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आर्थिक रूप से सशक्त कब होंगे देश के अन्नदाता?

सन् 1965 में देश के प्रधानमंत्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था एवं सोमवार को व्रत रख पूरे देश का पेट भरने के सपने के साथ लाल बहादुर शास्त्री ने हरित क्रांति की ओर कदम बढ़ाया था। स्वामीनाथन जी के एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि आज़ादी के समय देश में प्रति हैक्टेयर उपज 8 किलोग्राम हुआ करती थी।

जापान, अमेरिका और सोवियत यूनियन जैसे देशों से अलग-अलग बीज की वैरायटी भारत की भोगोलिक पारिस्थि में जांची-परखी जा रही थी। किसानों की हर संभव मदद करने की कोशिश करने में प्रशासन जुटा हुआ था।

तब के किसानों को सरकार आत्मबल प्रदान करती थी, अब छीन लेती है

82 वर्षीय आर.के. यादव बताते हैं, “उस दौर में किसानों का बोल-बाला था। किसान उस समय भी आर्थिक रूप से ज़्यादा सशक्त नहीं थे मगर देश के उद्योगपतियो और कारोबारियों से लेकर देश के प्रधानमंत्री किसानों की प्रशंसा खुले मंचो पर किया करते थे लेकिन समय के साथ किसानों की उपज तो बढ़ी मगर परिस्थियां भी बदल गईं। कुछ किसानों ने कृषि में काफी पैसा कमाया है, तो एक बड़ा हिस्सा कृषि छोड़ चुका है या छोड़ने पर मजबूर है।”

वो आगे बताते हैं कि खेती में उस समय बचत नहीं थी। हमारे खेत पानी में डूबा करते थे। जिस वजह से आर्थिक बदहाली हुआ करती थी। पिताजी ने पहले ब्रिटिश फौज एवं बाद में आज़ाद हिन्द फौज को चुना था। वो पंडित नेहरु एवं बाद में लाल बहादुर द्वारा किए गए कृषि सुधार एवं कृषि के लिए जी तोड़ मेहनत की भी तारीफ करते हैं।

उन्होंने बताया कि 19 अक्टूबर 1965 में जब लाल बहादुर शास्त्री की बनाई कमेटी की रिपोर्ट मान ली गई थी, तो पहली बार 1966 में धान एवं गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य फिक्स हुआ। उसी  के बाद तरक्की की राह दिखी।

दिल्ली के किसानों के मौजूदा हालात

समय के साथ-साथ हाइब्रिड अनाजों ने किसानों को सशक्त बनाया है मगर काफी सारे किसान परिवार से आने वाले लोगों ने कृषि से दूरी बनाई है। देश में रिकॉर्ड तोड़  उत्पादन के बाद भी बड़ी संख्या में किसान सड़कों पर उतरे हुए हैं। इस पर दिल्ली के किसान परिवार से आने वाले 25 वर्षीय  दीपक कहते हैं,

कृषि सुधार के नाम पर सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के अलावा सारे सपने दिखा रही है। लाला भाई पार्ले का बिस्कुट उच्चतम मूल्य (MRP) पर बेचता है, जो पांच रुपये है और सरकार हमसे न्यूनतम राशि भी छीन लेना चाह रही है। वैसे भी पहले ही हमारे गाँव की ज़मीन DDA के अधीन आ गई है।

उनके अनुसार कभी भी खेतों को इमारतों में बदला जा सकता है। जिससे उनकी कृषि एवं परिवार की जीविका पर संकट आ सकता है। दीपक कहते हैं कि पहले ही लोग खेती को छोड़ दूसरे क्षेत्रो में जीविका की संभावनाएं तलाश रहे हैं। अब एम.एस.पी एवं सरकारी सब्सिडी का ना होना दिल्ली के किसानों की कमर तोड़ रहा है।

हरियाणा के किसानों के अनुभव

दूसरी ओर हरियाणा के गुरुग्राम ज़िले में आने वाले माक्दोला के 40 वर्षीय किसान सतीश कृषि क्षेत्र में एवं नए कृषि बिल में काफी सारी संभावनाए देखते हुए कहते हैं, “अगर किसान सीधे तौर से रिटेल क्षेत्र से जुड़ सकता है, तो उसमें मुझे काफी फायदा नज़र आता है। नया कृषि बिल कुछ ऐसा करने के लिए ही है।” वर्ष 2019 में हरियाणा सरकार द्वारा “कृषि रतन” सम्मान से सम्मानित सतीश, बागवानी एवं सब्ज]fयों की खेती करते हैं।

खेती में उच्चतम तकनीकों ड्रिप सिंचाई, टनल और स्टगर का इस्तेमाल करने एवं बेहतरीन परिणाम देने हेतु उन्हें यह सम्मान दिया गया है। सतीश कहते हैं कि कृषि एक संभावनाओ से भरा क्षेत्र है मगर इसके लिए परम्परागत कृषि के तरीकों में बदलाव की आवश्यकता है। इसलिए वो अपने परिवार के युवाओं को कृषि क्षेत्र में ही उच्चतम शिक्षा दिला रहे हैं।

हरियाणा के पटोदा गाँव के एक किसान 45 वर्षीय अशोक ने लगभग 4 साल पहले 65% की सब्सिडी पर पोली हाउस लगाया था। उसी में वो हर प्रकार की सब्ज़ियों की खेती करते हैं। अशोक बताते हैं कि परम्परागत खेती में उन्हें एक फसल के तैयार होने के बाद ही कुछ पैसे मिल पाते थे मगर खर्च प्रतिदिन के थे। इसलिए उन्होंने सब्ज़ियों का रुख किया, जो उन्हें साल के 12 माह आमदनी देती है।

उन्होंने बताया कि उन्हें हमेशा कामगारों की आवश्यकता होती है लेकिन सब्ज़ी उत्पादन में बचत उन्हें और उनके कामगारों को अच्छा मुनाफा दे रही है. अशोक के अनुसार, सब्ज़ी बेचने के लिए  कोई एक ठिकाना नहीं होता है, जिससे  सब्ज़ियों की बिक्री को वो सबसे बड़ी समस्या बताते हैं। सब्ज़ियों के रेट में समय-समय पर उतार-चढ़ाव उन्हें परेशान करते हैं।

मंडी का ना होना एवं निकटम मंदी का 35 किलोमीटर दूर होना भी उनकी परेशानी को बढ़ा देता है। नए कृषि बिल पर उन्होंने कहा, “सरकार ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ के माध्यम से किसानों से सामान खरीदती है मगर उनका मैसेज देर-सवेर मिलता है। फसल को पहले घर में लाना, स्टोर करना और मैसेज का इंतज़ार करना काफी परेशानी से भरा है। इसलिए वो नए बिल में इस परेशानी का हल तलाश रहे हैं।

कृषि के क्षेत्र में ज़मीनी स्तर पर काफी परेशानियां हैं

कृषि में ज़मीनी स्तर पर काफी समस्याएं हैं, जिसको देखकर युवा तो युवा लेकिन बुज़ुर्ग भी अपनी अगली पीढ़ी को कृषि से थोड़ी दूरी बनाए रखने की सलाह देते नज़र आ रहे हैं। कुछ युवा किसान बताते हैं कि परम्परागत कृषि में भविष्य देखने से बेहतर है कि वो ज़मीन को बेचकर कुछ पैसों से अपना ऐसा काम कर पाएं जिससे वो कृषि में ही बफर स्टोरेज, बिक्री के नए विकल्प या कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग के क्षेत्र में काम कर पाएं। जिससे वो कृषि में होने वाले परिश्रम को कम करने के साथ-साथ अपनी आय भी बढ़ा पाएं एवं बाज़ार में भविष्य की नई संभावनाएं तलाश कर सकें।

कृषि एक विविधताओं से भरा एवं विविधताओं पर आधारित क्षेत्र है, जिसमें  किसान, कृषि को अलग-अलग नज़रिये से देखते हैं। पिछले कुछ दशकों के मुकाबले कृषि भूमि का छोटा होना एवं किसानों का कृषि छोड़ना जारी है। कहीं पानी का खारा होना, तो कहीं नहर का सूख जाना, कहीं ज़मीन का बंजर हो जाना, तो कहीं सब्सिडी तो कहीं मंडी का अभाव होना इसकी वजहें हैं।

किसानों को अलग-अलग समस्याओं का सामना करना पड़ता है मगर देखने लायक होगा कि नए कृषि सुधार या नई पीढ़ी कृषि को कौन-सी नई दिशा एवं दशा देती है।

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