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21वीं सदी में गांधी

21वीं सदी में हम जब दूसरे दशक से तीसरे दशक में प्रवेश करने को हैं पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। कोरोना महामारी मानवता पर संकट बन कर उभरी है। इस महामारी से सभ्यता को बचाने का रास्ता किसी हथियार और युद्ध से नहीं बल्कि गांधी के उस शांति वाले विचार से निकलेगा, जिसका प्रयोग उन्होंने जीवन भर किया। गांधी का जीवन एक जीवन नहीं बल्कि एक विचार और दर्शन है सत्य के उन प्रयोगों का जो गांधी ने मानवता और सभ्यता को स्थापित करने में लगा दिया।

1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी के महात्मा बनने तक की यात्रा इंग्लैंड में वकालत पढ़ने और अफ्रीका में वकालत करने से शुरू होकर, रंगभेद भेद के खिलाफ सत्याग्रह शुरू करने से लेकर अत्याचार, शोषण, झूठ, नफरत और हिंसा को खत्म करने की लड़ाई है। गांधी स्वशासन और आत्म नियमन पर इतना बल देते हैं, उनका मानना है कि सत्य और अहिंसा के आत्मबल से कोई भी लड़ाई जीती जा सकती हैं।

बीसवीं सदी में जब ब्रितानी हुकूमत पूरी दुनिया में अपना साम्राज्य स्थापित कर रही थी। अंग्रेज जो कभी कहते थे की जिनके साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता। गांधी ने अपने सत्य और अहिंसा के सिद्धांत को कायम रखते हुए अंग्रेजों को देश छोड़ने को मजबूर कर दिया। उनका कहना था कि
“जब मैं निराश होता हूं तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हत्यारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय भी लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है” अहिंसा का विचार उनकी शारीरिक दुर्बलता या कायरता नहीं थी उनका मानना था कि “जहां डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में अपनी राय दूंगा

सत्य के प्रयोगों की चाहत इतनी की मां को वचन देने के बावजूद मांसाहार का सेवन किया और उसका अनुभव करने के बाद दोबारा कभी हाथ भी नहीं लगाया। अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में अपनी उस गलती का जिक्र करते हैं जब उनके पिता करमचंद गांधी अपने अंतिम दिनों में बिस्तर पर थे और गांधी अपनी पत्नी के साथ भोग-विलास में रत थे, जिसका दुख उन्हें अपने पूरे जीवन भर रहा। अपने जीवन में कुछ ऐसे भी प्रयोग किए जो दुनिया की नजर में विवादित भी रहे।

देश को आजादी दिलाने, विकेंद्रीकरण के सिद्धांत पर स्थानीय शासन और हर हाथ में काम होने और हर किसी को काम करने की वकालत करने वाले गांधी अपनी जरूरतों को अपनी संसाधनों तक सीमित रखने की वकालत करते हैं।

आज अहिंसा के इस महात्मा के विचारों को याद रखने और अपने जीवन में उतारने के लिए पूरा विश्व उनके जन्म दिवस 2 अक्टूबर को अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है।
उनका मानना था अहिंसा हिंसा का मुकम्मल जवाब तो नहीं है लेकिन यह एक रास्ता है हिंसा के कुचक्र से निकलने का।

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