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लीजिए आ गया the bakait of chhattisgarh का रिव्यु मेनका के इस्टाइल में

 

 

पोस्टर पे पोस्टर मिश्रा ने पोस्टा…
पर कबहु लिंक न एक्को पठोया..

ऐसा सोच सोचकर देखती रही और जैसे ही रात के 8 बजकर 5 मिनट पर लिंक मिला मेरी फुर्सत ख़त्म थी….
सुबह की हल्की फुर्सत मतलब नाश्ते का दलिया भूनते हुए मैंने लिंक ओपना और ……

जब मैंने देखा तो जैसा मूझे लगा…
बोले तो प्रीव्यू इन अपुन के इस्टाइल…

*दुनिया मे सभी तरह के लोग पाये जाते हैं ……कुछ कुत्ते और कुछ बकैत किस्म के लोग भी पाये जाते हैं..*

*छतीसगढ़ का नाम आते ही …..नक्सलवाद और चावल का ख्याल आता है..*

*……काम और पैसे की कोई कमी नही थी..*
ये सब सुनकर उत्सुकता बढ़ती गई और स्क्रिप्ट की कसावट और वाचक की अदायगी ने चुम्बकीय प्रभाव बनाना शुरू कर दिया कि

इसे देखना चाहिये ….
शुरुवात में ही धमाकेदार ….इंटरस्टिंग डॉनगिरी की झलकियां….इंटरेस्ट बढ़ा पर जैसे ही मकसूद ने ….
चलताऊ द्विअर्थी (बोले तो डबल मीनिंग वाले डॉयलॉग शुरू किए जो डिमांड थी चरित्र चित्रण के लिये उनकी एक्चुअल लिविंग,थिंकिंग,स्टेटस बोले तो आर्थिक ,मानसिक स्थिति का सम्पूर्ण ब्यौरा देने के लिये पर चूंकि मुझे थोड़ी एलर्जी है इनसे द्विअर्थी से इसलिये ये भी लगा बम्बईया सिनेमा ने कितनी बुरी चीजों को भी चमकीला दिखा दिया है गोयाकि लाइट पड़ी तो गटर पर भी पड़ी दिखा तो सब दिखा और फिर वही प्रमोट होता हुआ जैसे कि स्टेटस सिंबल बन गया और लोग उन्हें इस कदर बोलते गए कि उसका मतलब खुद को ही नही पता बस बोल दिया तो बोल दिया…(बचना चाहते तो बच सकते थे)
वापस आते हैं मकसूद पर…

बंदा बिंदास है….
एपिसोड 1 का बेस्ट एक्टर
उसकी संवाद अदायगी में उसके छतीसगढियापने और छ.गढ़ी.एक्सेंट ने बढ़िया इफेक्ट दिया है…
रेडियो जॉकी ने बेहतर परफॉर्मेंस दिया है बाबू का करेक्टर भी बढ़िया लिया गया है भैया जी ने आरम्भ में तो नही पर अंत के आते आते बढ़िया प्ले किया है पुलिस स्टेशन तक पहुंचाने वाले बंदे में कमाल का आकर्षण है लास्ट में जिसकी एक झलक पर एपिसोड सिरा जाता है आगे उन्हें देखने का इंतजार है…
सभी कलाकारों को अनन्त शुभकामनाएं 
सुपर स्टार बनें…साथ ही अपनी महती जिम्मेदारी निभाते हुई समाज को अच्छा सन्देश भी दें।

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