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कांता प्रसाद जैसे लोगों की मदद के लिए क्या सरकार की कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती है?

मन की बात में प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत की वकालत कर रहे थे। वहीं, देश की राजधानी में “बाबा का ढाबा” चलाने वाले 80 वर्षीय कांता प्रसाद और 75 वर्षीय बदामी देवी अपनी बेबसी पर सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में रो रहे थे।

वीडियो देखते ही देखते वायरल हुआ और लोग मालवीय नगर के “बाबा के ढाबा” पर खाना खाने और पैक कराने पहुंचने लगे। भीड़ बढ़ी तो ढाबे की कमाई बढ़ी और इन बुर्ज़ुगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। आज कांता प्रसाद तवे वाली रोटियां सेंकते हुए कहते हैं, “आज लग रहा है पूरा देश हमारे साथ है।”

चेहरे और आंखों में खुशी की चमक 

80 वर्षीय कांता प्रसाद और 75 वर्षीय बदामी देवी के चेहरे पर और आंखों में खुशी की एक चमक दिख रही है मगर यह चमक अपने पीछे पूरे सिस्टम और समाज से एक सवाल भी पूछ रही है। वह सवाल यह है कि क्यों आज समाज की सारी संवेदना एक वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने की मोहताज हो गई है? हमारी सरकारें, हमारा समाज और इन दोनों का तंत्र कहां चूक जाता है?

जब कोरोना काल में लॉकडाउन के दिनों में एक बूढ़ी माँ को उसका बेटा घर से मारकर निकाल देता है और वह स्टेशन पर वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त से कहती हैं, “उसका मर्द नहीं है इसलिए कोई उसकी परवाह नहीं करता।” वह विडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और कई लोग उनकी मदद के लिए आगे आए।

चाहे कांता प्रसाद हों या बदामी देवी या फिर दादर स्टेशन पर रोती हुई बुढी अम्मा, उनकी उम्र भारत की आज़ादी की उम्र से थोड़ी सी अधिक या उसके आस-पास है। उस भारत की सरकार और समाज के पास उनके लिए कोई योजना या कोई नीति नहीं है। यह स्थिति देश के महानगरों में रहने वाले बुर्ज़ुग दम्पतियों की है, तो सोचिए पूरे देश में क्या होगी? इसका अंदाज़ा ही आपके-हमारे शरीर में सिहरन पैदा करने के लिए काफी है।

समाज और सरकार की ज़िम्मेदारी क्या है?

क्या समाज और सरकार की यह ज़िम्मेदारी नहीं है कि वह अपने बुजुर्ग व्यक्तियों की देखभाल और संरक्षण के लिए कानून के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता भी पैदा करे? यह सवाल क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि कांता प्रसाद हों या बदामी देवी जैसे लोग, इस उम्र में काम करने के लिए क्यों अभिशप्त हैं? क्यों नहीं पहुंच सकी उन तक कोई सरकारी योजनाओं की राहत?

यह तय है कि प्रधानमंत्री के मन की बात के आने वाले एपिसोड में कांता प्रसाद या बदामी देवी का उदाहरण देकर दिल वालों की दिल्ली का जाप करते हुए देश को भी इस तरह के लोगों की मदद करने का आहवान किया जाएगा। वैसे हम सभी जानते हैं कि वह बस एक कान में आएगा और दूसरे कान से निकल जाएगा।

फिर कोई संवेदनशील नागरिक इस तरह का वीडियो बनाकर हमारी संवेदनाओं को कुरेद देगा और समाज भावुकता में आकर मदद के लिए आगे बढ़ जाएगा। पहले सरकारें खामोश हो जाएंगी फिर धीरे-धीरे समाज और उसके बाद कांता प्रसाद हों या बदामी देवी फिर अपनी बेबसी में लोगों से मदद की उम्मीद की बांट जोहने लगेंगे।

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