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“डिप्रेशन के दिनों में खुशियों को तलाशकर कैसे मैंने जीना सीखा”

‘ज़िन्दगी’ नाम सुनकर कभी-कभी मन ऊबा हुआ लगता है। कभी-कभी यह शब्द बहुत अच्छा लगता है। कहीं-ना-कहीं यह बात इंसान के हालातों पर निर्भर करती है। कभी-कभी सब कुछ होकर भी हम उसके लिए एहसानमंद नहीं होते और कई बार कुछ ना होकर भी हमको ऐसा लगता है ज़िन्दगी तो है।

लोगों को हमने अक्सर यह कहते हुए सुना है कि हमारा नसीब ही खराब है। नसीब को दोष देने वाले शायद ज़िन्दगी का मोल नहीं जानते या फिर उनकी मानसिकता नकरात्मक हो जाती है। उनको हर बात में निगेटिव होना पड़ता है।

उतार-चढ़ाव के बीच ज़िंदगी की गाड़ी

ज़िन्दगी के कुछ फलसफे ऐसे होते हैं, जिनको अपनाकर हम बुरे हालातों में भी खुशहाल ज़िन्दगी जी सकते हैं। ज़िन्दगी को जीने के लिए कुछ नियम होते हैं, जिनमें कुछ तो स्वतंत्र होते हैं और कुछ सीमा के अंदर। कभी-कभी बचपन इतना डरावना होता है कि बच्चे की पूरी ज़िंदगी को तबाह करने का दम रखता है। कुछ लोगों की ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव इतने आते हैं कि वह भी थक जाता है।

मैं आपसे यह सब इसलिए साझा कर रहा हूं, क्योंकि मैंने इन सब परेशानियों को बहुत करीब से देखा है। मैं बचपन में किसी कारणवश ऐसे हालातों में पहुंच गया था, जहां का रास्ता सिर्फ खोखला और बेकार था। 7वीं कक्षा तक आते-आते मुझे पता चला कि शायद मैं बहुत सेंसटिव और कुंठित बच्चा था। मुझे अपने दम पर चलना हमेशा से पसंद रहा। जब होश संभाला तो पता चला कि पैसे क्या होते हैं।

एक समय गूगल हमारे हाथों में नही रहता था

दवा पर पैसों की चिकचिक से बचने के लिए मैंने कई लोगों से बात की और पूछा कि यह डिप्रेशन क्या होता है? किसी ने कुछ बोला और किसी ने कुछ। जैसे अब कुछ भी ढूंढना हो गूगल महाराज हमारे पास मौजूद रहते हैं। तब यह सुविधा कहां थी। अब यहां तक कि होटल, शादी, फंक्शन, कुछ भी तलाश करो नियर में, हाज़िर होबजाएगा। कितना हास्यस्पद लगता है यह सब।

बहरहाल, उस वक्त हम सब साइबर कैफे के दीवाने थे। 10 रुपये में एक घंटा। वह दस रुपए भी बहुत भारी लगते थे। भला हो मेरी मैम का जिन्होंने मेरा दाखिला दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी में करवा दिया था। वहां पर मुफ्त में नेट सर्फिंग कर सकते थे। कंप्यूटर चलाना तो 4th क्लास से ही सीखते आ रहे थे लेकिन इंटरनेट की दुनिया में नया खिलाड़ी था। 

जैसे-तैसे कर के गूगल से पूछा डिप्रेशन क्या होता है। फिर वहीं से सब कुछ पता लगा। पैसे की चिकचिक से घर में वैसे ही अजीब माहौल हो जाता था। मैंने साइबर कैफे के ज़रिये पता लगाया कि बिना पैसों के बीमारी को कैसे दूर करूं। उस समय के शोध ने मुझे ना जाने क्या-क्या सिखा दिया।

मैंने पाया कि ऐसे बहुत सारे सोर्स हैं जिनसे कई बीमारियां बिना दवाई के ठीक हो जाती हैं। उनमें सबसे पहले था, हॉर्मोन्स को बैलेंस करना। आज कल बॉडी में कुछ खुशी के केमिकल्स होते हैं। कुछ हार्मोन्स होते हैं, जैसे- डोपामाइन, यह एक हैप्पी हार्मोन होता है, जो आपको खुशियों की तरफ ले जाता है। सेरोटोनिन, यह हमारे भूख और पाचन क्रिया को मज़बूत रखता है। ऑक्सीटोसिन, इसे लव हार्मोन्स भी कहा जाता है। इस हॉर्मोन्स की वजह से हमारा किसी से भी रिश्ते को मज़बूती प्रदान करता है और साथ ही आपके अंदर सिक्योर फीलिंग्स लाता है।

एस्ट्रोजन, हमारी घबराहट को दूर करता है और हमारे मूड को एकदम फ्रेश रखता है। प्रोजेस्टेरोन, यह हॉर्मोन्स आपको सोने में मदद करता है, आपको शांति प्रदान करता है और आपके मूड को स्टेबल रखता है।

हॉर्मोंस के संतुलन को खुद से बैलेंस कीजिए

इन सभी हॉर्मोंस को हम खुद भी मैनेज कर सकते हैं। अगर आप किसी के साथ सम्बंध में हैं तो आप कई सारे हॉर्मोन्स को खुद ही मैनेज कर सकते हैं। किसिंग और गले मिलना इसमें सबसे प्रमुख है। सेक्स करने से हमारे शरीर में गुड हॉर्मोन्स का बहुत बड़ा योगदान होता है। पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन और महिलाओं में एस्ट्रोजन का विकास सुलभ हो जाता है। जानवर पालने से भी आपको एक अपनेपन का एहसास होता है। जिससे ऑक्सिटोसिन नामक हार्मोन का निर्माण होता है।

चॉकलेट और अपने पसंद का खाना खाना भी आपको सुकून देता है। जिससे नैचुरल तरीके से हॉर्मोन्स का निर्माण होता है। ज़िन्दगी में कई ऐसे निगेटिव वर्ड्स हैं जिन्हें हम अक्सर अपनी लाइफ के लिए बुरा मानते हैं जैसे- रोना, खोना, लड़ाई झगड़े आदि।

क्या आप जानते हैं रोने से भी हमारी बॉडी डिटॉक्स होती है। मूड बदल जाता है और माइंड का बोझ भी हल्का पड़ जाता है। तो रोने में कोई हर्ज नहीं है। मन के गुबार को आंसू के साथ बाहर निकाल देने में ही भलाई है।

लड़ाई, वहीं होती है जहां आपको किसी से उम्मीद होती है। जहां आपको उनके होने और न होने पर फर्क पड़ता है। तो कभी-कभी खुशियों को नज़र से बचाने के लिए लड़ाई भी ज़रूरी हो जाती है। जहां हर चीज़ बहुत सीधे तौर पर चल रही हो तो समझ जाना रिश्ता दिल से नहीं दिमाग से चलाया जा रहा है।

जो चला गया उसे भूल जाइए

जिस चीज़ को आप खो दें या कुछ भी आपकी दुनिया से चला जाए, तो इसमें गम मनाने की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है। बेवजह परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। वह आपके लिए था ही नहीं और आप उसके लिए। चाहे सामान हो या इंसान।

कभी अगर प्रेम में अलगाव हो जाता है तो होने दो। कभी-कभी अनुष्का पर फिल्माया हुआ, ब्रेकअप सॉन्ग भी सुना जा सकता है। यह एक अच्छा ऑप्शन साबित हो सकता है।

जो पास है उसे याद रखिए

जो भी आपके पास है वो आपका है। तो नज़रों को उठाइए और गौर कीजिए। आपकी हद-ए-निगाह जहां-जहां जा रही हैं वही आपका दायरा है। वही आपका ह, सिर्फ वही। यह भी समान और इंसान दोनों हो सकते हैं। यहां भी एक नगमा याद आ जाता है-

जीने के बहाने लाखों हैं, जीना तुझको आया ही नहीं,

कोई भी तेरा हो सकता है पर तूने अपनाया ही नहीं।

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