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“योगी जी, हाथरस बलात्कार को योजनाबद्ध तरीके से की गई हत्या क्यों ना कहें?”

साल 2018 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर 15 मिनट में एक औरत के रेप का मामला दर्ज़ होता है। इनमें दलित महिलाओं के बलात्कार की वारदातें सर्वाधिक हैं, जिसमें भी 2019 में करीब 26.5% की वृद्धि हुई है लेकिन प्रशासन की आपसे गुज़ारिश है कि बहरहाल शान्ति व्यवस्था बनाए रखें।

हाथरस गैंगरेप सर्वाइवर के शव को अशांति या शोर-शराबे की दिक्कत ना आए, इसलिए पुलिस प्रशासन ने उसके परिजनों तक को यह शांति भंग करने का मौका नहीं दिया। 

बदतर स्थिति के किए ज़िम्मेदार कौन?

वाकई जिस “असभ्य समाज” में हम रहते हैं, वहां शांति बनाए रखना हमारे उच्चतम मूल्यों में से एक है। फिर भले ही उस शांति को बनाए रखने के लिए प्रशासन को किसी का गला ही क्यों ना घोंटना पड़े। हाल ही में 14 सितंबर 2020 के दिन उत्तर प्रदेश में हाथरस नाम के ज़िले में एक 19 वर्षीय दलित युवती का 4-5 ऊंची जाति के ठाकुरों द्वारा सामूहिक बलात्कार कर गला घोंटने की पूरी कोशिशों के बाद उसे अधमरी हालत में खेत में छोड़ दिया गया।

लगातार 14 दिन तक अलीगढ़ के अस्पताल में मरणासन्न करने वाली चिर शांति को दूर रखने के लिए सर्वाइवर लड़ती रही लेकिन यह अशांति ना प्रशासन को बर्दाश्त थी और ना ही प्रशासन के राजकीय वैद्यजनों को। इसलिए सर्वाइवर की हालत बिगड़ने पर जब उसे देश की राजधानी के सरकारी अस्पताल में स्थानांतरित किया गया तो शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए मेडिकल रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए अलीगढ़ के IG साहब ने बयान दिया, “गैंगरेप की पुष्टि नहीं हुई है।”

तो क्या हुआ अगर सर्वाइवर ने 22 सितंबर के अपने कथन में लगभग लकवाग्रस्त हालत में खुद उन बाकी बलात्कारियों का नाम बताते हुए यह बयान दिया था कि उसके साथ गैंगरेप हुआ था।

प्रशासन इस तरह के केवल “शोर-शराबा” भड़काने के मकसद से दिए गए बयानों के कारण शांति व्यवस्था को नहीं बिगड़ने दे सकता। जब देश-प्रदेश की स्थिति जंगलराज में तब्दील हो ही चुकी हो तो शेरों का शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए सबसे कमज़ोर मगर विद्रोह का शोर मचाने वाले प्राणियों को मसलते रहना लाज़िमी हो जाता है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े देश में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार की कहानी कहता है। खासकर यदि इस साल पूरे देश में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के उपलब्ध डेटा पर नज़र डाली जाए तो देश में महिलाओं के खिलाफ अशांति फैलाने वाले 3,78,277 अपराध की दर्ज़ वारदातों में से 3,59,849 वारदातें अकेले उत्तर प्रदेश से हैं।

तो शांति बनाए रखने के लिए सख्त-से-सख्त कार्रवाई करना और भी ज़रूरी और जायज़ हो जाता है। बलात्कार के पूरे 8 दिन बीत जाने पर पुलिस प्रशासन ने कई धरना प्रदर्शनों या प्रशासनिक भाषा में कहा जाए अशांति की वारदातों के बाद ही FIR दर्ज़ करना उचित समझा।

ऊपर दी  गई तस्वीर में हाथरस पुलिस प्रशासन की यह चेतावनी थी कि इस गैंगरेप को जातीय हिंसा का तमगा देकर “सांप्रदायिक सौहार्द” और शांति भंग करने की कोशिश ना करें, क्योंकि शायद इससे दलितों का ज़मीर जागने और ऊंची जाति के लोगों का दबदबा कम होने का डर  बना रहता है।

जंगलराज में संवेदना तक जताने का हक नहीं

देश के दबे-पिछड़े समुदायों को यह बात अभी तक समझ नहीं आ पाई है कि जंगलराज में संवेदना तक जताए जाने का हक उन्हें है या नहीं? संवेदना एक हथिनी के लिए हो सकती है मगर एक गरीब दलित महिला के लिए नहीं, क्योंकि उससे शांति व्यवस्था के भंग होने का खतरा बना रहता है।

अन्य ज़रूरी मुद्दों से ध्यान भटकता रहता है। जैसे- रिया चक्रवर्ती ने सुशांत सिंह राजपूत की काले जादू से करवायी हत्या। इस शोर-शराबे से प्रशासन के आला पदाधिकारियों का कुलदीप सिंह सेंगर, स्वामी चिन्मयानंद जैसों से कुर्सी हिलने का भी डर बना रहता है।

“असभ्य समाज” के ज़िम्मेदार नागरिकों के लिए यह शांति बनाए रखना इसलिये भी ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि उन्हें और भी अधिक संजीदा मामलों का ध्यान रखना पड़ता है। जैसे- कंगना रनौत का करोड़ों का छज्जा पीओके में टूटा था और उन्हें वाई प्लस सिक्यॉरिटी की ज़रूरत मनीषा जैसी औरतों से कई गुना ज़्यादा थी। शायद भाजपा की “बेटी बचाओ” वाली लाइन, नारा नहीं धमकी थी।

आखिर यह शान्ति व्यवस्था है क्या? क्यों अनपढ़, गरीब, पिछड़ी जनता को इस शांति को बनाए रखना नहीं आ पाया है?सबक सिखाने के लिए फिर से एक नया हथकंडा अपनाना पड़ा और इसलिए सर्वाइवर के सामूहिक बलात्कार और हत्या के बाद जबरन अंतिम संस्कार किया गया।

या यूं कहें कि योजनाबद्ध प्रशासनिक बलात्कार किया गया। योगी राज के सभी निवासियों से अनुरोध किया जाता है कि इतना बड़ा मूल्य चुकाए जाने के बाद अर्जित की गई अतिविशिष्ट “शांति व्यवस्था” को बनाए रखें।

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