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“यौन शोषण, यह तो आम बात है”

पिछले कई महीनों से अपनी मानसिक समस्याओं से जुझ रही थी। थेरेपिस्ट ने दवाओं के लिए मनोचिकित्सक से मिलने का सुझाव दिया। प्रैक्टो नाम की वेबसाइट से एक डॉक्टर की जानकारी ली और उसी दिन उनसे मिलने चली गई। इस बात से अनभिज्ञ कि मेरे साथ क्या होने वाला है।

अपनी कायरता पर शर्म आई कि मैं आत्मसम्मान को नहीं बचा पाई

मीटिंग की शुरुआत से ही उस व्यक्ति की नज़र मेरी छाती पर थी। हालांकि इसमें मेरे कपड़ों का कोई दोष नहीं था, क्योंकि ज़्यादातर औरतों के साथ हुए दुर्व्यवहार के पीछे उसके कपड़ों को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। बहरहाल, मेरे कपड़ों में मेरा पूरा शरीर ढका हुआ था। मेरे स्तनों के आकार की झलक भी नहीं आ रही थी।

फिर भी उसकी नज़र ना जाने क्या ढूंढने की कोशिश कर रही थी? मुझे अपनी कायरता पर शर्म आई कि मैं अपने आत्मसम्मान को नहीं बचा पा रही हूं। वैसे यह बात कितनी आम है जो हमारी नियति है और अवचेतन रूप से हमे स्वीकार्य भी है। चूंकि यह घटना तो हर औरत के साथ रोज़ होती है। इसमें क्या अलग है? यह हमारे ऊपर भी एक सवाल है कि हमने अपने साथ हुए गलत व्यवहार को इतना समान्य कैसे कर दिया?

खैर, बातचीत फिर भी आगे बढ़ी और वह मेरी छाती निहारता रहा। मैंने संकुचित होकर अपनी जैकेट की चेन लगा ली। फिर भी शायद कुछ देखने की उसकी आशा खत्म नहीं हुई थी, तो मैंने अपने हाथ बांध लिए। मैं निगाहों से अपनी असहमति लगातार दर्ज़ कर रही थी लेकिन शायद वह समझ नहीं पाया।

मुझसे कई सवाल पूछे मगर पूछने का ढंग बेहद अजीब था

मेरी सेक्स लाइफ से सम्बंधित सवाल सुनकर मुझे असुविधा महसूस हुई। मैं उस वक्त भी ना नहीं कह पाई। कुछ समय बाद शारीरिक प्रशिक्षण करते वक्त उसने स्टेथोस्कोप से मेरे स्तन के अगले हिस्से पर ज़ोर डाला। यह बेहद आपत्तिजनक था। दिल छाती के इस भाग में तो नहीं होता!

मैंने खुद को पीछे किया और एक मिनट तक स्तब्ध रह गई। फिर हिम्मत जुटाकर कहा कि ये हरकत मुझे अनुचित लगी। यह सही तरीका नहीं है मगर उस व्यक्ती ने माफी मांगना भी ज़रूरी नहीं समझा। मुझे लगा इस वक्त मुझे शांत रहकर यहां से सही-सलामत निकलना है। तो अंत तक खुद को संभाले रखा और आखिरकार वहां से निकल आई। उस समय भी मेरे पांव कांप रहे थे।

घर पहुंचकर अपने करीबी लोगों को सूचित किया। सभी ने कहा कि मुझे पुलिस बुलानी चाहिए थी। मुझे अभी भी अपने डरों पर शर्म आती है कि उस समय भी मैं खुद पर ही सवाल कर रही थी के शायद मैं ही गलत समझ रही हूं।

शायद उस व्यक्ति का वह उद्देश्य नहीं था। क्यों मेरे और मेरी जैसी अनेक महिलाओं के मन में यह शंका बैठी हुई है कि हम ही गलत सोच रहे हैं? इतनी हीन भावना कहां से आ रही है कि अपने शोषण को समझना भी हमारे लिए इतना मुश्किल है?

मैंने सोचा जो हुआ वो ठीक नहीं था और मुझे आवाज़ उठानी चाहिए। बात यहां शोषण के मात्रा की नहीं, स्वयं शोषण की है। रोज़ाना कितनी औरतों के साथ बसों में, ट्रेनों में, दफ्तरों में, स्कूलों में छोटे या बड़े पैमाने पर इस तरह का दुर्व्यवहार होता रहता है, जो किसी से कह भी नहीं पातीं और जीवन के अन्य संघर्षों में इसे भी शामिल कर लेती हैं।

यह क्यों हुआ?

यह सवाल सबसे बड़ा है। यह मानसिकता कहां से पैदा होती है कि मैं किसी महिला के शरीर को बिना उसकी मर्ज़ी के छू सकता हूं? इतनी स्वच्छंदता कहां से आती है? इस समय जब आदमी और औरत कंधे-से-कंधा मिलाकर चल रहे हैं, एक समुदाय के कुछ व्यक्ति इतनी उद्दण्ड आज़ादी के हकदार हैं कि दूसरे की स्वतंत्रता को नोंच डालना चाहते हैं?

बात सिर्फ महिलाओं की भी नहीं है, शारीरिक शोषण तो मर्दों का भी होता है, मर्दों के द्वारा ही! ऐसे लोगों द्वारा छोटे और जवान लड़कों के शरीरों को भी खिलौना समझा जाता है। एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लोगों को भी शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी जाती है। यह बहुत दुखद है। मुद्दा किसी विशिष्ट अंग का नहीं, ब्लकि सत्ता और शासन का है।

मैं ना जाने क्यों पुलिस में शिकायत करने से हिचक रही थी। अभी भी वही ख्याल सर्वोपरि था कि यह तो होता रहता है। इसमें पुलिस से शिकायत क्या करें। यह हिचक मेरी सोच के बीच आ रही थी। क्या चुप रहना सही है? 

अभी भी मैं उस व्यक्ति के भले के बारे में सोच रही हूं। यह क्या है, जो हमें रोकता है? फिर भी मुझे अपनी अस्वीकृति कहीं तो बतानी ही थी। सोचा प्रैक्टो की वेबसाइट पर रिव्यू डालूं जिससे और किसी के साथ यह घटना ना हो और उस डॉक्टर को भी पता चले कि मुझे वह स्पर्श ठीक नहीं लगा। रिव्यू को डालने के कुछ दिन बाद देखा तो उन्होंने मेरी कहानी को पब्लिश ही नहीं किया था।

इस पर मुझे गुस्सा आया तो उनके सपोर्ट नंबर पर बात करने की कोशिश की लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। फिर मैंने इंस्टाग्राम पर उनसे संपर्क करने की कोशिश की तो उन्होंने दिशा-निर्देशों की लिस्ट पकड़ा दी। पढ़कर देखा तो मालूम हुआ कि केवल अच्छे रिव्यू ही पब्लिश होते हैं। मुझे लगा शायद शिकायत करना इतना आसान नहीं, जितना लोग समझते हैं और इसी उलझन से भागने के लिए शिकायत नहीं करते।

प्रैक्टो के नज़रअंदाज़ करने से परेशान होकर एक नाराज़गी भरा मैसेज कर दिया। तब जाकर उनको मसले की गंभीरता का अंदाज़ा लगा और मुझसे उत्तर में सम्पर्क स्थापित करने में रुचि दिखाई। काफी दिन हो गए इस बात को लेकर लेकिन अब तक उनका कोई फोन या मेल नहीं आया। फिर एक पहल नाकामयाब हो गई।

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