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“हाथरस की घटना एक महिला का बलात्कार नहीं, बल्कि न्याय का बलात्कार है”

बात बीते कुछ दिन पूर्व की है, जब उत्तर प्रदेश के हाथरस में संदीप, रवि, रामू औक लवकुश नाम के दरिन्दों द्वारा एक 19 साल की लड़की के साथ बलात्कार की हैवानियत की गई। यह वारदात पिछली घटनाओं से भी बढ़कर मानवता  को शर्मसार करती है।

भारत की 50% आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला नोची जाती है, काटकर फेक दी जाती है, रौंदी जाती है। इधर उफ्फ तक नहीं की जाती है, बल्कि इसके बावजूद हम बड़े फख्र से कहते हैं कि हमारी सभ्यता श्रेष्ट में भी श्रेष्ट है।

ऐसा क्यों होता है?

तह में जाने से आपको सच्चाई का एहसास होगा कि हम इसके पीछे छिपी क्रूरता की सच्चाई को जान सकेंगे। पुरुष की श्रेष्ठता का भाव, महिला की अधीनता का भाव, जातिगत श्रेष्ठता का भाव, जो अपने आपको श्रेष्ठ और महिला को उनकी औकात समझाने में विश्वास रखता है।

ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुआ। जब जातिगत श्रेष्ठता में पागल हुए लोगों ने एक नारी की आबरू को फिर एक बार क्षीण करने का कार्य किया।

दरअसल, यह उन तमाम मानवीय संवेदनाओं को तार-तार करने वाली घटनाओं से बढ़कर है, जो इसके पूर्व घटी। ऐसे अनगिनत केस भारतीय की गौरवपूर्ण भूमि पर आये दिन घटित होते रहते हैं। इस घटना में बच्ची के साथ बलात्कार किया गया, उसके गर्दन और रीढ़ की हड्डी तोड़ी गई। लगभग १५ दिने के पश्चात् बच्ची ने तड़प-तड़पकर अपने प्राण त्याग दिए।

प्रशासन का दुर्भाग्यपूर्ण रवैया

बच्ची के बलात्कार की घटना पर प्रशासन का रवैया काफी चौंकाने वाला रहा। न्याय दिलाने के लिए नहीं, बल्कि न्याय को छिपाने के लिए। जी हां, बस इसलिए रातों-रात लड़की के शव को जला दिया गया। जबकि प्रशासन की नियमावली कहती है जब तक कोई अनक्लेम बॉडी ना हो तब तक प्रशासन उसका अंतिम संस्कार नहीं कर सकती मगर इस घटनाक्रम में पूरा रुख बदलता हुआ दिखा।

कुछ एक प्रावधानों के अनुसार,  कुछ समय सीमा निर्धारित की गई, तय समय सीमा के दौरान कोई बॉडी पर क्लेम नहीं करता है तो प्रशासन उस समय सीमा के समाप्त होने के पश्चात ही मानवीयता के नाते उस मृतक प्राय शरीर का दाह संस्कार करती है। जबकि हाथरस वाली घटना में ऐसा नहीं देखने को मिला। पुलिस प्रशासन द्वारा ज़बरदस्ती शव को जला दिया गया। माँ बगल में बिलखती रही लेकिन पुलिस प्रशासन के कानों तले जूं तक ना रेंगी।

हाथरस की बच्ची का तिहरा बलात्कार 

भारतीय परिवेश में बलात्कार के दो स्वरूप  देखने को मिलते हैं। एक बलात्कार नारी का नारी होने के नाते किया जाता है ति दूसरा बलात्कार दलित जाति में जन्म लेने के कारण होता है और यदि लड़की गरीब परिवार में जन्म ले तो वह भी एक बलात्कार को ही जन्म देता है। हाथरस की घटकना में इन तीन से इतर भी कुछ देखने को मिला, हाथरस की बच्ची का तिहरा बलात्कार किया गया।

पहला बलात्कार एक लड़की होने के नाते, दूसरा बलात्कार उनके शव को जलाकर उनकी आस्मियता के साथ किया गया और तीसरा बलात्कार न्याय की गुहार लगाते परिवार को धमकाकर किया गया।

भारतीय समाज की सच्चाई कहें या आईना जाति एक ऐसा अभिशाप है जो कभी नहीं जाता। जो लोग कहते हैं कि जाति बच्ची के बलात्कार का कारण नहीं बनती उनको एक बार अपने अंदर झांककर देख लेना चाहिए। मेरा प्रश्न उनसे है कि क्या वह जातिगत व्यवस्था से इतर हैं?

क्या भारतीय समाज की यह एक कड़वी सच्चाई नहीं है कि जाति, जो आधिपत्य का माध्यम या ज़रिया है जो आज से ही नहीं अपितु प्राचीन काल से ही चली आ रही है। जाति अपने आपमें ही सर्वोच्चता और निम्नता के भाव को प्रदर्शित करता है। ऐसे में जाति व्यवस्था की कुरूतियों को कैसे अलग किया जा सकता है?”

जो अपराधी हैं, वे स्वर्ण जाति से हैं

जबकि जिनको अपराधी बताया जा रहा है वह  स्वर्ण जाति से सम्बन्ध रखते हैं। भारतीय परिवेश से श्रेष्ठता और निम्नता का भाव तो सदा से बना रहा है। जिसे किसी भी आधार पर अलग नहीं किया जा सकता। ऐसी ही छवि कुछ इस घटनाक्रम में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। ऐसा भी बताया जा रहा कि बलात्कार की घटना को खारिज करने के लिए स्वर्ण परिषद बलात्कारियों के समर्थन में उतर आए हैं। जो इस बात का प्रमाण है कि जाति जो कभी नहीं जाती तो फिर इस बलात्कार की घटना से जाति को कैसे अलग कर दिया जाए?

दरअसल असली अपराधी पेड़ के पीछे छुपा हुआ शख्स है। कहते हैं न कि कभी-कभी आंख से दिखाई देने वाली वस्तु आंखों का भ्रम हो सकती है। शायद आपने “प्लेटो के गुफा सिद्धांत” का नाम सूना होगा। यह सिद्धांत इस बात का प्रणाम है। व्यक्ति जिसे सच समझते हैं असल में वह आँखों का धोखा होती है। क्योंकि आंख से दिखने वाली हर एक चीज़ सच नहीं हो सकती। इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति परछाई को ही हकीकत मान बैठता है किन्तु सच्चाई तो इससे इतर है। जो हमारा बाहर इन्तज़ार कर रही होती है, ज़रुरत है उससे साक्षात्कार करने की। 

हाथरस की घटना में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। दोषी के रूप में DM, SSP, अन्य पदाधिकारियों को बताया जा रहा है किन्तु सच्चाई तो उससे इतर है। किसी प्रदेश के संचालन का उत्तर दायित्व जितना प्रशसनिक अधिकारियों का उससे बढ़कर उनके लिए मानवीय मंत्रीगण ज़िम्मेदार है। ऐसे में जब इस घटना के ज़िम्मेदार के रूप में ल DM, SSP या अन्य पदाधिकारियों को बताया जा रहा है उतना ही मंत्रीगण भी हैं किन्तु मीडिया को इतनी फुर्सत कहां कि यह सवाल पूछे? बाकी आपलोग खुद समझदार हैं।

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