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क्या नए श्रम कानून में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों को शामिल नहीं किया गया है?

कृषि सुधार बिल के पास होने का हंगामा खत्म भी नहीं हुआ था कि उसके बाद सरकार श्रम सुधार बिल ले आई। आसान भाषा में कहें तो इस बिल के कारण मालिक को अपने नए कर्मचारी को रखने या निकालने के सन्दर्भ में ज़्यादा शक्तियां देने का प्रावधान है।

वहीं, इस पर श्रम मंत्री ने बताया, “श्रम सुधारों का उद्देश्य बदले हुए कारोबारी माहौल के अनुरुप एक पारदर्शी प्रणाली प्रदान करना है।”

श्रम सुधार के लिए 3 बिल लाए गए हैं। इनमें व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी परिस्थितियों, औद्योगिक संबंध कानून  और सामाजिक सुरक्षा बिल आते हैं।

श्रम कानून मंत्री की सलाह वास्तविकता से अलग

श्रम मंत्री ने इस बिल पर सदन को बताते हुए कहा, “राज्यों को उनकी ज़रूरत के अनुसार श्रम कानूनों में बदलाव करने की छूट दी गई है एवं लगभग 16 राज्यों ने पहले ही सरकार की अनुमति के बिना ही 300 से अधिक श्रमिकों के साथ फर्मों में बंद करने और छंटनी करने के लिए सीमा बढ़ाई है।”

श्रम मंत्री ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि 100 कर्मचारियों की सीमा उद्योगपतियों को नए लोगों को नौकरी पर रखने के लिए हतोत्साहित करती है, जिससे कोई भी उद्योगपति इस आंकड़े के पार जाने से खुद को रोकता है मगर इस बिल के आ जाने से निवेशकों को बड़े कारखानों की स्थापना और अधिक-से-अधिक श्रमिकों को रोज़गार के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

दूसरी ओर उन्होंने बताया कि इस बिल के आ जाने से कामगारों को ज़्यादा काम मिलने की संभावनाएं हैं। यह विधेयक कामगारों के हितों की रक्षा करेगा और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन और कर्मचारी राज्य भारतीय निगम के दायरे का विस्तार करके श्रमिकों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेगा।

उन्होंने यह भी कहा कि लगभग 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र के कामगारों को कवर करने के लिए एक सामाजिक सुरक्षा कोष होगा। सामाजिक सुरक्षा संहिता पर टिप्पणी करते हुए मंत्री महोदय ने कहा कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन का लाभ अब 20 या उससे अधिक कर्मचारियों वाली सभी फर्मों द्वारा उठाया जा सकता है, क्योंकि मौजूदा अनुसूची परिभाषित प्रतिष्ठानों को समाप्त कर दिया गया है और इसकेअलावा 20 से कम श्रमिकों वाले कर्मचारी ईपीएफ में शामिल हो सकेंगे। जबकि सरकार ईपीएफओ के लाभों को स्वरोज़गार वाले लोगों को भी फायदा देगी।

विपक्षी दलों की सार्थक दलील

श्रम मंत्री ने बताया कि नई संहिता के तहत कामगारों के हड़ताल के अधिकार को वापस नहीं लिया गया है। उन्होंने कहा कि हड़ताल से पहले 14 दिनों के नोटिस के प्रावधान का उद्देश्य कर्मचारियों और मालिकों के बीच बातचीत का माहौल बनाकर समस्या सुलझाने के लिए दिया गया है।

लोकसभा में विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने कहा कि अब प्रवासी मज़दूरों का डेटा बैंक तैयार करने का प्रावधान किया जा रहा है, क्योंकि सरकार प्रवासी मज़दूरों को लेकर काफी संवेदनशील है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था की जा रही है कि प्रवासी मजदूरों को उनके मूल निवास स्थान पर जाने के लिए नियोक्ता द्वारा साल में एक बार यात्रा भत्ता दिया जाए।

श्रम मंत्री ने बताया कि वर्तमान कानून में दुर्घटना होने की स्थिति में जुर्माने की राशि पूरी तरह से सरकार के खाते में जाती थी लेकिन नए कानून में जुर्माने की राशि का 50 प्रतिशत पीड़ित को देने की बात कही गई है।

दूसरी ओर काँग्रेस सहित प्रमुख विपक्षी दलों का कहना है कि यह श्रम कानून मजदूरों के विरोध में हैं। सरकार कामगारों से हड़ताल के अधिकार को पूरी तरह से पंगु बनाकर मज़दूरों को पूंजीपतियों से शोषित होने के लिए छोड़ रही है। पहले आर्थिक सुस्ती फिर लॉकडाउन के बाद श्रमिकों की हालत बद से बदतर हो चुकी है और अब यह श्रम कानून श्रमिकों को और भी ज़्यादा कमज़ोर बनाएगा।

विपक्ष का आरोप है कि यह विधेयक असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के एक बड़े हिस्से को छोड़ देता है। जैसे कि छोटी खदान, छोटे भोजनालय, निर्माण कार्य, कलपुर्ज़े की फैक्ट्री, निर्माण कार्य, ईट भट्टे आदि कामगार। ऐसे श्रेणी के कर्मचारी जो संगठित क्षेत्रों में अनौपचारिक तौर पर काम कर रहे  हैं, उन्हें एक तरह से अकेला  छोड़ दिया गया है।

श्रमिक समुदाय के अनुभव और राय

उतरप्रदेश के ज़िला हरदोई से दिल्ली हरियाणा में खेती में मदद करने वाले मोहन (22) का कहना है कि उनकी तरह हजारों श्रमिक ऐसे हैं, जो राज्य के भीतर एवं बाहर भी एक जगह से दूसरी जगह पर पलायन करते हैं। वे दिहाड़ी पर काम करते हैं, उनका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। इस कानून में उनके लिए कोई ठोस प्रावधान क्यों नहीं है?

दूसरी ओर देश की राजधानी में क्लस्टर बस डिपो में बस चलाने वाले सुरेश ने बताया कि यह बिल ने हड़ताल की परिभाषा के तहत किसी उद्योग में कार्यरत 50% या उससे अधिक श्रमिकों द्वारा एक निश्चित दिन पर आंशिक अवकाश को शामिल किया गया है। यह श्रमिकों के सशक्तिकरण पर हमला करता है एवं उन्हें मूलभूत समस्याओं पर साथ आने से रोकता है।

मध्यप्रदेश के चिनाई मिस्त्री (45 वर्ष), जो इस वक्त दिल्ली में हैं, कहते हैं, “इस बिल में हमारे लिए क्या कुछ है? हमारे मालिक तो बदलते ही रहते हैं। जहां ठेका मिल जाता हैं वहीं काम कर लेते हैं, जब नहीं मिलता तो ज़मींदारों के यहां दिहाड़ी भी कर लेते हैं, क्या सरकार हमे भी देने जा रही है?”

सदन में दिए गए बयान के अनुसार, इन विधेयकों पर 6000 से अधिक टिप्पणियां ऑनलाइन प्राप्त हुई हैं। जिसके बाद  यह बिल स्थाई समिति को भेजा गया था एवं स्थाई समिति की 233 सिफारिशों में से 176 को स्वीकार किया गया था मगर किसान बिल की तरह देश का कामगार इन बिलों को कितना पसंद करता है, यह देखने लायक होगा।

साथ में देखने लायक होगा कि सरकार नए श्रम कानून के साथ नए रोज़गार पैदा करने एवं श्रमिकों के हितों की रक्षा करने में किस प्रकार राजस्व बनाकर रख पाती है?


संदर्भ- नवोदय टाइम्स

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