पहले नाज़ुक से बदन पर पत्थर जैसे हाथों के सहारे उसके ज़र्रे-ज़र्रे को बर्बाद किया, फिर मन नहीं भरा तो गर्दन तोड़ दी, उससे भी सुकून नहीं मिला तो रीढ़ की हड्डी पर वार करके उसको अपाहिज बना दिया। उसके बाद उसको गूंगी कर दिया। उसकी बेबसी की हालत पर किसी को भी तरस नहीं आया? उत्तरप्रदेश के गुंडाराज की यह एक जीती-जागती तस्वीर है।
ज़िन्दगी में काफी सिचुएशन ऐसी आई हैं जिनसे मेरा दिल कुंठित हो जाता है। मुझे इंसान कहते हुए खुद को शर्म आने लगती है। कहां गए देश के न्याय करने वाले ठेकेदार? मर गए क्या? या सांप सूंघ गया? या तुम लोग बस ज़िंदा लाश हो आम लोगों के लिए? सियासत तो वो चीज़ है जो किसी का भी सगा नहीं होता। खैर, यह तो गंदी और भारत की सियासत है। शायद आपको भी कहीं ना निगल जाए यह सियासत!
14 सितंबर को वो ऐसी मनहूस घड़ी थी, जब मनीषा अपने घर से निकली। दलित थी इसलिए ठाकुरों ने सोचा इसका कौन साथ देगा? अपने अंदर के दानव और ब्राह्मणवाद के शिकारी कुत्तों ने उसके बदन को नोच डाला।
- क्या वो समाज के द्वारा बनाई हुई रूढ़िवादी सोच के खिलाफ कोई काम कर रही थी?
- क्या उसने छोटे कपड़े पहने थे?
- क्या वो रात को बस में अपने प्रेमी के साथ थी?
2012 में निर्भया के साथ जो हुआ, उसमें भी इस पितृसत्तात्मक समाज ने अपनी यही घटिया सोच रखी थी कि वो रात में बाहर क्यों थी? मगर यहां मनीषा की बात है तो उस बेकसूर ने कुछ भी नहीं किया था। वो तो सिर्फ अपनी माँ के साथ घास काट रही थी।
घास क्या काट रही थी, वो समाज में फैली न्याय की जड़ों को काट रही थी। उसके बाद भी उसके साथ ऐसा किया गया। वो तो समाज की मार वैसे ही झेल रही थी। एक तो औरत, ऊपर से दलित और तो और तीसरी मार उसके ऊपर गरीबी की थी। यह तीन चुनौतियों ने वैसे ही उसके आस्तित्व को चकनाचूर कर रखा था।
निर्भया कांड के समय पूरा देश उबल रहा था। आज कहां हैं महिलाओं के हक की बात करने वाले? कहां गई महिला आयोग की स्वाति मालीवाल जी? क्या हुआ आपको? क्या आप भी ब्राह्मणवाद से पीड़ित हैं? शायद वो दलित थी, महिला नहीं! जिसके लिए आप कुछ बोलें।
मनीषा की मौत ने जो तमाचा खुद को नारीवादी बताने वालों के मुंह पर मारा है, शायद उसका असर उनको तब होगा जब वे इस स्थिति में खुद को पाएंगे। गुंडाराज के विरोध में आवाज़ निकालो। मूक दर्शक बनकर बधिर होने का ड्रामा मत करो। मनीषा मरी भी या नहीं, क्या पता उसको ज़िंदा ही जला दिया गया हो। उसके परिवार से पूछो तो क्या बीत रही होगी उन पर।
उत्तर प्रदेश सरकार ने एसआईटी की एक टीम का गठन किया है। य तो वही पुलिस वाले होते हैं, जो आम थानों में पाए जाते हैं। उनको कोई भी विशेष योग्यता नहीं हासिल होती है। तो इसका तो कोई आधार ही नहीं है। ये बस लोगों के ध्यान को भटकाने के लिए उठाया गया कदम है।
योगी आदित्यनाथ जातिवाद के पक्ष में हैं। पहले तो सियासत पीठ पीछे होती थी, आज तो सरेआम सामने से छुरा घोपना आम हो गया है। कानून अंधा होने के साथ साथ गूंगा और बहरा भी हो गया है। बस कुछ ही दिन जा रहे हैं जब उसकी टांगे भी टूट जाएंगी और इंसाफ का मंदिर ढह जाएगा।
वहीं अब भी सियासत के वहशी लोग अपनी बातों में बघार लगाने के लिए तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। गुंडाराज प्रदेश के एक कायर और बुज़दिल वरिष्ठ पुलिस अधिकारी प्रशांत कुमार ने तो रेप की थ्योरी को ही झुठला दिया। वो बताते हैं, “मनीषा की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बताती है कि पीड़िता की मौत गर्दन में चोट की वजह से हुई। फॉरेंसिक जांच में कहीं भी स्पर्म का एक भी सुबूत नहीं मिला।”
एक नग्न अवस्था में पड़ी हुई असहाय लड़की, जिसके जननांगों पर घाव थे और बुरी तरह क्षत-विक्षत थे। खून से लहूलुहान बॉडी, जिसमें वेजाइना के मुख द्वार पर खून के थक्के जम चुके थे। आप कहते हैं रेप नहीं है। यदि आप आस्तिक हैं, तो इंतज़ार कीजिए भगवान की लाठी का और अगर नास्तिक हैं, तो आपके लिए कुछ भी कहना व्यर्थ है।
हाशिए पर मौजूद जातियां या धर्म, जिनके साथ भी कोई घटना या अपराध होता है तो न्यायिक व्यवस्था में “अफवाह” करार दे दिया जाता है। बोलते हैं ये अफवाह है, ऐसा कुछ नहीं हुआ है। मनीषा के साथ भी वही हुआ जो सुखदेव, राजगुरु और भगतसिंह के साथ ब्रिटिश सरकार ने किया था।
उनके शव को रात में जलाकर, उनकी राख को सतलुज नदी में बहा दिया गया था। मनीषा का जो दाह संस्कार हुआ, उससे प्रशासन ने एक लीगल गलती कर दी। परिवार से एक हक छीन लिया गया और दोबारा पोस्टमॉर्टम का ऑप्शन ही मिटा दिया गया।
अब तो शरीर खाक बन चुका है। ऐसे में कोई क्या क्लेम करेगा। दूसरी बात, जो लोग भौंक रहे हैं कि रेप नहीं था, तो उनको एक बार फिर से कानून को पढ़ना चाहिए। अनगिनत बार ऐसा हुआ है कि पोस्टमॉर्टम की दोनों रिपोर्ट्स में ज़मीन आसमान का अंतर तक पाया गया है।
यूपी पुलिस के पास यकीनन अनुभव की कमी है। 2013 के क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट के सेक्शन 375 के तहत रेप की डेफिनेशन अमेंड कर दी गई है। रेप होने के लिए पेनिट्रेशन आवश्यक नहीं है, महिला के जननांगों को पुरुष के गुप्तांग द्वारा या हाथों द्वारा या किसी भी तरह से छूना भी अपराध है। इतने भर से ही रेप संवैधैनिक हो जाता है। ऐसे में सरकार और प्रशासन को दोबारा से नियम और कानून को पढ़ने की ज़रूरत है।
वो तो अपनी जान से गई, आज कहीं हमारे घर की महिला का हाल भी मनीषा जैसा ना हो। मनीषा के घरवालों की मानें तो उनका कहना यही है कि जिस समय हमारे साथ यह घटना घटी, उस समय पूरे गाँव से कोई भी उच्च जाति का व्यक्ति शामिल नहीं हुआ। आधे लोग यही कहते रहे, चमारों के यहां तो यह होना आम बात है।
शर्म आती है मुझे आपके धर्म पर और आपकी शिक्षा पर जो आपको मानवता का पाठ ना पढा सकी। कोई भी हो हिन्दू या मुसलमान, आपको सबसे पहले इंसानियत सीखनी होगी, वरना समाज में प्रलय आने में देर नहीं लगेगी।