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हाथरस रेप : बलात्कार या दरिंदो को मैसेज या पुलिस के द्वारा दिया एक पैटर्न ?

 

14 सितम्बर को हुए हाथरस बलात्कार ने पूरे देश को झकझोर दिया। कसिए पुलिस ने अमानवीय व्यवहार किया यह मुख्य रूप से चर्चा में।
भारत में सदियों से पल रहे जातिवाद ने का ददर्नाक रूप जब देखने को मिला जब पुलिस ने बलात्कार के बाद लड़की की पार्थिवे शरीर का अंतिम संस्कार कूड़े कचरे की तरह जला दिया। मनीषा को न जीते जी इन्साफ मिला और न ही गरिमापूर्णी मृत्यु। दलित होने की पीड़ा क्या होती है यह सभी लोगों को देखने को मिला होगा। दलितों की कीमत भारत में कूड़े कचरे की तरह हैं यह बात हाथरस पुलिस ने सन्देश दिया।

अब बात करते हैं इस घटना से निकले कुछ निष्कर्ष की ?

पहला निष्कर्ष यह “क्या पुलिस ने यह सन्देश दिया के महिलाओं का बलात्कार करो,नृशंस हत्या करो और उसके बाद जला दो”

दूसरा निष्कर्ष यह “पुलिस ने सिखाया हैं दरिंदो को के बलात्कार करने के बाद पार्थिव शरीर को जलना सीखे ,न रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी?

तीसरा निष्कर्ष यह “पुलिस ने पूरे भारत में पैटर्न दिया है के दलितों को ऐसे ही मारो और जलाओ और उसके बाद आप पर कोई SC /ST
एक्ट नहीं लगेगा, आरक्षण के प्रति नफरत उतारने का यह आसान तरीका है।

चौथा निष्कर्ष यह ” पुलिस ने मनुस्मिर्ति का पालन करना सिखाया है जिससे दलितों को और महिलाओं को उनकी सही जगह दिख सकें”

खेर जो भी लेकिन मेरे विचार से यह अमानवीय व्यवहार एक सन्देश हैं उच्च जाति वालों के लिए के आप जो चाहे वो करें आपको पूरा संरक्षण
है।

खैरलांजी हत्याकांड ,ऊना,भीमा कोरेगाव ,हाथरस हत्याकांड आदि न जाने कितने हत्याकांड हैं जहाँ आये दिन दलितों की नृशंस हत्याएं होती हैं लेकिन न्याययालय भी सिर्फ दोगलेबाज़ी में सफल रहा न ही कोई ठोस कदम उठाया।भारत जैसे खूबसूरत देश में किस तरह आये दिन दलितों की बहिन बेटियों के बालात्कार ब्राह्मणो ,ठाकुरों द्वारा किये जाते हैं और इसके खिलाफ न जानें कितनी बार शिकायत दर्ज़ की गयी हैं लेकिन आज तक संयुक्त राष्ट्र ने एक बार भी किसी डेलिगेशन लाकर नहीं देखा।

संयुक्त राष्ट्र में बैठे ब्राह्मणवादी लोग इसको अंदरूनी मामला बोलकर पल्ला झाड़ लेते हैं। हाथरस में दलित बेटी के साथ बर्बरतापूर्ण तरीके से बालत्कार किया और उस्सकी गर्दन और रीढ़ की हड्डी तक तोड़ दी।14 दिनों तक वह दर्द तक कराहती रही लेकिन उसका इलाज तक नहीं मिलाऔर उसके मर जाने के बाद बिना परिवारजनों के बिना पुलिसवालों ने उसकी पार्थिव शरीर को जला दिया।

खैरलांजी में भी ऐसे ही साठ से लेकर सत्तर आदमियों ने महिला और उसकी बेटी का बालात्कार किया और उनकी नृसंस हत्या कर दी और उसके बाद न्यायलाय ने सिर्फ चंद लोगों को सजा दिलाई और बाकी लोग खुले घूम रहे है। रिजर्वेशन को दिमाग में रखकर घृणित मानसिकता से उनको मौत के घात उतार दिया जाता है लेकिन ब्राह्मणवाद में पाले परजीवी कीड़े जीवन भर निचले वर्गों का शोषण करते है। और आये दिन नरसंहार करते है।दलित होने की कीमत इस देश में कैसे चुकानी होती है इसका अंदाजा इस घटना से लगया जा सकता है। यहाँ गैर ब्राह्मण रोज़ दलितों की बहिन बेटियों का बालत्कार करता है और पुलिस व्यवस्था उसको बचाने के लिए बैठी है।

बलात्कार को चाहे तो रोका जा सकता है लेकिन भारत में यह “कल्चर” स्थापित किया गया है। भारत में दिन प्रतिदिन जो हालत हैं वो न्याय व्यस्था पर एक धब्बा है। पुलिस यहाँ न्याय व्यवस्था के लिए नहीं बल्कि भारत में जाति व्यवस्था कायम करने के लिए है।

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