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कॉलेज के सफर को दर्शाती मेरी डायरी का एक हिस्सा

प्रिय क्रान्ति,

मैं सुबह साढ़े नौ बजे सोकर उठा मगर तब तक एक क्लास का समय निकल चुका था। जल्दी-जल्दी बिना नहाए तैयार हुआ और नेहरू विहार बस स्टैंड से ई-रिक्शा पकड़कर विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन पहुंचा। रिक्शे में पांच लोग बैठते हैं मगर इसमें तीन लोग थे। रोड पर गड्ढे होने के कारण धक्के कुछ ज़्यादा ही लगे। 

मेट्रो गेट नम्बर 1-2 से 3-4 की ओर जाने के लिए हाईवे पार करना पड़ता है। बस, कार, ट्रैक और बाइक्स का लम्बा जाम होने के कारण इस पार से उस पार जाने में पन्द्रह मिनट लग गए। देश की राजधानी, महानगर दिल्ली में ट्रैफिक जाम लगना आम बात है।

यातायात नियमों के मुताबिक गाड़ी चलाने की स्पीड और आत्मसुरक्षा के साधन निश्चित किए गए हैं। मगर लोग हाई-स्पीड में बिना हेलमेट के गाड़ी चलाते हैं और जाने-अनजाने में दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। 

फोटो साभार- सोशल मीडिया

विद्यार्थियों के आंदोलन

आज के युवा फोन पर बात करते हुए, ध्रूमपान के साथ नशे में गाड़ी चलाते हैं फिर इसका परिणाम भुगतते हैं। गेट नम्बर 3-4 पर ई-रिक्शों की भारी संख्या होने के बावजूद मुझे वहां से हंसराज कॉलेज जाने के लिए रिक्शा नहीं मिला क्योंकि अधिकतर रिक्शे गर्ल्स कॉलेज, दौलतराम और मिराण्डा हाऊस की सवारियां बिठा रहे थे, जो कॉलेज से पहले पड़ते हैं इसलिए मुझे थोड़ा दूर चलकर मेनरोड से रिक्शा लेना पड़ा। 

रास्ते में मैंने देखा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी की वॉल ऑफ डेमोक्रेसी पर छात्र राजनैतिक पार्टी, क्रांतिकारी युवा संगठन (KYS) के पर्चे चिपके हुए थे। जिनपर लिखा हुआ था, स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (SOL) ने भी बिना स्टूडेंट्स को अवगत कराए DU की भांति सेमेस्टर परीक्षा सिस्टम (CBCS) लागू कर दिया है। यह फैसला एसओएल (SOL) और दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) ने मिलकर लिए हैं जो स्टूडेंट्स के लिए अन्याय है।

आगे लिखा था, UGC के रवैये पर हल्ला बोल, छात्र-छात्राओं के साथ अत्याचार नहीं सहेंगे। KYS का छात्र-आन्दोलन करना उचित है और यह होने भी चाहिए क्योंकि क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं। 

देश की टॉप यूनिवर्सिटीज़ में छात्र-छात्राओं के साथ ज़्यादा ही अन्याय हो रहे हैं। कभी बेवजह फीस बढ़ा दी जाती है तो कभी सिलेबस बदल दिया जाता है और लड़कियों को हॉस्टल से रात में बाहर जाने पर पाबंदी लगाई जाती है जबकि लड़के रात-रात भर हॉस्टल से बाहर कैम्पस में आज़ाद घूमते हैं। 

DU की छात्राओं ने कुछ दिनों पहले अपनी आज़ादी के लिए और पाबंदियों को हटाने के लिए ‘पिंजड़ा तोड़ों आंदोलन’ किया था, जो आज के लिए परम आवश्यक है।

फोटो साभाक – Flicker

वाहनों की चेकिंग हो रही थी

आगे चलकर आर्ट्स फैकल्टी के पास पुलिस बैरिकेट लगे हुए थे और चार ट्रैफिक पुलिसवाले वाहनों की चेकिंग कर रहे थे। मेरे रिक्शे के जस्ट पीछे स्कूटी से आने वाली सुंदर युवती हेलमेट लगाने के बजाय हाथ में लटकाए हुए थी तो पुलिस ने उसे रोककर डांटा।  जिसपर रिक्शे के ड्राइवर ने कहा,

मैडम हेलमेट क्यों लगाएंगी? इन्हें तो अपनी सूरत दिखानी होती है।

रिक्शेवाले ने हंसराज हॉस्टल गेट पर उतार दिया। 10:40 से 11:40 तक ‘अस्मितामूलक विमर्श और हिन्दी साहित्य’ विषय की क्लास चली। डॉ. प्रेम प्रकाश मीणा सर ने स्त्री विमर्शवादी कविता “मैं किसकी औरत हूं” का अध्यापन कराया, जिसकी रचयिता सविता सिंह हैं। 

कविता की मूल संवेदना यह है कि पितृसत्तात्मक समाज में औरत की कोई पहचान नहीं है। यहां उसे सिर्फ एक उपभोग की वस्तु माना जाता है, इससे ज़्यादा कुछ नहीं। 

एक औरत को हमेशा किसी की पत्नी, बहन या बेटी के नाम से ही जाना जाता है, जबकि सविता सिंह इस पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं और कहती हैं कि मैं किसी की औरत नहीं हूं। मैं अपना खाती हूं, जब जी चाहता है तभी खाती हूं और मैं किसी की मार नहीं सहती।  

एक औरत को अपनी पहचान खुद बनानी होगी बिल्कुल आत्मनिर्भर और सशक्त बनकर तभी इस समाज का कल्याण होगा और व्यवस्था में सामंजस्य बन सकेगा।

11:40 से 12:40 तक ‘पाश्चात्य काव्यशास्त्र’ विषय की क्लास चली। इसमें डॉ. नृत्य गोपाल शर्मा सर ने ‘मिथक’ के बारे में समझाया। उन्होंने कहा,

कुछ वजहों से मिथक जैसे, रामायण या महाभारत आधुनिक भारत के इतिहास भिन्न होते हैं।

जबकि मैंने सर से डिबेट करके यह सिद्ध करने की कोशिश की कि मिथक भी इतिहास है। मैं मिथक को भी इतिहास मानता हूं और सबको मानना भी चाहिए क्योंकि राम-मन्दिर अयोध्या और बाबरी मस्ज़िद के बीच के विवादों को कोई झुठला नहीं सकता।

तुमसे मुलाकात

12:40 से 01:00 के बीच लंच हुआ तब हम दोस्तों के साथ कैंटीन गए। तब मैंने देखा कि मेरी गर्लफ्रेंड क्रान्ति सिंह अपने क्लासमेट्स के साथ लंच कर रही है। 

इस प्रेयसी से मेरी कुछ दिनों से बात नहीं है, जो शायद ठीक ही है क्योंकि आज का ज़माना ऐसा ही चल रहा है और कॉलेज लाइफ में तो प्रेमी-प्रेमिकाओं के रिलेशन मुश्किल से अधिकतम साल-छः महीने तक ही चल पाते हैं और इससे भी बड़ी बात यह है कि दिल्ली जैसे शहरों में एक लड़के की कई गर्लफ्रैंड और एक लड़की के कई बॉयफ्रेंड रहते हैं, जो मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं।

फोटो साभार- Pixabay

लंच में हमलोगों ने रोटी-सब्जी, मसाला डोसा और अंडा-चाऊमीन लिया फिर सारे दोस्त अलग-अलग हो गए और मैं लाइब्रेरी गया। जहां से चार किताबें घर के लिए इश्यू करवाई। जिनमें साहित्य, सिनेमा, समाज, मीडिया, सोशल मीडिया और विमर्श जैसे विषय समाहित हैं। लगभग 2 बजे कॉलेज के मेन गेट से ई-रिक्शा लिया और विश्वविद्यालय आ पहुंचा। 

वहां 20 रुपए का अनानस खाए और फिर दूसरा रिक्शा पकड़कर नेहरू विहार आ गया, जहां मेरा फ्लैट छठे फ्लोर पर है। फ्लैट तक तकरीबन 80-90 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। इतनी ऊंची चढ़ाई में सबकी हालत पस्त हो जाती है मगर यही हम युवा स्टूडेंस्ट्स का संघर्ष है।

आपका, कुशराज
झाँसी बुन्देलखण्ड

 

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