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आखिर क्यों खो रही है त्रिपुरा के आदिवासी समुदाय की मातृभाषा की पहचान?

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

कोकबोरोक दिवस भारत के त्रिपुरा राज्य में हर साल 19 जनवरी को मनाया जाता है। कोकबोरोक त्रिपुरा के जनजातियों में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है। इसलिए 1979 में त्रिपुरा सरकार ने यह निर्णय लिया है कि कोकबोरोक भाषा को “Official State Language” की पहचान दी जानी चाहिए।

तब से प्रतिवर्ष 19 जनवरी को कोकबोरोक भाषा दिवस मनाया जाता है। त्रिपुरा की कुछ जनजातियों में उनकी मातृभाषा की पहचान खो रही हैं, इसलिए त्रिपुरा की जनजातियां हर साल बड़े उत्साह से कोकबोरोक दिवस मनाते हैं।

इस दिन स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, राजधानी और अन्य संस्थाओं द्वारा रैली और सांस्कृतिक प्रोग्राम आयोजित किया जाता है।

फोटो साभार- जोएल देब बर्मा

कोकबोरोक दिवस को मनाने के लिए सब लोग अपने संस्कृतिक पोशाक रीनाई-रिसा पहनकर रास्तों में नारा लगाते हुए चलते हैं। नारा कुछ ऐसे होता है, “Chini Amaa Ni Kok Sana Ni Ta Kiridi, Chini Amaa Ni Kok Sana Ni Ta Lachidi.”

यानी कि हमारी मातृभाषा को बोलने से मत डरो, हमारी मातृभाषा को बोलने में संकोच मत करो।

फोटो साभार- जोएल देब बर्मा

कोकबोरोक दिवस के दौरान कई कार्यक्रम होते हैं। इस दिन छात्र-छात्राओं को कोकबोरोक के प्रति सम्मान करने की शिक्षा दी जाती है। कोकबोरोक दिवस में सिर्फ रैली ही नहीं, बल्कि अलग-अलग स्कूलों-कॉलेजों के स्टूडेंट्स बड़ी उत्साह से सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

इन प्रोग्रामों में स्टूडेंट्स नाच गाकर भाग लेते हैं और कोकबोरोक कविता, किस्से-कहानियां का भी प्रदर्शन करते हैं। कोकबोरोक के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी भी दी जाती है।

Haktal मैगजीन लॉन्च के दौरान कार्यक्रम। फोटो साभार- जोएल देब बर्मा

इस साल 19 जनवरी को प्रोफेसर रविंद्र देब बर्मा ने “Haktal” नामक एक मैगज़ीन प्रकाशित किया। यह मैगजीन कोकबोरोक भाषा के लिए एक उन्नति है। यह मैगज़ीन बाहर से आने वाले लोग भी पढ़ सकते हैं।

इसे लिखने में मदद करने वाले और भी कई लोग हैं जो त्रिपुरा के जाने-माने गायक और एक्टर्स हैं। बस यही नहीं, त्रिपुरा यूनिवर्सिटी में अभी कोकबोरोक डिपार्टमेंट बी खोला गया, जिसमें कोकबोरोक भाषा को लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और PhD भी।

कोकबोरोक दिवस में और भी कई कार्यक्रम होते हैं जिनमें सब लोग एक साथ मिलकर खाना बनाते हैं और मिल-बांटकर खाते हैं।

इस दौरान सिर्फ  बोरोक खाना (Traditional Food) ही पकाया जाता है जैसे Godok, Chakhwi, Mosideng और कई तरह के मांस-मच्छी भी सब ट्रेडिशनल तरीके से पकाए जाते हैं।

बोरोक खाना। फोटो साभार- जोएल देब बर्मा

यह माना जाता है कि कोकबोरोक भाषा, दिमासा भाषा जो एक असम की जानजाति है उसकी शाखा है और हमारे पूर्वज़ दिमासा ही हैं।

स्कूल-कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में कोकबोरोक लिखना-पढ़ना इंग्लिश और बांग्ला में ही होती है, इसलिए त्रिपुरा के स्कॉलर्स कोकबोरोक स्क्रिप्ट निकालने का भी प्रयास कर रहे हैं।


लेखक के बारे में: जोएल देब बर्मा त्रिपुरा के निवासी हैं। वह अभी BA की पढ़ाई कर रहे हैं। इन्हें गाने और घूमने के शौक के अलावा लोगों की मदद करना अच्छा लगता है। वह आगे जाकर LLB की पढ़ाई कर वकील बनना चाहते हैं।

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