बिहार की राजनीति को हमेशा जातिगत समीकरणों के चश्मे से देखा जाता है। पुराने राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यहां के लोग जाति के आधार पर मतदान करने में विश्वास करते हैं, जिनको लगता है कि हमारी जाति का जिधर दबदबा है, उसी तरफ मतदान किया जाए।
सवाल है कि क्या बिहार के विकास के लिए बिहार के मतदाता जातिगत समीकरणों को तोड़कर मतदान करेंगे? या फिर पुराने पैटर्न पर जाति के आधार पर मतदान करेंगे? बिहार में जातियां कितनी ताकतवर हैं? उनका झुकाव किधर है?
विकास के वादों के बीच बिहार का सच
आपको बता दें कि सत्ता एवं विपक्ष दोनों तरफ से विकास के बड़े-बड़े वादे किए जा रहे हैं। एक तरफ से 10 लाख सरकारी नौकरी का वादा किया गया तो दूसरी तरफ से 19 लाख रोज़गार की बात की जा रही है।
लेकिन इसके बावजूद ग्राउंड रियलिटी कुछ और ही निकलकर सामने आ रही है। उसके अनुसार जाति के आधार पर मतदान होता दिखाई दे रहा है।
क्या बिहार की ऊंची जातियों में चलेगा नरेंद्र मोदी का क्रेज़?
बिहार में जाति जनगणना 1931 और सीएसडीएस की रिपोर्ट के अनुसार, ऊंची जाति की आबादी 15% है, जिनमें 5% ब्राह्मण, 5% राजपूत, 4% भूमिहार और 1% अन्य ऊंची जाति की संख्या मौजूद है। बिहार की राजनीति में ये भाजपा के पारंपरिक मतदाता हैं।
बिहार विधानसभा 2020 में भी सीएसडीएस लोकनीति के सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, इन जातियों का बहुसंख्यक झुकाव एनडीए-भाजपा गठबंधन के पक्ष में है। इन मतदाताओं पर अभी तक किसी भी प्रकार का तेजस्वी यादव के वादों का प्रभाव होता नहीं दिखाई दे रहा है।
क्या कहता है ओबीसी मतदाताओं का राजनीतिक समीकरण?
बिहार में सबसे बड़ी आबादी ओबीसी समाज का है, जिसको राज्य स्तर पर दो भागों में बांटा गया है। अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) और पिछड़ा वर्ग (BC). 1990 के बाद इन जातियों का दबदबा राजनीति में बढ़ा और आज ये सत्ता के केंद्र में हैं।
जाति के हिसाब से इनकी जनसंख्या को देखें तो सबसे अधिक यादव 15%, कोईरी 9% और कुर्मी 3% हैं। ये BC कैटेगरी में आते हैं। इनमें यादव का 80% से अधिक मतदाता तेजस्वी यादव के साथ है, वहीं पूर्वी भी 80% से अधिक नीतीश के साथ है। 60% कोईरी मतदाता नीतीश के साथ आता हुआ दिखाई दे रहा है।
अत्यंत पिछड़ा वर्ग की यदि बात करें तो इनमें हिंदू और मुसलमान दोनों आते हैं, जिनकी कुल आबादी लगभग 28% है। इनमें से 10% मुस्लिम अति पिछड़ा है और 18% में हिंदू अति पिछड़े आते हैं। हिंदू अति पिछड़ों का बहुसंख्यक आबादी एनडीए गठबंधन के साथ है। वहीं, मुस्लिम अति पिछड़ा महागठबंधन के साथ जाता हुआ दिखाई दे रहा है।
इस बार किस तरफ रहेंगे दलित-महादलित मतदाता?
बिहार की राजनीति में दलित मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। नीतीश कुमार ने 2006 में दलितों में डिवीज़न करके महादलित कॉन्सेप्ट को जन्म दिया और 22 दलित जातियों में से पासवान को छोड़ 21 दलित जातियों को महादलित घोषित किया।
2011 के जनगणना के हिसाब से बिहार में अनुसूचित जाति की आबादी 16% है। सीएसडीएस के अनुसार, यह 18% है। इनमें पासवान जाति की जनसंख्या 5% है, रविदास 5 %, मुसहर 2%, 1% धोबी तथा अन्य दलित जातियों की जनसंख्या लगभग 3% है।
पासवान जाति के मतदाताओं का झुकाव लोजपा के साथ स्पष्ट दिखाई दे रहा है। दूसरी तरफ रविदास की बहुसंख्यक आबादी महागठबंधन के साथ है। वहीं, मुसहर समुदाय में विभाजन है ।अन्य दलित जातियों का रुझान भी महागठबंधन के पक्ष में है।
इस बार बिहार के युवा मतदाताओं का क्या है रुझान?
सभी जाति के युवाओं में नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रोश है। यहां तक कि एनडीए गठबंधन के मतदाता भी नीतीश कुमार के कामकाज से खुश नहीं हैं। बावजूद इसके ऊंची जाति के युवा महागठबंधन को वोट नहीं कर रहे। वहीं, ओबीसी और दलित समाज के युवा महागठबंधन के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं।
तमाम नाराज़गियों के बाद भी ऊंची जाति के युवा NDA के साथ हैं। जी बिल्कुल, नीतीश कुमार से तमाम नाराज़गी के बाद भी ऊंची जाति के मतदाता एनडीए गठबंधन के साथ हैं। कहीं-कहीं ये मतदाता लोजपा के लिए मतदान करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
अगर लोजपा, भाजपा और जदयू की नज़र से देखें तो ऊंची जाति के युवा मतदाता इस खेमे के अंदर दिखाई दे रहे हैं। यदि हिंदू अत्यंत पिछड़े वर्ग की बात करें तो वे भी एनडीए के साथ हैं। कोईरी युवा मतदाताओं का रुझान महागठबंधन के पक्ष में है।
क्या हिट कर रहा है तेजस्वी यादव का 10 लाख नौकरी का वादा?
तमाम राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों को देखकर यदि हम निर्णय लें तो स्थिति स्पष्ट है कि बिहार में जाति के आधार पर मतदाता बटे हुए हैं। यह अलग बात है कि दलित जातियों और मुस्लिम अति पिछड़ा, यादव , कुछ हद तक अन्य पिछड़ी जातियों में महागठबंधन के प्रति सहानुभूति दिखी है, जो कि तेजस्वी यादव के लिए प्लस पॉइंट है।
अगर राजनीतिक विश्लेषण के हिसाब से देखा जाए तो बिहार के मतदाता इस बार फिर जाति के आधार पर मतदान कर रहे हैं। खासकर ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, यादव, कोईरी, कुर्मी, मुस्लिम एवं पासवान जातियां पूर्ण रूप से पोलराइज़्ड हैं।
उपरोक्त समीकरणों के आधार पर महागठबंधन का पलड़ा भारी है, क्योंकि सभी जाति के युवा नीतीश कुमार से परेशान हैं। ऊंची जाति को छोड़ दें तो बैकवर्ड और दलित युवाओं में तेजस्वी यादव का अलग ही क्रेज़ दिखाई दे रहा है।