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कविता: “करदाताओं के पैसों से खड़ी की गई मंदिर-मस्जिद, जिसकी कोख से दंगों ने जन्म लिया”

विरोध प्रदर्शन

विरोध प्रदर्शन

करदाताओं के पैसों से

वह हथियार नहीं खरीदे गए,

जिससे हथियारों के ज़रूरतों का उन्मूलन हो।

 

कर से जोती गई आस्था

विषमता के ढांचों पर,

खड़ी की गई मंदिर और मस्जिद

जिसकी कोख से दंगों ने जन्म लिया।

 

उन दंगों के सारे पुजारी

दंगो के हथियार से संसद में महंत बनाए गए।

 

कर के पैसों से उन्माद की नीतियां बहाल कर

बेरोज़गारी की ज़मीन पर,

लिंचिंग विषय में

स्नातक, परास्नातक और शोधकर्ताओं

की नई खेप उगाई गई।

 

करदाताओं की सहमति से

गुरबत की ढेर को

राष्ट्रवाद के पर्दों से ढ़ापा गया।

 

ऐसे ही कुपमंडुक करदाताओं के घरों को

उस उन्माद में जलाया गया,

घरों की जली हुई राख की भभूत

वैश्विक भूख सूचकांक में

उपलब्धियां दर्ज़ कर,

ललाट पर राष्ट्रवाद की तस्वीर को

जीवित तो रखती है।

 

भूख और त्रासदी पर खड़े

राष्ट्रवाद के सांसों की रसद

युद्ध की विभीषिका में मयस्सर होती है।

 

कूपमंडूक करदाताओं की रज़ामंदी से ही

खरीदी गई है

भूख, युद्ध और त्रासदी।

 

शिक्षा को सब्सिडाइज़ करना

करदाताओं को,

भूख, युद्ध और त्रासदी से भी ज़्यादा

महंगा सौदा जान पड़ा।

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