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कैसे अधूरी रह गई चंचल और शोभित की प्रेम कहानी

दोनों की प्रेम कहानी एकदम फिल्मी थी। वही पहली नज़र का प्यार। शायद यही वजह थी कि मन के किसी कोने में एक उम्मीद थी कि इस कहानी का अंत भी ज़्यादातर हिंदी फिल्मों की तरह ही सुखद होगा।

चंचल और शोभित ने प्यार करने से पहले कभी कुछ नहीं सोचा था लेकिन एक बार प्यार हो जाने के बाद दोनों बहते पानी की तरह आगे निकलते गए।

आजकल का प्यार! रील लाइफ की तर्ज़ पर आसीन

शोभित ने जल्दी ही शादी करने के इरादे से एमबीए के ऐसे इंस्टीट्यूट में एडमिशन ले लिया जो नौकरी दिलाने का वादा करता हो। शोभित हड़बड़ी में इसलिए भी था, क्योंकि चंचल के घरवाले लड़का तलाश रहे थे। किस्मत और मेहनत रंग ला रही थी। बड़े एमबीए कॉलेज में दाखिला मिलते ही दोनों के मुरझाते मन में पानी की छींटे पड़ गई थीं।

दोनों को लगने लगा था कि सब कुछ एकदम ठीक हो जाएगा। इन दोनों की ज़िंदगी में हिंदी फिल्मों की तर्ज़ पर नाटकीय मोड़ आना ही था सो आया। कोर्स में दाखिला लेने के एक महीने के भीतर ही चंचल की शादी तय हो गई। चंचल बहुत घबराई हुई थी। बल्कि वो दोनों ही बहुत घबराए हुए थे। जी में आ रहा था कि फौरन भागकर शादी कर लें। लेकिन नौकरी नहीं थी और इसी वजह से दोनों के बढ़ते कदम ठिठर जाते थे। शोभित बार-बार चंचल और खुद को समझाता रहा कि ‘जो भी होगा अच्छा होगा’।

अक्सर समाज के रीति रिवाज़ प्यार के दुश्मन होते हैं

दोनों की बात भी हुई कि शादी की बात अपने-अपने घरों में करें लेकिन हर बार की कोशिश जाति, उम्र, हैसियत, बेरोजगारी जैसी वजहों की भेंट चढ़ जाती। वक्त बहुत तेजी से हाथ से निकल रहा था। शोभित ने एमबीए की पढ़ाई और कोर्स छोड़कर कॉल सेंटर में नौकरी करने की सोची। लेकिन प्यार के रास्ते पर पहले चल चुके कुछ अनुभवी लोगों ने इससे होने वाले नुकसान को इतना बड़ा करके बताया कि दोनों इस रास्ते में भी आगे नहीं बढ़ सके। दोनों ने प्यार तो कर लिया था लेकिन उसके आगे की बातें नहीं सोची थी।

यही वजह थी कि प्यार के सफर पर निकल जाने के बाद जब बात शादी की आ रही थी तो कभी चंचल को अपने भाई-बहन की शादी का डर सता रहा था तो कभी शोभित को परिवार की इज्जत और भविष्य की चिंताओं का काला खौफ। समय ऐसे बीत रहा था जैसे वह काले तेज घोड़े पर सवार हो। रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। रुकता भी तो कैसे उसका काम ही है लगातार चलना। शादी की तारीख आ रही थी और बेबसी, बेचैनी की अजीब-सी भावनाओं ने मन में घर बना लिया था।

ईश्वर ने साथ नहीं दिया, तो चलो नास्तिक बन जाते हैं

ऐसे हालात में दोस्त सबसे अच्छे और अनोखे विकल्प देते हैं। चंचल और शोभित को भी कई सुझाव मिले। चंचल की शादी का दिन आते-आते हर बड़े से छोटे मंदिर तक नंगे पांव जाने और 101 रुपये का प्रसाद चढ़ाने का वादा, भगवान से मैं कर चुका था, पर महंगाई के इस दौर में 101 रुपये से होता क्या है।

शायद भगवान को भी यह मंजूर नहीं था। निराश होकर शोभित ने नास्तिकता और वास्तविकता की ओर कदम बढ़ा दिए। शादी तय होने से लेकर शादी के दिन तक लड़के का फोन नंबर और पता फेसबुक से निकालकर कुछ जुगत भिड़ाने की कोशिश भी नाकाम रही थी। उसकी शादी वाला पूरा दिन शोभित ने मंदिर में ही बिताया।

मेरी पिटाई और हम दोनों की शादी?

कुछ उम्मीदें शायद अभी बाकी थीं, हालांकि सूरज ढलने के साथ उनमें भी तेजी से कमी आ रही थी। हिंदी फिल्मों को शोभित ने अपनी जिंदगी में कुछ ज्यादा ही उतार रखा था। इसलिए शाम होते ही आखिरी सलाम करने पहुंच गया मैरिज हॉल। दुल्हन के तैयार होने वाले कमरे में किसी तरह पहुंचकर उसे बोल दिया कि मैं स्टेज पर आऊंगा तू मुझे गले लगा लियो। मेरी थोड़ी पिटाई तो पड़ेगी लेकिन सब ठीक हो जाएगा।

शादी कैंसिल हो जाएगी। इतना कह कर शोभित तीर की तरह कमरे से बाहर निकल गया। शोभित का जोश दोबारा जाग चुका था। अब यह शोभित का ब्रह्मास्त्र था। जयमाला होते ही वो स्टेज पर पहुंच जाता है। उसके मन में ब्रह्मास्त्र के चलने के बाद पिटने का डर तो था पर साथ में सफलता की उम्मीद भी। स्टेज पर उसके करीब पहुंचा तो उम्मीद थी कि वह गले लगा लेगी, शोभित ने चुपके से इशारा भी किया लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।

कुछ मिनट रुकने के बाद फोटोग्राफर ने शोभित से कहा, ‘भैया अब उतर भी जाओ।’ एक झटके में शोभित अपनी सपनीली फिल्मी दुनिया से हकीकत में आ चुका था। चंचल किसी दूसरे की जिंदगी बन चुकी थी। लौटने के बाद एकटक पत्थर सी आंख लिए शोभित रील लाइफ से निकलकर अपनी जिंदगी की फिल्म को रिवाइंड होते हुए देख रहा था। बस शोभित का साथ देने के लिए चंचल नहीं, उसके नमकीन मैले आंसू और यादें साथ थीं।

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