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मिट रही हैं संस्कृतियां, हो रहा है विकृतियों का अविष्कार

मिट रही हैं संस्कृतियां विकृतियों का अविष्कार हो रहा है
मर रहीं है संवेदनाएं कुरीतियों का दुष्प्रचार हो रहा है।।

ज़ुर्म पांव पसार रहा है, राम कृष्ण के धरती पर
गालियों की बौछार हो रही है, गरीबों के अर्थी पर।।

इंसानियत की चिता में, इंसान जलाए जा रहे हैं
मनोरंजन में लाशों पर जश्न मनाएं जा रहें हैं।।

शर्म भी शरमा जाता है देख कृत हैवानों का
जानवर से बत्तर व्यवहार हो गया इंसानों का।।

देवी तुल्य बेटियां जिस देश में पुजी जाती हैं
अफसोस है वहीं बेटी वासना में भुजी जाती है।

बुज़दिलों की सभा में, दिलावर शर्मसार हो जाता है
सत सनातन की सभ्यता तार-तार हो जाती है।।

फंस गई है न्याय यहां राजनीति की दलदल में
हाल बेहाल हो गया हाथरस के हलचल में।।

जाति धर्म के नाम पर धंधे चमकाएं जाते हैं
हमको हमसे बांटकर दंगे कराए जाते हैं।।

प्रशासन की देख-रेख में अनेक बारदातें होती हैं
गरीबों की लाशों पर कानून बड़े चैन से सोती है।।

मुख्य पृष्ठ पर दुष्कर्म छपता है अखबारों में
अपने भाग्य पर गीता रोता है, न्याय के दरबारों में।।

जो सह दे आक्रांताओं को, विधान बदल दीजिए
नहीं होगा बलात्कार कभी, संविधान बदल दीजिए।।

जला दो बलात्कारियों को मुहिम चलानी नहीं पड़ेगी
नहीं जलेगी बेटियां, मोमबत्तियां जलानी नहीं पड़ेगी।।

नहीं होगा निर्मम हत्या हत्यारों का मर्दन होगा
फांसी के फंदों में दहशतगर्दों का गर्दन होगा।।

अंग भंग कर दो या चौराहों पर लटका दो
जो करे दुष्कर्म का दुस्साहस उसे तुरंत टपका।।

बेटी बचाओ का नारा अब भी सफल बनालो।
राजनीति से उपर उठकर कुछ तो धर्म कमा लो।।

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