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क्या गाँधी और बाबा साहब ने इसी भारत का सपना देखा था?

भारत एक विशाल राष्ट्र है जिसमें दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी रहती है। इस आबादी में विभिन्न जाति, धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं जो देश के साधनों से अपनी ज़िंदगी जीते हैं। देश की आज़ादी को इतने साल बीत चुके हैं लेकिन हम आज भी जातिवाद में फंसकर दलित और सवर्ण की लड़ाई लड़ रहे हैं।

इस समय दुनिया की बात करें तो सबसे बड़ी बीमारी कोरोना है। भारत में भी इस महामारी का बुरा प्रकोप पड़ा है, लाखों लोग संक्रमित हो चुके हैं, इस वायरस की वैक्सीन तो कभी-ना-कभी मिल जाएगी लेकिन क्या हमारे देश का एक बड़ा तबका जो जातिवाद से जूझ रहा है, उसकी वैक्सीन हम ढूंढ पाएंगे? क्या हमारा जो कर्तव्य जाति और धर्म के प्रति है, इन सबसे ज़्यादा कर्तव्य इस राष्ट्र के प्रति नहीं है?

कहां गया बाबा साहेब अंबेडकर का भारत?

क्या हम उस ज़ुर्म व हिंसा के दौर की मानसिकता से आगे बढ़कर देश के विकास में अपना योगदान देंगे या फिर वही हज़ारों सालों की जाति व्यवस्था की लड़ाई ही लड़ते रहेंगे? ऐसा लगता है कि इस देश में कोई हिंदू है, कोई मुसलमान है, कोई दलित है और कोई ब्राह्मण है! हमारे भारत देश में भारतीयों को ढूंढना मुश्किल सा हो गया है।

बाबा साहब ने देश के संविधान को ऐसे लिखा था जिससे देश के हर नागरिक को बराबरी का हक मिल सके मगर अफसोस कि आज भी आज़ादी के इतने वर्षों बाद दलितों को बराबरी का हक नहीं मिला पा  रहा है। देश में  आज भी मनुवादी मानसिकता के लोग अपनी जातिवादी मानसिकता नहीं छोड़ पा रहे हैं। ऐसे ही ना जाने कितनी खबरें मिल जाती हैं जिन्हें सुनकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं, मन कसोट सा जाता है और हम असहाय और कमज़ोर से पड़ जाते हैं। 

अपराध के शिकार होते दलित समुदाय के लोग

एक ताज़ा मामला यूपी के हाथरस का है, जहां 19 साल की लड़की के साथ चार दबंगों ने गैंगरेप किया, लड़की किसी को कुछ ना बता सके इसलिए उसकी जीभ तक  काट दी गई। यही नहीं, गर्दन में स्पाइनल इंजरी तक आ गई। शर्म तो तब आती है जब पुलिस प्रशासन इस मामले  को दबाने की कोशिश करता है और आठ दिनों तक गैंग रेप की धारा लगाने से बचता रहता है। वहीं, समाज और सारे संगठन के लिए जैसे यह कोई खबर ही ना हो।

ज़िंदगी और मौत से जूझ रही बच्ची आखिर में काल के गाल में समा गई। केवल यही मामला जातिवाद को दर्शाने के लिए नहीं है, कई सारे ऐसे मामले हैं जिसको सुनकर आपका दिल दहल जाएगा। आपको बता दें कि बुन्देलखंड में  एक ऐसा गाँव है, जहां आज भी दलित बुज़ुर्ग उच्च जाति के कहे जाने वाले सवर्णों को देखकर अपनी चप्पल उतार देते हैं। देश में जहां महिलाओं को देवी का रूप दिया जाता है, उन्हें पूजा जाता है, वहां की महिलाओं को भी अपने चप्पल उतारकर सिर पर रखना पड़ता है।

राजस्थान के टोंक में दलित लड़की के साथ बलात्कार की घटना और जोधपुर में दलित समाज के डूंगर राम मेघवाल को राजपूतों ने दिनदहाड़े मार दिया था, देश का हर कोना ऐसी खबरों से भरा पड़ा होता है। वहीं, मध्य प्रदेश के ही उज्जैन में एसडीएम का आदेश होता है कि दलितों को शादी से तीन दिन पहले पुलिस को सूचना देनी होगी। हालांकि दलित संगठनो के विरोध के बाद यह आदेश निरस्त करना पड़ गया था ।

हम शिक्षा, अध्यापन, साहित्य, कला, संस्कृति, राजनीति और खेल की बात करें तो समाज का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां  पर भेदभाव ना पसरा हुआ हो। करियर तबाह हो जाने के किस्से और अपमान की घटनाएं किसी से छुपी नहीं है। बीबीसी की एक महिला पत्रकार मीना कोतवाल इसका एक जीता-जागता सबूत  हैं।

हम अगर पीछे कुछ महीनों के आकड़ों की बात करें तो तमिलनाडु में एक महीने में दलितों पर अत्याचार के 25 मामले आए थे। ऐसे मामलों में 40% की वृद्धि हुई।  एक एनजीओ के अध्ययन के अनुसार, जब से लॉकडाउन शुरू हुआ तब से हर राज्य में जाति आधारित हिंसा की कम-से-कम 30 बड़ी घटनाएं हुई हैं।    

हम अपनी किताबों में अस्सी व नब्बे के दशक में पढ़ा करते थे, ‘भारत मेरा देश है, समस्त भारतीय मेरे भाई-बहन हैं, मैं अपने देश से प्रेम करता हूं , मुझे इसकी विपुल एवं विविध जातियों पर गर्व है।” लेकिन आज देश में जो जातिवादी अराजकता और भेदभाव का माहौल है, ऐसी प्रतिज्ञा दम तोड़ती नज़र आती है।

राजनीति के चक्कर में व कुर्सी पाने की चाहत में तथा समाज में जातिवादी व्यवस्था की जड़ों को सींचने का काम करके अपना उल्लू सीधा करने वाले लोगों ने भारतीयता की जड़ों को खोखला कर दिया है। 

क्या बाबा साहब अंबेडकर ने कभी ऐसे देश की कल्पना की थी? क्या दलित उत्थान का जो सपना बाबा साहेब ने देखा था उसका यह रूप था? क्या गाँधी का आज़ाद भारत ऐसा था जो एक देश में कई वर्गों में बंटकर राष्ट्र का नुकसान करे? क्या हम देश को ऐसा समाज नहीं दे सकते हैं जहां जीवन जीने के समान अवसर मिले, जिसमें आय के साधनों पर सभी का हक हो और कोई जाति-पाति का भेद भाव ना रहे?

हमें समझना होगा कि देश को बांटने वाले तत्व आज भी सक्रिय हैं, कभी फूट डालो व राज करो की नीति अपनाकर अंग्रेज़ों ने देश पर राज किया था, आज उसी नीति का फायदा लेकर देश में राजनीति हम पर भी राज कर रही है। हमें इन सबसे हटकर ज़ोर-ज़बरदस्ती के राज की ओर नहीं, बल्कि कानून के राज की ओर कदम बढ़ाना जरूरी है।

हमारा देश ऐसा हो जहां कोई ना हिंदू हो, ना ही कोई मुसलमान हो, ना कोई  दलित या सवर्ण हो, बल्कि सब भारतीय हों और हम गर्व से कह सकें कि मेरा भारत महान है।

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