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भारत में 23 मिलियन लड़कियां पहले पीरियड के दौरान स्कूल छोड़ देती हैं

शहरी जीवन के मुकाबले ग्रामीण जीवन में शिक्षा की जो स्थिति है, वह कोई खास अच्छी नहीं है। लड़कियों के लिए एक नहीं, बल्कि अनेक मुश्किलें हैं। शहरी जीवन में सभी के खानदान में कोई ना कोई होते हैं। जैसे- बुआ, चाची, मामा, आदि, जो बराबर तरीके से परिवार को शिक्षा के लिए संबोधित करते आ रहे हैं।

कहीं-ना-कहीं लड़कियों की शिक्षा के लिए उनको बल मिल जाता है। यदि हम बात करें गाँव में रहने वाली लड़कियों की तो आप देख सकते हैं कि उनको प्रेरित करने वाला पूरे गाँव में कोई नहीं है। 

समाजसेवी संस्थाएं ही करती हैं ग्रामीण लड़कियों को प्रेरित 

गाँव में मौजूद लड़कियों को यदि कोई प्रेरित करता है, तो वह इक्का-दुक्का समाजसेवी संस्थान हैं जो गाँव में कभी-कभार एक दो बार आकर थोड़ी जागरूकता फैला देते हैं। उनमें से भी ग्रामीण लोग यही कहते हैं, “मैडम जी बिटिया को स्कूल भेजेंगे तो क्या कोई पैसा मिलेगा?”

असल में उनकी इस सोच के पीछे उनका कसूर नहीं है, यह तो एक तोहफा है जो उनको सरकार ने विरासत मे दिया हुआ है।

23 मिलियन लड़कियां पहले मासिक धर्म की वजह से स्कूल छोड़ देती हैं। भारत में 71% किशोरियां माहवारी से पहले तक मासिक धर्म से अनजान रहती हैं। उनको इस विषय में कुछ नहीं पता होता है। भारत में घरों और स्कूलों में मासिक धर्म शायद ही कभी चर्चा का विषय रहे हों।

पूरे देश में सबसे खराब हालत इस समय बिहार की है। यहां का प्राथमिक कार्य कृषि पर आधारित है लेकिन किसान वर्ग के लोग अपने परिवार की भावी पीढ़ी को किसान ना बना कर पढ़ाना चाहते हैं। जब बात लड़कियों की आती है तो घर वाले असुरक्षित हो जाते हैं और उनको प्राइमरी स्कूल तक ही पढ़ने की इजाज़त देते हैं।

उनको लगता है कि मासिक धर्म शुरू होने के बाद उनको विद्यालय में नहीं भेजना चाहिए। कई लोग अंधविश्वास के शिकार हैं, तो कई लोग धार्मिक भावनाओं में बह जाते हैं। शोध में यही बात सामने आती है कि परिवारों में जागरूकता की बड़ी कमी है। ऐसे क्षेत्रों में बहुत सारे आयाम ऐसे हैं, जिनके द्वारा ऐसे क्षेत्र में बदलाव देखने को मिल सकते हैं। कुछ महत्वपूर्ण सुझाव हैं जिनको लागू करने में प्रशासन और आम लोगों को आने की ज़रूरत है।

स्कूल में काउंसलिंग सेंटर बनाए जाने की आवश्यकता 

विद्यालयों में काउंसलिंग सेंटर बनाए जाने चाहिए। ये लड़के और लड़कियों दोनों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन काउंसलिंग सेंटर्स में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। शिक्षा के महत्व को समझाना चाहिए। शिक्षकों को ऐसे बच्चों या लड़कियों का सर्वे करना चाहिए जो मासिक धर्म की वजह से स्कूल छोड़ रही हैं।

उनके माता पिता को बुलाकर उनकी काउंसलिंग करनी चाहिए, उनको महत्व बताना चाहिए। माहवारी बिल्कुल आम प्रक्रिया है। विद्यालयों को लेकर इस समय बिहार की हालत अत्यंत दयनीय है। उसके पास जाना तो बहुत दूर की बात, वहां कोई रुक भी नहीं सकता। पटना में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरी दोस्त अवनि अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “मैं जब नौवीं कक्षा में थी, उसी दैरान स्कूल में मुझे पीरियड्स शुरू हो गए। ना मेरे पास कोई कपड़ा था और ना ही कोई पैड। लड़के अक्सर बैग खोलकर लड़कियों के बैग से कपड़ा या पैड निकालकर चिढ़ाते थे।”

वो आगे बताती हैं, “मैं इसी वजह से यह सब चीजे़ें स्कूल नहीं ले जाती थी। वह दिन मुझे याद आता है जब मैंने पैड की जगह अपना पूरा रजिस्टर खत्म कर दिया था, खून फिर भी नहीं रुक रहा था। उस दिन मैंने खुद को पहली बार खुद ही कोसा था कि मैं लड़की क्यों हूं? काश उस समय स्कूलों में ऐसा प्रबंध होता ताकि मेरी कॉपी के पन्ने मेरे पीरियड्स के खून से सने हुए न होते।”

विद्यालयों में एक ऐसा प्रबंधन होना चाहिए कि वॉशरूम ठीक तरह से बनाया गया हो। लड़के और लड़कियों के शौचालय अलग-अलग हों। साफ सफाई का पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।

सिलेबस में पीरियड्स से सम्बंधित चैप्टर्स रखे जाएं

देश में बड़ी-बड़ी संस्थाओं में आज भी सेक्स एजुकेशन को नैतिकता के विलोम में ही समझा जाता है। ज्ञान के अभाव की वजह से आज भी ना जाने कितनी किशोरियों की ज़िंदगी बर्बाद हो रही है। बच्चों को शुरुआत से ही सीख दी जानी चाहिए कि माहवारी एक सामान्य प्रक्रिया है।

वैसे इसे सिलेबस में शामिल करना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है, क्योंकि आज भी कक्षा 8वीं से लेकर 10वीं कक्षा तक के रिप्रोडक्शन वाले पाठ को ज़्यादातर शिक्षक इग्नोर कर देते हैं और पढ़ाते भी नहीं हैं।

बच्चे भी अपने आप ही हंसी-मज़ाक में चैप्टर्स के चित्रों से एक-दूसरे को दिखाकर अजीब फीलिंग का शिकार होते हैं। बहरहाल, यह बहुत ज़रूरी है कि सिलेबस में यह सब विषय शामिल किए जाएं जिससे जागरूकता फैले।

मेडिकल सुरक्षा का इंतज़ाम हो

विद्यालयों में मेडिकल के लिए अलग से कमरा होना चाहिए। वैसे कई स्कूलों में नाम के लिए कुछ कमरे होते तो हैं। नाम के लिए घर में बच्चों के खेलने वाले फर्स्ट एड बॉक्स से वह कमरा सुसज्जित होता है। इसके लिए एक टीम का गठन किया जाना चाहिए, जो विशेषकर लड़कियों के मासिक धर्म से संबंधित हो।

कभी भी किसी लड़की को कोई परेशानी हो या पीरियड्स की वजह कहीं दर्द हो रहा हो तो उनको तुरन्त सहायता प्रदान की जानी चाहिए। ऐसे में लड़कियों का डर काफी कम हो सकता है। आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी हो सकती है।

देश को सुधारने के लिए जिन तरीकों को अपनाने की ज़रूरत है, उनमें से एक यह भी है कि देश के स्कूलों में लड़कियों का आंकड़ा कम होने के बजाय बढ़ना चाहिए, यह बहुत ज़रूरी है। शिक्षा के क्षेत्र में हमको मिलकर काम करने की ज़रूरत है।

लड़कियों के स्कूल छोड़ने की सबसे बड़ी यही वजह है कि उनको मासिक धर्म शुरू होने के बाद स्कूल से निकाल दिया जाता है। ग्राउंड लेवल पर बात करनी बहुत ज़रूरी है। इसके लिए हमें पुख्ता कदम उठाने होंगे।

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