मर रही है धरती, हम भी मरते जा रहे हैं
सुख रही हैं नदियां सारी, तालाब भी भरते जा रहे हैं।
मर रहे हैं मेघ गगन के, सुधा कौन बरसाएगा
पेड़-पौधे नहीं रहें तो ज़िंदा कौन रह पाएगा?
कैसे सजेगा श्रींगार धरती का, जंगल सब कट जाएगा
कैसे खिलेंगे पुष्प उपवन के, जब सुखा पड़ जाएगा।
ऐसे पराली जलाते रहे तो, धरती उसर हो जाएगी
हवा-पानी के बिना ज़िंदगी दूसर हो जाएगी।
छांव ना मिलेगा कहीं, कहां बैठ सुस्ताओगे?
गर्मी से दम घुटेगा, घुंट-घुंट मर जाओगे।
आओ मिलकर संकल्प लें, हर साल वृक्ष लगाएंगे
हवा-पानी शुद्ध बनाकर, जीवन में खुशहाली लाएंगे।