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“मैं गे हूं मगर जवान आदमियों को मेरा जवान बदन नहीं रिझाता है”

मुझे थोड़ा धक्का सा लगा जब उसने यह कहा कि सॉरी मगर मेरे लिए तुम उम्र में बहुत छोटे हो। गे डेटिंग एप्प, ग्राइंडर पर उससे लंबी बातें करने के बाद उसे अपनी फोटो व्हाट्सएप्प की। उसकी इस बात के बाद मैंने वापस उस फोटो को देखा, पकी हुई दाढ़ी और झड़ते हुए बालों के साथ मैं कहीं से भी यंग नहीं दिखता था मगर उसके लिए मैं यंग था।

यह मेरी तारीफ नहीं, मेरे उपर तंज़ था। उसे झुर्रियों वाला आदमी चाहिए था, जितना बूढ़ा उतना अच्छा। मैंने सोचा कि बूढ़े लोग किसको पसंद आते हैं? मुंबई के बाहर एक जूनियर कॉलेज में पढ़ाने वाले इस तीस-चालीस के गबरू, घनी मूंछों और मज़बूत कलाई वाले प्रॉफेसर को बूढ़े लोग ही पसंद थे। तुमने जिनके साथ सेक्स किया, उनमें सबसे बूढ़े की उम्र क्या थी? 85, उसने जवाब दिया, यानि पच्चासी!

इस तरह की पसंद रखने वालों से जान-पहचान हाल में ही हुई थी

जवान मर्द, जो अब घर बसाना चाहते थे, जिन्हें बुज़ुर्ग आदमी पसंद आते थे और वो उनको ही तलाशते थे। एक बार गाज़ियाबाद में मेरी मुलाकात एक रईस, चौड़े कंधों और लंबी जांघों वाले आदमी से हुई। उसने बताया कि उसे वे मर्द पसंद हैं, जो उसके बाप जैसे दिखते हैं। ताकतवर, मूंछों वाले और जिनकी तोंद हो।

मैंने उससे पूछा कि यह उसको थोड़ा गलत सा नहीं लगता, घर वालों के साथ ही मौजा टाइप? मज़ाक करने की मेरी यह कोशिश बेकार रही। मेरी इस बात पर उसे गुस्सा आया और उसने कहा, “मैं बस बता रहा हूं कि मुझे किस टाइप के मर्द पसंद हैं।” उसने आगे कहा, “यह भी कि जिन मर्दों को मैं जानता हूं, उनमें मेरे पिताजी ही सबसे हैंडसम हैं।”

यह सुनकर मुझे मेरी बेवकूफी का अंदाज़ा हुआ। यह चाहत उसके रोम-रोम में यूं बसी हुई थी कि उसे ऐसे लोगों के अलावा और कोई पसंद ना आता था। मैं कहीं से भी उसकी चाहतों की लिस्ट में फिट नहीं बैठता था। ना ही मेरी दाढ़ी थी और ना ही लंबा-चौड़ा था और ना ही मुझे तोंद है।

हमें लगता है हम जानते हैं कि लोगों को क्या पसंद आता है। शायद मुझे यह लगता था कि मुझे पता है कि लोगों को क्या पसंद है। जैसे- जवान, फिट बॉडी, गोरी त्वचा, सुडौल शरीर, दाढ़ी या सुंदर चेहरा। मुझे भी यह सब आज भी अच्छा लगता है लेकिन ज़रूरी नहीं है कि बाकी लोगों की भी यही लिस्ट हो। जिन लड़कों ने जवानी में मुझसे नज़रें फेर लीं, उसी तरह के लड़के मेरी ढलती उम्र के दीवाने बन गए। सब नहीं लेकिन ऐसे लोगों की काफी संख्या थी। उन लोगों की प्रोफाइल में साफ-साफ लिखा था, “अधेड़ उम्र के मर्द ही पसंद हैं, चालीस के नीचे वाले कृपया दूर रहें।”

ऐसी दीवानगी इससे पहले देखी ना थी कभी

पॉर्न साइट्स में मैंने ऐसे वीडियोज़ देखे जिनमें जवान मर्द, अधेड़ उम्र के मर्द के साथ सेक्स कर रहे थे और बिना सोचे समझे ही मैंने इनकी मन ही मन निंदा भी की। यह देखो कैसे बेताब जवान मर्द हैं और साथ में ज़रूरत से ज़्यादा गर्म बूढ़े मर्द भी। ऐसे वीडियोज़ बनाने के खास पैसे मिलते होंगे क्या? मैंने मन ही मन खुद को समझा लिया था कि ऐसा सेक्स कोई अपनी मर्ज़ी से तो नहीं करेगा। सभी को जवान लोग ही पसंद होते हैं।

अधेड़ उम्र के मर्द जवान औरतों को अपना निशाना बनाते हैं, अधेड़ उम्र की महिलाएं जवान औरतों पर हावी होती हैं, बूढ़े लोग जवान लोगों को ढूंढते रहते हैं, यही होता है ना?

मुझे हमेशा से पता था कि मैं गे हूं मगर जवानी में किसी भी दूसरे गे मर्द के साथ मेरी जमी नहीं। उनके लिए मैं गंभीर था, उम्र के हिसाब से कुछ ज़्यादा ही समझदार। जैसे एक अधेड़ उम्र का आदमी जवान शरीर में कैद हो। ना उन्हें मैं पसंद आता था और ना ही वे मुझे। जो चीज़ें जवान करते थे, वे मुझे कभी अच्छी नहीं लगीं। ना शराब पसंद थी, ना पार्टी करने का शौक, ना तेज़ म्यूज़िक, ना नाच-गाना और ना ही शॉपिंग या फिल्में देखना। मुझे वह सब पसंद था जो बड़ी उम्र के साथ जुड़ा होता है मगर मुझे बड़े उम्र के आदमी पसंद ना थे। मुझे जवान बदन की चाह थी और जवान आदमियों को मेरा जवान बदन नहीं रिझाता था।

मैं इस युवा पीढ़ी का था ही नहीं

मेरे गे फ्रेंड्स मुझसे कैरियर के बारे में और अपने दिल की बात शेयर करते। उनके लिए मैं बड़े भाई जैसा था, समझदार, सेक्स की मोह-माया से दूर रहने वाला दोस्त। मुझे पहले भी और आज भी अपने शरीर को लेकर कॉन्फिडेंस नहीं रहा है। मुझे लगता था कि लोग मुझे मोटा होने के कारण नीची निगाहों से देखते हैं। बेडौल बदन, ऐसे टाइट कपड़े पहने जो मुझे फिट नहीं होते और तो और, मैं इलास्टिक बैंड वाली पैंट भी  पहनता था। मुझे लगता था कि लोगों को मेरी चॉइस नापसंद है, साथ-साथ वे मुझे मेरी बॉडी की वजह से भी रिजेक्ट करते हैं।

मुझे हमेशा ऐसा फील होता था कि मैं सबके साथ जुड़ नहीं सकता, हमेशा पराया, ग्रुप के बाहर ही रह पाऊंगा। इसलिए भी मैंने अपने काम पर ज़्यादा ध्यान दिया। एक सीरियस अफेयर और दिल टूटने के बाद मैंने किसी को को डेट नहीं किया।

मैंने अपने कैरियर पर ध्यान दिया और कॉरपोरेट लाइफ की सीढ़ियां चढ़ता गया। पैसे कमाए और पैसे देकर लड़कों के साथ सेक्स भी किया। ये वह जिज्ञासु जवान लड़के थे, जो इन्टरनेट पर आसानी से मिल जाते थे या किसी और नेटवर्क पर भी। एक छोटी सी फीस देकर उनके लिए भी आसान था और मेरे लिए भी। वे आते थे, हम सेक्स करते थे, वे पैसे लेकर वापस चले जाते थे। कोई इमोशनल रिश्ता नहीं, ना कोई ड्रामा और ना ही खतरा। जिस चीज़ को पा ना सको, उसके दर्द से कोसों दूर रहो।

मुझे वे पसंद नहीं थे जिनकी गर्लफ्रेंड होती थीं

उन अजनबियों के साथ किसी भी समय मुझे ऐसा नहीं लगा कि उन्हें मेरे शरीर से प्यार है। सच तो यह था कि मैंने कभी अपने को ऐसा सोचने ही नहीं दिया। मैं उनके साथ अच्छे से पेश आता था। अगर वे मुझे दिल से त्यौहारों पर बधाई देते थे तो मुझे लगता था कि उन्हें और पैसे चाहिए, जो कि अक्सर होता था।

जब हम दोनों साथ होते थेे तो उनका कामुक होना उनकी जवानी की निशानी होती थी। जब वे मेरे साथ सेक्स करने के लिए पॉर्न देखना चाहते, वह भी औरतों वाला, तो मुझे अच्छा नहीं लगता था। ऐसे लोगों को मैं वापस नहीं बुलाता था।

मुझे वे लोग भी पसंद नहीं थे, जो सेक्स के बाद बताते थे कि उनकी गर्लफ्रेंड है और मर्दों के साथ सेक्स करना बस उनका एक शौक है। यह मेरे लिए उन्हें वापस ना बुलाने की सबसे बड़ी वजह होती थी। मैं उन्हें पैसे देकर भेज देता। मुझे वे मर्द पसंद थे, जो कम बोलते थे, काम ज़्यादा करते थे और हवाबाज़ी कम करते थे।

मैं जितना कॉन्फिडेंट कॉरपोरेट जगत में था, उतना ही चारदीवारी के अंदर दब्बू था, बिल्कुल ज़ीरो कॉन्फिडेंस। मैं अपनी लाइफ से खुश था, सिंगल मर्द वाली लाइफ। घर की रख-रखाई के लिए स्टाफ था। सेक्स के लिए जवान मर्द। दिल की बात करने के लिए दोस्त थे ही। थोड़ा दिमागी कसरत करने के लिए भी एक अलग दोस्तों का ग्रुप था। मेरी लाइफ कई हिस्सों में अच्छे से बंटी हुई थी। सब सही चल रहा था, फिर एक दिन लॉकडाउन के दौरान आप यह सब मिस करने लगते हो। वेबिनार और वीडियो कॉल से तंग आकर, ग्राइंडर पर ज़्यादा समय बिताने लगते हो।

खुद के स्वास्थ और सुरक्षा के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना पड़ रहा है और लोगों से मिल भी नहीं सकते हो। इसलिए अपनी इच्छाओं को शांत करने के लिए डिजिटल दुनिया का सहारा लेना पड़ रहा है। इसी दुनिया में घूमते-घामते मुझे सेक्शुअलिटी के बगीचे में यग एक नई क्यारी दिखी, जहां जवान मर्द अपने से उम्र में बड़े मर्दों को ढूंढते हैं। उनको उनमें अपने डैडी दिखते हैं, जो उनका ख्याल रखेंगे।

ट्विंक क्लब यानि जवान और छरहरे होते हैं, शरीर पर कोई बाल नहीं होता, स्ट्रेट  एक्टिंग क्लब यानि विषमलैंगिक वाले हाव-भाव रखने वाले, मसल क्लब यानि बॉडी बिल्डर टाइप, शुगर डैडी यानि बड़ी उम्र के मर्द, बेर क्लब जिनके शरीर पर बाल ही बाल होते हैं और औटर क्लब यानि बेर क्लब से थोड़े कम बाल वाले मर्द में हमारा समाज अपनी पसंद तलाशता है। इस तरह का बंटवारा डेटिंग एप्स में काफी कॉमन होता है। लोगों को मालूम होता है कि उन्हें क्या चाहिए।

इंटरनेट पर ऐसी जगह है, जो बड़ी तोंद और शरीर पर हद से ज़्यादा बाल वाले अधेड़ उम्र के मर्द को पसंद करने वालों के लिए खास रची गई है। उन मर्दों के लिए, जिन्हें चिकने यंग लड़के पसंद नहीं आते। इसके अलावा और भी च्वाइस होती हैं, जो पॉपुलर नहीं हैं। मुझे तो इस बात से ताजुब्ब हुआ कि कितने सारे ट्विंक्स और मसल्स वाले मर्द हैं, जिनको बड़े शरीर वाले बेअर्स पसंद हैं, जिन्हें देखते ही झप्पी देने और लेने का मन करता है। यह सब देखकर मैं सोचता कि सांता क्लाउज़ और लाफिंग बुद्धा तो इन जवानों के शरीर में आग लगा देते होंगे।

जब मैंने दाढ़ी बढ़ानी शुरू की, मेरी दुनिया बदल गई

मैं हमेशा क्लीन शेव रहता था, थोड़ा सा मोटा क्यूट था और हमेशा खुश दिखता था। यह सोचकर कि खुश दिखने से मर्द मेरी ओर आकर्षित होंगे। जबकि ऐसा बहुत कम होता था मगर जब मैंने दाढ़ी बढ़ाई और वह पकनी शुरू हुई, तभी मुझे मेरी डिमांड का अंदाज़ा हुआ। मैं खुद थोड़ा सरप्राइज़ हो गया था। लोग मेरे लुक्स की तारीफ करने लगे। क्या औरत क्या मर्द, दोनों ही। उस दाढ़ी ने ही ग्राइंडर पर मेरा भाव बढ़ा दिया। खासतौर पर इसलिए कि मेरी दाढ़ी अधपकी सी थी। मैं भी अब ऑफिशियली एक “पापा बीअर” था।

ग्रिंडर तो अपनी पॉर्न टॉक के लिए फेमस है। इसलिए जब मैंने वहां निर्मलता और रोमांस देखा, तो हैरान हुआ। वहां कई ऐसे लड़के थे, जो बड़ी उम्र के मर्द से प्यार चाहते थे। उन्हें पैसे नहीं चाहिए थे, ना ही उनको बस एक बदन चाहिए था। उनकी इच्छाओं में एक संपूर्णता थी, जो सीमाओं को मिटा रही थी। उन्हें दोस्ती चाहिए थी, संरक्षण, चाहत, सहयोग आदि उन्हें प्यार में वैसा कुछ चाहिए था जैसा किसी छोटे की देखरेख करने वाला एक बड़ा देता है।

यानि कि अभिभावक वाला प्यार। इसका सही शब्द शायद “वात्सल्य” होगा, जिसमें श्रृंगार और माधुर्य, यानि सेक्स और रोमांस दोनों हों। एक जवान और एक उम्रदराज़ मर्द के बीच का कोमल रिश्ता। जैसे कि उनमें से ही एक मर्द ने कहा था, ‘निर्मल भाव’ जिसे कम लोग मान और समझ पाते हैं।

गे क्लब के पोस्टर बॉय

लॉकडाउन के दौरान मैं जिन-जिन लड़कों से ऑनलाइन मिला, वे सब मुझसे घंटों बातें करते थे। कभी अपने कैरियर, कभी अपने स्वभाव, तो कभी राजनीति के बारे में। मैं उनसे पूछा करता कि अपनी उम्र के दोस्त नहीं मिलते हैं तुमको? तो वे बताते कि हां मिलते हैं लेकिन उनके साथ वे PUBG खेलते हैं। उससे वे संतुष्ट नहीं होते। उनको मेरे जैसे उम्रदराज़़, दाढ़ी वाले मर्द ज़्यादा पसंद आते थे, क्योंकि वे अपने साथ ढेर सारे अनुभव लाते थे।

वे लोग गे सीन का हिस्सा नहीं थे। यानि यूं समझो कि वे पार्टियों में नहीं जाना चाहते थे। वे यंग समलैंगिक मर्दों से मिलना नहीं चाहते थे। उन्हें क्वीयर पॉलिटिक्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे तो उससे बोर होते थे। कभी-कभी जब यंग लड़के उन पर लाइन मारते थे, तो वे उन पर हंस दिया करते थे। सच कहूं तो इनमें से कुछ लड़के तो बहुत ही अच्छे दिखते हैं। जिम्म जाते हैं, वे अपने शरीर को तराशकर रखते हैं, बल्कि वे तो गे क्लब के पोस्टर बॉय भी बन सकते हैं।

उन्हें पता था कि समलैंगिक दुनिया में उनकी बहुत एहमियत थी लेकिन उनको उसमें दिलचस्पी नहीं थी। यंग लड़के उन्हें कभी आकर्षित कर ही नहीं पाए। उनका जिम्म जाना उम्रदराज़ मर्दों को लुभाने का हथकंडा नहीं था। वे इसलिए जाते थे, क्योंकि उनको अपने शरीर से प्यार था। उन्हें सुंदर और आकर्षक दिखना पसंद था। ऐसे में मेरी शंकाएं लौट आती हैं। आखिर उनको मुझसे क्या चाहिए! उनको मेरी बॉडी में दिलचस्पी हो यह तो मुमकिन नहीं।

यह उम्र वह स्वर्ग है, जिसे मैंने पहले कभी देखा ही नहीं

आपने बॉलीवुड स्टार्स और सेलिब्रिटी, क्रिएटर्स को देखा होगा। वे हेयर डाई, फेस लिफ्ट्स, टमी टक्स, कीटो डाइट और इंस्टाग्राम पोस्ट्स के सहारे अपनी जवानी के सुनहरे समय को बरकरार रखना चाहते हैं, क्योंकि उनको बुढ़ापे से डर लगता है और वे उसे अपनाना ही नहीं चाहते हैं लेकिन मैं उल्टा चाहता हूं।

ज़िंदगी का यह मुकाम, यह उम्र वह स्वर्ग है, जिसे मैंने पहले कभी देखा ही नहीं था। हो सकता है, मैं पहले मानने को तैयार ही नहीं था। जहां मैं जैसा हूं, वैसा ही पसंद किया जा रहा था यानि परिपक्व भी और थोड़ा गोल मटोल भी! मेरे लिए मैं जैसा हूं, वैसे रहने की यह एक तरह की आज़ादी थी।

फिर भी सोच दूसरी तरफ चली ही जाती थी। भले ही हम सब मैच्योर थे, फिर भी क्या सामने वाले को मैं किसी विकृत वजह से पसंद आ रहा था? यूं उम्मीद करना कि मैं उसे सच में पसंद हूं, ठीक था क्या? मैं इस बात पर गौर ही नहीं कर रहा था कि सामने वाला भी पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट-ग्रैजुएट है, कोई दूध पीता बच्चा नहीं।

फिर भी धीरे-धीरे मुझे यह महसूस हुआ कि यहां पर दोनों मैच्योर लोगों के बीच एक परस्पर समझ है। बाकी जो भी अटकलें दिमाग में आ रही हैं, वे बस मेरे पुराने, बुरे अनुभवों पर आधारित हैं। समलैंगिक लोगों के लिए ये नियम किसने बनाए? ऐसा किसने कहा कि सिर्फ यंग लोग ही प्यार में पड़ सकते हैं? यंग लोग सिर्फ यंग लोगों के साथ ही प्यार में पड़ सकते हैं? दूसरों के बनाए नियमों और कही बातों की वजह से भला हम अपनी इच्छाएं क्यों मारें?

जिन लड़कों से मैं मिला हूं, उनकी जो बात मुझे सबसे प्यारी लगती है, वह है उनकी ज़िंदादिली और जीवन को भरपूर जीने का तरीका। एक मुझे अपने हेअरकट की तस्वीरें भेजता है। मैं बड़ाई कर दूं, तो खुश हो जाता है। दूसरा बताता है कि वह अपने परिवार से दूर इसलिए रहता है, क्योंकि वह उनको अपने बारे में खुलकर बता नहीं सकता है।

एक तो यह चाहता है कि मैं उसे रोज़ सेल्फी भेजूं, वह भी नार्मल चीज़ें करते हुए। एक और है जो मुझे बचकाने जोक भेजता है और तुरंत जवाब ना दूं तो नाराज़ हो जाता है। एक मुंब्रा की एक झुग्गी में रहता है, दूसरा कोटा के पास अपने छोटे से गाँव में, एक काकीनाडा में सेल्स पर्सन है, तो एक अजमेर में छोटा सा व्यापारी। कोई मुझे बिना कपड़ों के देखना पसंद करता है, तो कोई बस इमोजी भेजने से ही खुश हो जाता है।

वीडियो चैट होते भी हैं तो काफी छोटे। सिर्फ एक किस्स या एक स्माइल या एक-दूसरे को सराहने वाला छोटा सा पल। कभी चादर में छुपकर, तो कभी बाथरूम से अपने-अपने परिवार की नज़र से बचकर। कभी-कभी मुझे उनकी मासूमियत दिखती है, तो कभी-कभी उनका डर।

समाज यंग लोगों पर जो बोझ डाले बैठा है, वह देखकर दुख भी होता है। यह आदमी बनने की ओर जाते हुए लड़के, मेरी छाती पर चैन से सोने की कामना रखते हैं। शायद मेरे पास सुरक्षित महसूस करते हैं और मुझे लगता है कि नज़दीकियां बढ़ने का यह एक ज़रूरी और सुंदर अंदेशा है।

मैं कभी भी एक पर नहीं टिका

यानि मैं मोनोगमस नहीं हूं। मोनोगैमी का मतलब है एक टाइम पर किसी एक व्यक्ति के साथ ही रिलेशन में रहना। इसलिए मैं एक साथ कई लोगों से चैट करता हूं। मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि मुझे कभी भी एक्सक्लूज़िविटी विशिष्टता की चाहत नहीं रही है। यानि उनकी ज़िंदगी में बस मैं इकलौता पार्टनर बनूं।

कुछ को इस बात से दिक्कत होती है लेकिन अधिकतर सवाल नहीं करते हैं। मैं इस बात पर एहतियात ज़रूर रखता हूं कि एक की बात दूसरे से नहीं करता, क्योंकि मुझे लगता है वह प्राइवेसी के नियम के खिलाफ होगा लेकिन वे सब जानते हैं कि मेरी ज़िंदगी में और लोग हैं।

कभी-कभी वे मुझसे मेरे पार्टनर के बारे में पूछते भी हैं। मैं हंसकर टाल देता हूं और वे मुझे अपनी ज़िंदगी में आए किसी दूसरे पापा बेयर के बारे में बताते हैं, ताकि मैं उससे जलूं, उल्टा मुझे राहत महसूस होती है, क्योंकि मैं उनकी ज़िंदगी का अकेला पार्टनर होने का प्रेशर नहीं लेना चाहता।

मैंने ऐसे बॉयफ्रेंडस की कहानियां सुनी हैं, जो बहुत जलते हैं। अपने साथी को पकड़कर अपने पास रखना चाहते हैं। वे आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं, कई तरह के नाटक करते हैं, डिप्रेशन में चले जाते हैं। उस चिपकने वाली प्रजाति और उनकी दुनिया से मुझे डर लगता है। मेरी चाहत अकेलेपन में नहीं, बल्कि अनेकों को पाने और उन अनेकों में एकांत ढूंढने के बारे में है।

मेरी डिमांड इसलिए भी ज़्यादा है, क्योंकि मैं अकेला हूं। मुझे यह पता है कि ज़्यादातर उम्रदराज़ लोग शादीशुदा ही होते हैं। यह शादीशुदा मर्द किसी ट्रिप के दौरान होटल के कमरों में यंग मर्दों से मिलते हैं। उनका मकसद बस सेक्स होता है। वे भी बिल्कुल गुप्त तरीकों से, जैसे यह सब करने में उनको खुद से घृणा हो रही हो।

वे बातचीत में समय बर्बाद नहीं करना चाहते हैं लेकिन ये जो यंग मर्द हैं, उनको सिर्फ सेक्स नहीं चाहिए। उनको एक दोस्त की तलाश रहती है। वे इन उम्रदराज़ मर्दों के विवाहित जीवन को खराब नहीं करना चाहते हैं मगर ऐसे गुप्त तरीकों से छुपकर मिलना भी नहीं चाहते हैं। ऐसे रहना उनको अपमानित, अस्वीकृत और वंचित महसूस कराता है। जैसे किसी कोने में बैठ, वे एक टुकड़ा फेंके जाने का इंतज़ार कर रहे हों।

एक बहुत ही खुशमिज़ाज यंग बैंकर का वाक्या

वह जोगेश्वरी के एक बहुत ही संपन्न नॉर्थ इंडियन परिवार से है। उसने मुझे बताया कि उसका बीस साल की उम्र से ही एक वकील के साथ संबंध था और वह खत्म तब हुआ जब उस वकील की पत्नी और बच्चों को इसके बारे में पता चल गया। उसका दूसरा रिश्ता एक सिविल सर्वेंट के साथ था, जो उससे बीस साल बड़ा था।

पांच साल तक वह आदमी कई बार उससे मिलने उसके शहर गया और दोनों को इतना टाइम साथ में बिताता देख उसकी बीवी को शक हो गया। बीवी ने महसूस किया कि यह सिर्फ दोस्ती नहीं थी और बस फिर उसे इस रिश्ते को तोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया।

ये दोनों रिश्ते लंबे समय तक चले थे। वह अभी भी उन लोगों के संपर्क में था, जो अब तीस साल से ऊपर का था और इन दो रिश्तों का बोझ लिए घूम रहा था। मैंने उससे पूछा कि क्या वह खुद कभी शादी करेगा और उसने बिना सोचे-समझे ही कह दिया कि हां वह करेगा।

उसने माना कि वह बहुत दिन तक इससे बचकर नहीं रह सकता है, जो होना है वह तो हो के ही रहेगा। भले ही वह इससे खुश नहीं था मगर इससे बच भी नहीं सकता था। उसके हिसाब से शादी को सहमति देते हुए भी वह किसी उम्रदराज़ आदमी से प्यार करे। उससे इमोशनल रिश्ता बनाए तो गलत क्या है।

उसे नहीं लगता था कि उसकी सेक्शुअलिटी उसकी शादी में कोई रुकावट पैदा कर सकती थी। वह इससे कम्फर्टेबल था। उसके दिमाग में किसी तरह का दुःख या कोई शंका नहीं थी। तो क्या वह अपनी बीवी को भी आज़ादी देगा कि वह भी किसी और से प्यार कर सकती है।

मैंने पूछा मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था। अगर उसके बच्चों को पता चल गया तो? इस सवाल के बाद तो उसने मुझे ब्लॉक ही कर दिया। मुझे लगता है, उसे ऐसे ‘डैडी’ पसंद थे, जो उससे जुड़कर रहें ना कि उससे सवाल करते फिरें।

इन पिछले कुछ महीनों में मुझे यह पता चला है कि समलैंगिक दुनिया पर लोगों की सोच इतनी दकियानूसी क्यों है? क्योंकि बार-बार वही पुरानी बातें हर जगह दोहराई जाती हैं। इस तरह इस दुनिया को सीमित ही रखा जाता है। अगर हम आंखों पर छाए धुंधलेपन को पोंछकर देखें तो हमें ऐसी कई दुनिया मिलेंगी जो छुपी ज़रूर हैं मगर मौजूद हैं और अच्छी चल रही हैं।

मैंने ऐसे कई मर्दों को देखा है, जो मुझे लगता था मेरी पहुंच के बाहर हैं। आज वे खुलकर मुझे अपने आगोश में ले रहे हैं, मेरे बॉडी को एन्जॉय कर रहे हैं। मेरी मैच्योरिटी को पसंद कर रहे हैं। उनके साथ मैं जैसा हूं, वैसा रहता हूं। कोई नाटक नहीं, कोई लेन-देन नहीं। बस एक-एक पल को गहराई तक जीता हूं। हां, हो सकता है कि इन लड़कों को एक पिता समान इंसान की ज़रूरत हो।

शायद मेरे अपने सेक्शुअल और कामुक इच्छाओं के पीछे उन कभी ना हो सकने वाले बच्चों को प्यार करने की चाह हो। मैं उनका पिता नहीं हूं और वे मेरे बच्चे नहीं हैं। इस तरह के आकर्षण को अनाचार या फेटिश का नाम देना भी एक तरह से इन अलग तरह की इच्छाओं को स्वीकार ना करने का तरीका है। मैं किसी तरह के विश्लेषण का हिस्सा बने बिना इस फीलिंग को एन्जॉय करना चाहता हूं। जो जैसा है, वैसा ही रहने दो बिल्कुल नैचुरल।


नोट: अंकुर मेहता (बदला हुआ नाम), जो बहुत ही जल्द रिटायर होने वाले IT कंसलटेंट हैं, जो ज़्यादातर बेंगलुरु में रहते हैं लेकिन मैसूर को पसंद करते हैं।

लेख: अंकुर मेहता

चित्रण: पूर्णता

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