Site icon Youth Ki Awaaz

रामविलास पासवान को क्यों कहा जाता था भारतीय राजनीति के मौसम विज्ञानी?

रामविलास पासवान अब नहीं रहे। कभी उनके करीबी रहे लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि रामविलास मौसम विज्ञानी हैं। दरअसल, राजनीतिक मौसम का रुख भांपने में माहिर रामविलास का राजनीतिक कैरियर उतार-चढ़ाव भरा रहा लेकिन वह अकसर सत्ता पक्ष के सहयोगी बनकर राजनीतिक शतरंज पर शह-मात का खेल खेला करते थे।

राजनीति के मौसम वैज्ञानिक का सफर

बिहार के खगड़िया ज़िला से शुरू हुआ था रामविलास पासवान का सफर। उनका जन्‍म 5 जुलाई 1946 को उसी खगड़िया ज़िले के शहरबन्नी गाँव में हुआ था। वहीं, उन्होने शिक्षा कोसी कॉलेज और पटना यूनिवर्सिटी से पूरी करने के बाद 1969 में बिहार के डीएसपी के तौर पर चुने गए थे।

रामविलास पासवान पढ़ाई-लिखाई में अच्छे थे, यही वजह है कि उन्होंने बिहार प्रशासनिक सेवा की परीक्षा भी पास की थी। 2016 के मार्च महीने में रामविलास पासवान ने एक ट्वीट किया था। इस ट्वीट में पासवान ने लिखा था, “1969 में मेरा डीएसपी और एमएलए दोनों में एक साथ चयन हुआ। तब मेरे एक मित्र ने पूछा कि बताओ सरकारी गवर्नमेंट बनना है या सर्वेंट? बस तभी मैंने राजनीति जॉइन कर ली।”

रामविलास पासवान ने छात्रसंघ से राजनीति में कदम रखा था। वह जेपी आंदोलन के बिहारी चेहरों में से एक थे, यानि अव्वल दर्जे़ के नेता थे। वह हमेशा देश के दलितों के हित के लिए संघर्ष करते रहे। मृदुभाषी होने के कारण सभी जाति-धर्म के लोगों के दिलों में उनके लिए जगह थी। पहली बार वर्ष 1969 में वह विधायक बनें फिर साल 1977 में पहली बार जनता पार्टी के उम्मीददवार के रूप में हाजीपुर सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे।

हाजीपुर में उन्होंने रिकॉर्ड वोट से जीत हासिल कर सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा था। इसके बाद साल 1980 के लोकसभा चुनावों में इसी सीट से दोबारा जीत हासिल की, फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। केंद्र में एनडीए की सरकार हो या यूपीए की, उनका महत्व हमेशा समान रूप से बना रहा।

वर्ष 1969 में पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से विधायक बने थे। इसके अलावा रामविलास पासवान 1974 में पहली बार लोकदल के महासचिव बनाए गए। जबकि वह व्यक्तिगत रूप से राज नारायण, कर्पूरी ठाकुर और सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे आपातकाल के प्रमुख नेताओं के करीबी थे। यही नहीं, उन्‍हें भारतीय राजनीति में मौसम विज्ञानी कहा जाता था।

सरकार किसी की भी हो सरकार में पासवान मौजूद रहते ही थे

1989 के बाद से नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की दूसरी यूपीए सरकार को छोड़ वो हर प्रधानमंत्री की सरकार में मंत्री रहे। इसलिए कहा जाता है कि सरकार किसी की भी हो, उसमें पासवान ज़रूर मौजूद रहते थे। वर्तमान में वह उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री थे। वह तीसरे मोर्चे की सरकार में भी मंत्री रहे, काँग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार और बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार में भी वह मंत्री रहे। वह देश के इकलौते राजनेता रहे, जिन्होंने 6 प्रधानमंत्रियों की सरकारों में मंत्रिपद संभाला।

राजनीति में रामविलास पासवान ने 70 के दशक में कदम रखा था फिर सियासत की बुलंदी साल-दर-साल चढ़ते गए। पासवान ने बिहार के हाजीपुर संसदीय सीट को अपनी कर्मभूमि बनाया, जिसके बाद वहां पर “धरती गूंजे आसमान, हाजीपुर में रामविलास पासवान” के नारे सरेआम गूंजते थे। हाजीपुर से उन्होंने ऐसी जीत दर्ज़ की जो विश्व रिकॉर्ड बन गई।

2019 में राजनीति के 50 वर्ष पूरे किए थे रामविलास ने

बिहार की राजनीति में दलितों का सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले रामविलास पासवान ने 2019 में चुनावी राजनीति में अपने 50 वर्ष पूरे किए थे। उन्‍होंने अपने राजनीतिक सफर में 6 प्रधानमंत्रियों की मंत्रिपरिषद में केंद्रीय मंत्री के रूप में ज़िम्‍मेदारी निभाई। पासवान ने जिन PM के साथ काम किया, उनमें पूर्व पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह, एच डी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेन्द्र मोदी शामिल हैं।

इसके अलावा रामविलास पासवान को लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव और जॉर्ज फर्नांडीस जैसे समाजवादी नेताओं की श्रेणी में रखा जाता है। साथ ही उन्हें जेपी आंदोलन की उपज माना जाता है। जबकि कुछ समय पहले उन्‍होंने तबीयत बिगड़ने के बाद चिराग पासवान को लोजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया था।

बिहार की राजनीति में 2 दिग्गज नेताओं का एक महीने के अंदर चले जाना झटके जैसा है। पहले रघुवंश प्रसाद और अब राम विलास पासवान।

यूं रामविलास पासवान का जाना निजी क्षति जैसा लग रहा है, क्योंकि मैं उसी राज्य से आता हूं और बचपन से ही उनकी रैलियां देखता आ रहा हूं। जब छोटे थे तब हेलीकॉप्टर की आवाज़ सुनकर मैदान की तरफ दौड़ लगाता था।

उनकी कई चुनावी रैली कवर करने का भी मौका मिला। पिछले वर्ष ही लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी के साथ बिहार में उन्होंने कई रैलियां की थीं। मैंने दो रैलियां कवर किया था, वह भी थे मंच पर। वह बेहद सरल इंसान, सम्पूर्ण परख वाले नेता और हंसमुख स्वभाव के थे।

Exit mobile version