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भारत में काफी पुराना है सेक्स वर्क का व्यापार

फोटो साभार: Flickr

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आज भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के ज़्यादातर देशों में सेक्स वर्क एक आम बात हो गई है। महिलाओं और लड़कियों को इन वेश्यालयों की शोभा माना जाता है। इन वेश्यालयों में महिलाओं की ऊंची बोली लगाकर उन्हें खरीद लिया जाता है, फिर उन्हें मजबूर किया जाता है कि वे इस पेशे में आ जाएं। 

यदि वे ऐसा करने के लिए राज़ी नहीं होती हैं, तो उन्हें नशीली दवाओं या किसी अन्य प्रकार का भय दिखाकर यौन सम्बन्ध बनाने के लिए विवश किया जाता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

सेक्स वर्क हमारे भारतीय समाज में कोई नया शब्द नहीं है। इसका वर्णन वेदों, पुरानों, स्मृतियों, रामायण, महाभारत और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी देखने को मिलता है। वेश्यालय किसी भी समाज के लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता है लेकिन समाज के बड़े तबके द्वारा इसे सदैव किसी ना किसी आधार पर उचित साबित करने की कोशिश की गई है।

प्राचीन समय की बात करें, तो विधि विधानों का सहारा बनाकर इस कुप्रथा को वैध घोषित किया गया। आधुनिक समय में इसे सामाजिक विवशता, मानसिक विक्षेप और भोग की चाह में निरंतर वृद्धि के आधार पर सही ठहराया गया।

जिन महिलाओं को धन की आवश्यकता होती है, वे धन कमाने अथवा मजबूरी वश इसमें संलिप्त हो जाती हैं। बहुत सी महिलाएं मजबूरी वश ऐसा करती हैं अथवा उन्हें मजबूर किया जाता है। 

फोटो साभार: Getty Images

आज देश में कुल 1170 रेड लाईट एरिया हैं, जिनमें व्यापारिक दृष्टि से कोलकत्ता और मुंबई सबसे बड़ा व्यापार वाला क्षेत्र माना गया है। भारत में यदि कुल सेक्स वर्कर्स की बात करें, तो 1997 में 20 लाख थे जो बढ़कर 2003-2004 में 30 लाख हो गए। 2006 में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट यह बताती है कि देश में कुल 90% सेक्स वर्कर्स 15-35 वर्ष के बीच के हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार की रिपोर्ट के अनुसार 68% लड़कियों को झांसा देकर इन वेश्यालयों में लाया जाता है। मुंबई के पुलिस दस्तावेज़ के अनुसार सेक्स वर्क क्षेत्र में विदेशों से भारत लाई जाने वाली महिलाओं की बात करें, तो उनमें उज्बेकिस्तान शीर्ष पर है। गृह मंत्रालय के 2007 के आकड़ों के अनुसार तमिलनाडु में कुल 1199 और कर्नाटक में 612 सेक्स वर्क के मामले देखने को मिले।

सेक्स वर्क के मुख्य कारण निम्न हैं-

 आर्थिक

सामाजिक

  मनोवैज्ञानिक

आपको बता दें भारत में सेक्स वर्क रोकने के लिए कोई ठोस नियम और कानून नहीं निर्मित किए गए हैं फिर भी भारत सरकार द्वारा भारतीय दंड सहिता 1860 के तहत ‘वेश्यावृति उन्मूलन कानून’  और ‘अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956′ पास किया गया मगर यह कारगर साबित नहीं हुए।

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