग्लादेश को महिलाओं का नेतृत्व भी मिला है। उसने महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने में बड़ी भूमिका निभाई होगी। बांग्लादेश ने अपनी प्रगति में महिलाओं की भूमिकाओं को सुनिश्चित करके महिला सशक्तिकरण के मॉडल को प्रमाणिक बना दिया है।

घरेलू काम की दक्षता पर डिजिटलीकरण की सफलता

बांग्लादेश ने अपनी आर्थिक सफलता के लिए कृषि पर अपनी निर्भरता कम करके घरेलू और सार्वजनिक क्षेत्रों में रोज़गार के सृजन को बढ़ावा देना शुरू किया। इससे वहां के लोगों की कमाई में इज़ाफा हुआ। कमाई में इज़ाफा होने से स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में लोगों ने अधिक ध्यान दिया। इसका परिणाम यह पड़ा कि जहां भारत-पाकिस्तान में लोगों की जीवन प्रत्याशा अभी 62-65 है।

वहीं, बांग्लादेश में 72 साल हो गई है। यही नहीं, बांग्लादेश ने उन प्रविधियों पर अधिक ध्यान दिया है, जिन पर भरोसा कर के मानव संसाधन को सही जगह पर लगाया जा सकता है। मसलन, बांग्लादेश में डिजिटल लेन भी भारत-पाकिस्तान से बेहतर है, जो इस सेवा क्षेत्र के मुनाफे को और अधिक मज़बूत कर रहा है।

बांग्लादेश के विकासशील रास्ते पर क्या भारत को भी अपने कदम बढ़ाने चाहिए?

इससे अब कोई इंकार नहीं कर सकता है कि बांग्लादेश में जो आर्थिक सुधार दिख रहे हैं, इससे वहां मौजूदा शेख हसीना के नेतृत्व को राजनीतिक स्थिरता भी मिलेगी। यह बांग्लादेश के आर्थिक विकास में मील का पत्थर भी साबित हो सकता है। जानकार आजकल बांग्लादेश के इस आर्थिक विकास के लिए भारत के सहयोग और भूमिकाओं का अध्ययन कर रहे हैं, जिससे भारत अपना कंधा थपथपा सके।

जबकि भारत जैसे मूल्क को अपनी उन कमियों को तलाश करने की ज़रूरत है, जिन पर उसने चलना अब तक शुरू भी नहीं किया है। अपना कंधा थपथपाने से अधिक ज़रूरी यह है कि हम अपनी अर्थव्यव्यस्था को पटरी पर दौड़ाने के लिए सही और सकारात्मक महौल का निर्माण करें, जिससे निवेशकों का भारतीय बाज़ार पर भरोसा कायम हो सके।

कुछ लोगों का आकलन यह भी है कि कुछ वंशवाद, बांग्लादेश में अपनी राजनीति, कट्टरपंथी मज़हबों की खीचतान और भ्रष्टाचार के कारण अपनी आर्थिक सफलता को कायम नहीं रख सकेंगे।

जनाब मौजूदा बांग्लादेश ने अपनी आर्थिक सफलता इन तमाम चुनौतियों की मौजूदगी में दर्ज़ की है। यह तमाम विषय उसके आंतरिक राजनीति के हैं, जिसको नियंत्रित किए बिना आर्थिक सफलता के परचम फहराए ही नहीं जा सकते हैं। बांग्लादेश की मौजूदा विकास दर अगर स्थिर रही या आगे बढ़ती रही, तो निश्चित तौर पर वह बांग्लादेश को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिलाएगा।

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