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“पड़ोस के भैया ने जब मुझे गलत तरीके से छूआ तो माँ ने मुझे ही डांटकर चुप करा दिया”

एक रोज़ जब स्कूल से आकर देखा तो ताऊजी छोटू के लिए एक बड़ा-सा एरोप्लेन लाए थे और मेरे लिए लाल छोटी-छोटी चूड़ियां। मैंने पूछा कि मेरे लिए एरोप्लेन क्यों नहीं लाएं? इसपर उन्होंने कहा, “तुम उड़ा नहीं पाओगी”। मुझे यह सुनकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और मैंने चूड़ियां वापस कर दीं।

लड़की और लड़की के साथ यह फर्क किस डिक्शनरी में है, मुझे नहीं पता। मैंने बहुत सारी किताबों में ढूंढा कि छोटू और मुझमें क्या फर्क है? माँ से भी जब पूछा तो वह भी बहला देती थीं। जब बड़ी हुई तो देखा कि छोटू पिताजी को खाना देने जाया करता था। वह हाफ पैंट पहनकर दुकान जाता और पार्क में खेलने के बाद देर रात घर आता। 

अगर मैं घर में हाफ पैंट पहनती, तो दादी गुस्सा होने लगती थी। जब थोड़ी और बड़ी हुई तो दादी और माँ ने अचार खाने से रोकना शुरू किया। मुझे पता नहीं था कि लड़की होना और उसका बड़ा होना लोगों को अखरता है।

मेरी छाती के पास वह हाथ

बगल के पवन भईया मुझे अजीब नज़रों से देखते थे। एक दो-बार जब वह छाती के पास हाथ ले गए तो मैं सहम गई। मुझे समझ नहीं आया कि पवन भईया इतने कैसे बदल गएं? सीने के पास हाथ क्यों ले जाने लगे हैं?

हां, मेरा सीना उभरा था लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि सीना तो इनके पास भी है फिर यह खुद अपने सीने को क्यों नहीं स्पर्श करते हैं?

मैं उभरे सीने में उलझ गई थी। सोचा दादी से कहूंगी तो वह मेरा खेलना भी बंद करवा देंगी। छोटू से कहूं तो क्या वह समझेगा? हिम्मत करके माँ को बताया तो वह गुस्सा हुईं और पवन की माँ से उनकी काफी लड़ाई भी हुई।

मैंने माँ से कई बार इस बारे में पूछा कि ऐसा क्यों हुआ मगर उन्होंने कुछ नहीं बताया। केवल कहा कि यह हर लड़की के साथ होता है, इसलिए तुझे मना किया था कि हाफ पैंट में खेलने मत जाया कर।

स्कर्ट पर खून के धब्बे और चीख

लड़कियों को हमेशा ही ठीक से रहने के लिए कहा जाता है। मैं जब सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी तो एक दिन मेरी सहेली के स्कर्ट पर खून के धब्बे देखकर मेरी चीख निकल आई।

मेरी चीख अकेली नहीं थी। उस चीख में मेरी सहेली की चीख और तेज़ थी, जिसके स्कर्ट पर लाल धब्बे लगे थे। वह ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी। हम सबको लगा कि उसे कैंसर हो गया है मगर टीचर ने शांत रहने को कहा। उन्होंने लड़कों को क्लास से बाहर भेजा और उसकी माँ को बुलाकर उसे घर भेज दिया।

मैंने इस बारे में घर आकर मम्मी को बताया। हमारी बात दादी ने भी सुन ली और उन्होंने कहा इसे गर्म चीज़ेंं बिल्कुल मत दो। छोटू को दादी गोंद के लड्डू खिलाती थी और मेरे मांगने पर आधा देकर भगा देती थी। इसकी मैंने माँ से शिकायत की मगर कोई फायदा नहीं हुआ।

मेरी खुद की स्कर्ट पर लाल धब्बे थे 

फोटो प्रतीकात्म है। फोटो सोर्स- सोशल मीडिया

मैं समझ गई थी कि यह मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई है कि लड़की और लड़के को खून के धब्बे अलग करते हैं। मेरी बचपन की सहेली चम्पा मुझसे अक्सर मिलने आती थी और हम ढेर सारी बातें करते थे। 

एक दिन जब छोटू ने चम्पा को हाथ लगाया तो मुझे पवन भईया याद आ गएं और मैंने छोटू को थप्पड़ मार दी। उस दिन पिताजी ने घर आकर मुझे बहुत सारी बातें सुनाईं, जिसके बाद मैं कमरा बंद करके रोती रही। 

एक दिन गाँव से ताऊजी आएं और कहा, “बहुत मोटी हो रही हो, कुछ कम खाया करो”। मैं सोचने लगी कि घी के लड्डू और दाल में घी डालकर तो छोटू खाता है। मैं तो वह भी नहीं खाती मगर फिर मुझे ऐसा क्यों कहा गया?

चम्पा से मिलना बंद हो गया

चम्पा से मेरा मिलना अब बंद हो गया था। चम्पा ने मुझसे माफी मांगी क्योंकि उसे लगा कि उसकी वजह से छोटू और पिताजी से मेरी लड़ाई हो गई है मगर ऐसा नहीं था।  छोटू को थप्पड़ रसीद करके मैंने अपने दिल को ठंडक पहुंचाई थी। मैंने चम्पा को समझाया कि कितने सारे पवन भईया भी उस थप्पड़ में शामिल थे।

सभी सहेलियां पिकनिक के लिए बाहर घूमने जा रही थीं। मैंने पिताजी से आग्रह किया कि वह मुझे भी बाहर जाने दे क्योंकि वह इंटर की हमारी आखिरी पिकनिक थी और हम सब दोस्त इसके बाद कभी नहीं मिलते।

छोटू का क्लास भी हमारे साथ पिकनिक जाने वाले था, इसलिए पिताजी तैयार हो गएं। वहां हमने बहुत मस्ती की लेकिन जिस दिन वापिस आना था, उसी दिन शाम को चम्पा के साथ छोटू ज़बरदस्ती करते हुए पकड़ा गया और मैं तुरंत चम्पा के साथ खड़ी हो गई।

छोटू मुझे नफरत भरी आंखों से देख रहा था। मैंने चम्पा को पूरा सपोर्ट किया और प्रिंसीपल से छोटू को सख्त से सख्त सज़ा देने की रिक्वेस्ट भी की।

पिताजी ने घर आकर मुझे बहुत बातें सुनाईं, दादी ने कहा एक ही भाई है तेरा कौन पूछेगा अगर तू भाई की ही दुश्मन बन जाएगी?

मैं बागी हो गई

मुझे समझ नहीं आया कि छोटू ने चम्पा के साथ जो किया उसके लिए हर सज़ा कम थी लेकिन पिताजी और दादी लड़की-लड़का की उस मात्रा को समझा रहे थे। मैंने उस दिन पहली बार पिताजी और दादी से बहस की। 

मैंने समझ लिया था कि अब हर चीज़ जो एक लड़की करती है, वह बुरी ही होती है। छोटू मुझसे बहुत बुरी तरह नाराज़ हो गया था।

मैं माँ बनने वाली थी

मैं बाहर पढ़ना चाहती थी इसलिए घर में अपनी लड़ाई लड़ी। जब मैं बाहर पढ़ने गई वहां मुझे नये दोस्त और अपना करीबी दोस्त भी मिला। जिसके साथ मैंने शादी के ढेर सारे सपने सजा लिए थे लेकिन उससे पहले ही पिताजी ने छोटू के कहने पर एक जगह मेरी शादी तय कर दी।

मैंने मिन्नतें की लेकिन पिताजी को मना नहीं कर पाई। मेरी शादी हुई और वह सबकुछ हुआ जो एक स्त्री के साथ होता है। मेरे पति अच्छे थे या नहीं मुझे समझ नहीं आता था लेकिन उन्हें मेरा कहीं आना-जाना या बात करना पसंद नहीं था। 

पति का जानवरों जैसा बर्ताव

मैंने एक बेटी को जन्म दिया लेकिन मेरी सास और पति उतने खुश नहीं हुए। पति मुझसे रात को जानवरों जैसा बर्ताव करते थे और मैं चुपचाप अपने शरीर पर निशान बनवाती थी। माँ से कहती तो वह बोलती कि बेटा किस्मत है, क्या कर सकते हैं, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।

धीरे-धीरे मैं अपनी बेटी को बढ़ते देखने लगी। मैं फिर से गर्भवती थी लेकिन दूसरा बच्चा बच नहीं पाया। मेरे पति की नफरत और सास का रूखापन दोनों का पैमाना बढ़ गया था। मैं एक अच्छी औरत नहीं थी इसलिए लड़की को जन्म देने से क्या फायदा?

वह वंश नहीं चला पाएगी

यह सारे ताने दिल में लगातार छेद कर रहे थे। मेरी बेटी शुरू से दादी के रूखेपन को जीती हुई बड़ी होती गई। जेठ के बेटे को मेरे पति खूब प्यार करते और मेरी बेटी से हमेशा कहते थे कि भाई है तेरा। मुझे अपनी और छोटू की उस लड़ाई और खींच-तान याद आने लगती थी। 

मैंने ठान लिया था कि मेरी बेटी कोई मामूली बेटी नहीं साबित होगी। मेरी बेटी के अंदर एक आग थी, जो मेरे अंदर सुलगती रहती थी। वह दिन-रात पढ़ती और इतना पढ़ती कि मुझे उससे कहना होता कि बस कर मगर उसके अंदर तो जैसे ज्वाला थी।

उस साल उसका आईआईटी में सेलेक्शन हुआ। मैं खुशी से पागल हो गई थी मगर अभी भी मेरे पति खुश नहीं थे। उनका मानना था क्या कर लेगी इतना पढ़कर।

उसका एडमिशन हुआ फिर इंजीनियरिंग के चौथे साल में मेरी बेटी ने इसरो का फॉर्म भरा और उसमें सेलेक्ट होकर हम सबको चौंका दिया। मैं रोने लगी और खुशी के मारे पागल हो गई, मेरा सीना गर्व से फूला हुआ था।

आज मेरी बेटी ने उन सबको करारा जवाब दिया था, जो यह कहते थे कि बेटियां बेकार होती हैं।

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