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“माहवारी के दिनों में तेज़ दर्ज के बीच पति, सास और ससुर की प्रताड़ना झेलती हूं”

3 Generation-Periods

गरीबी इंसान को कहां-कहां किस हद तक प्रभावित कर सकती है, इसका अंदाज़ा शायद हर कोई नहीं लगा सकता है। अंदाज़ा वही लगा सकता है, जिसने गरीबी का चेहरा नहीं देखा हो। उसके आसपास कभी ऐसी कोई घटना ही घटित ना हुई हो।

दरअसल, जिसने गरीबी के साथ ज़िन्दगी गुज़ारी है, उसको मालूम होता है कि बेसिक रिसोर्सेज़ के बिना ज़िन्दगी कितनी कठिन है। मूलभूत आवश्यकताएं संविधान के मुताबिक सभी को मिलनी चाहिए लेकिन यहां ठीक से खाना तक तो मिलता नहीं है।

बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में भी ना के बराबर पाया जाता है। रहने, खाने, और पढ़ने का अधिकार तो मूलभूत सुविधाओं में आ जाता है लेकिन स्वाथ्य के अधिकार में हम भारतीय कहीं-ना-कहीं चूक जाते हैं।

स्वाथ्य सेवाओं के आभाव में महिलाएं

एक मशहूर कहावत है, “हेल्थ इज़ वेल्थ।” मतलब स्वास्थ्य ही कामयाबी की कुंजी है। गरीब लोगों को हम अगर निरीक्षण करके देखेंगे तो पाएंगे कि शायद वे अपनी किसी भी मूलभूत आवश्यकताओं का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। सबसे पहले गरीब समुदाय के लोग अपने पेट की पूजा करते हैं फिर रहने का जुगाड़ देखते हैं और स्वस्थ्य का तो दूर-दूर तक कोई नाम ही नहीं होता है।

जितने पैसे मिलते हैं, वे खाने और रहने में खर्च हो जाते हैं। सबसे ज़्यादा महिलाएं इन हालातों की शिकार बनती हैं। महिलाओं को पुरुषों से अधिक चिकित्सा सहायता की ज़रूरत पड़ती है। चाहे वह गर्भावस्था हो या बच्चे को दूध पिलाना या फिर माहवारी का वक्त।

पीरियड्स के दौरान कम आय वाले या गरीब परिवार की महिलाएं अधिक संघर्ष करती हैं। महिलाएं ऐसे समय में सैनिटरी पैड्स और टेम्पून से ही नहीं, बल्कि पीरियड्स में होने वाले दर्द के लिए दवाईयां, यहां तक कि अंडरगारमेंट्स की कमी के कारण एक जोखिम भरी ज़िंदगी जीती हैं।

गरीबी, मनुष्य को अंदर तक तोड़ देती है। ना जाने कितनी ही महिलाएं घातक बीमारियों की शिकार बनाती हैं और उनकी जीवन लीला समाप्त हो जाती है, जो कि बहुत दुःखदायी है। कई बार अधिक रक्तस्राव से महिलाओं को समस्या पैदा हो जाती है। पैसों की कमी की वजह से उनको पूरी तरह से चिकित्सकीय सुविधा नहीं मिल पाती है।

हाशिए पर रहने वाली महिलाओं ने साझा किए कुछ अपने अनुभव

गरीबी पर माहवारी एक समस्या है, ऐसे सवालों का जवाब तलाशते हुए मैंने 20 महिलाओं से सवाल पूछने की तैयारी की। दुर्भाग्यवश मुझे सिर्फ दो महिलाओं ने सवाल पूछने की इजाज़त दी। मैंने उनसे कहा कि मैं अपनी महिला मित्र को भी लाया हूं, आप अगर उनके साथ बात करने में सहमत हैं तो वह आपसे बात कर सकती है मगर उन्होंने साफ मना कर दिया।

पटपड़गंज (दिल्ली) की जवाहर मोहल्ले झुग्गी में रहने वाली रीता बताती हैं, “मैं महीने के दिनों में इतना दर्द महसूस करती हूं और साथ ही साथ पति और सास-ससुर की प्रताड़ना भी झेलती हूं। इससे अच्छा मैं गर्भावस्था में महसूस करती हूं, जब मेरा महीना नहीं आता है। मैं महीने के आने से इतना डर गई हूं कि मुझे अगर पूरे साल महीना ना आए और मैं गर्भवती रहूं तो मुझे कोई परेशानी नहीं।”

वहीं मैंने अन्य महिला, जमीला से पूछा कि वो पीरियड्स के दौरान किस तरह अपनी देखभाल करती हैं? तो उन्होंने बताया कि मेरे पास अंदर पहनने के लिए बस एक ही लंगोटी है। मेरे घर में पैसों की कमी की वजह से खाना तो पेटभर मिल नहीं पाता। ऐसे में हम अंदर पहनने वाले कपड़े कहां से लेंगे?

वो आगे कहती हैं, “पैड तो दूर की बात है उसे बिल्कुल छोड़िए सर। खाने को 2 रोटी मिल जाए वही बहुत है। मैं डरती हूं कि मेरी लड़की की उम्र अभी 9 साल है, जब उसकी माहवारी शुरू होगी तो मैं उसको कैसे संभालूंगी? मेरे पेशाब की जगह पर बड़े-बड़े फोड़े हो जाते हैं, जिसमें से गंदी बदबू आती है। मेरा शौहर तो मेरे पास आना दूर मेरे हाथ का बना खाना नहीं खाता। मैं एक ही कपड़ों में 5-7 दिन गुज़रती हूं। माहवारी के दिनों में मैं ढंग से खाना भी नहीं खा सकती। मुझे चक्कर आने लगते हैं।”

दो महिलाओं से बात करने के बाद हमको दो ऐसी समस्याओं का पता लगा जिससे शायद हर कोई अंजान ही होगा। इस सर्वे को करते समय मुझे भी कई बातें सीखने को मिलीं। यहां पर सबसे ज़्यादा ज़रूरी है लोगों को जागरूक करना। इसकी स्वच्छता पर ध्यान देना और उपाय बताने के लिए लोगों को शिक्षित करना भी आवश्यक है।

यदि लोगों ने लोगों को जागरूक करना शुरू नहीं किया तो इसके अंजाम बहुत ही दयनीय हो सकते हैं। माहवारी के समय सही से स्वच्छता का पालन ना करना कई तरह की बीमारियों को न्यौता देता है। कदम उठाएं और आगे की ओर बढ़ते चलें, जिससे हम अपना एक कदम विकास के नाम भी लिख सकें।


नोट- यह स्टोरी YKA यूज़र इमरान खान ने पटपड़गंज (दिल्ली) की झुग्गियों में महिलाओं से बातचीत के आधार पर लिखी है।

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