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“जब अखबारों ने मेरे लेखों को छापने से मना कर दिया, तब मैंने लिखना शुरू कर दिया”

मुझे लिखना कुछ खास पसंद नहीं था। मैं कभी-कभी छोटी शायरी, कविता और निबंध लिखा करता था। खास कर जब अखबार में कोई एसी खबर पढ़ लूं, जो मन को विचलित कर दे, सोचने पर मजबूर कर दे, इस स्तिथि में अपने मन की सभी प्रकार की भावनाओं को निकालने का एक ही ज़रिया होता था लिखना। इसके बाद मैं कुछ पन्नो को समेटकर लिखना शुरू कर देता था।

मेरे सवाल मेरी पहल

आज के दौर में सरकार से समाज तक अपनी बात कह पाना काफी आसान है। हम अपनी बात किस तरीके से कहते हैं, वह मायने रखता है। एक ऐक्टिविस्ट के रूप में मुझे हर वक्त अपनी बात कहने में कठनाइयों का सामना करना पड़ा। मैं मेडिकल एजुकेशन में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ पिछले 4 वर्षों से लड़ता चला आ रहा हूं।

साथ ही साथ एक आरटीआई एक्टिविस्ट भी हूं। मेरे द्वारा 100 के आस पास आरटीआई दायर की जा चुकी हैं और इन्हीं 4 वर्षो में मैंने अनेकों सवाल सत्ताधारी सरकार से किए हैं, आज भी कर रहा हूं। वैसे तो सभी की तरह जवाब की उम्मीद नहीं होती और कभी-कभी मेरे सवालो से, लेखों से कई लोगों का हित हुआ है। फिर वह नीट (NEET) पर लिखे लेख हों या फिर वेटेरिनरी स्टूडेंट्स की मांगों की बात हो।

लिखकर दुनिया तक आवाज़ पहुंचाने का एक सपना

कभी किसी न्यूज़ पेपर को कॉल करता तो कभी किसी न्यूज़ चैनल को। मेरे पास मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे भ्रष्टाचार की जानकारी है, क्या आप इसे लिखेंगे? क्या आप इसे अपने न्यूज़ चैनलों पर दिखाएंगे? यह भी एक सवाल ही था जो मीडिया की ईमानदारी पर था मगर कई मामलों पर मीडिया ने हाथ खड़े कर दिए।

मैं भी इन्हें कॉल कर कर के थक चुका था। तो अंत मे मैंने खुद ही लिखने का फैसला किया। मेरे लिखित लेख मेरी ही आवाज़ बनकर मेरे शब्दों के माध्यम से लोंगों तक पहुंचने लगे। दिमाग से मन तक हर समय चल रही कशमकश को शब्दों ने थोड़ी राहत दी।

Youth Ki Awaaz ने मेरी आवाज़ को उड़ान दी

Youth Ki Awaaz पर शुरुआत मैंने NEET परीक्षा में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ एक लेख लिख कर की। उस एक लेख से मैंने जाना कि हर बार सड़कों पर भीड़ एकत्रित करके ही बस आप विरोध नहीं कर सकते। केवल आंदोलन ही एक तरीका नहीं है भ्रष्टाचार से लड़ने का।

दिमाग से निकले सवालों को वास्तविकता से मिला दिया जाए तो एक बेहतरीन संगम होता है, जो कि शब्दों के रूप में लेख बनकर बाहर आता है फिर मैंने वही करना शुरू कर दिया। नीट (NEET) में हुए भ्रष्टाचार की वह लड़ाई तो हम जीत नहीं पाए मगर मैंने खुद में कुछ नया पाया कि लिखने में भी एक शांति है। हर वो सवाल जो आपको परेशान करे, मन को विचलित कर उसे शब्दों का रूप देकर लेख में बदल दें और आज मैं यही करता हूं।

लेखनी ने मुझे आत्मविश्वास दिया

मेरे द्वारा सरकार से सवाल किया गया तो कभी सरकार की ही पोल खोलने वाले लेख लिखे गए,जिनमें उनके द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार निकलकर सामने आएं। लोगों ने भी इन लेखों को खूब सराहा और शेयर किया। इससे एक आत्मविश्वास बढ़ा और मैंने लिखने को भी अपनी बात कहने का सबसे अच्छा ज़रिया माना।

लेखों के माध्यम से केवल हम अपनी बातें ही नहीं बोलते, बल्कि सत्य को प्रत्यक्ष रूप में शब्दों में उतार देते हैं। पढ़ने वाले इन शब्दों से स्थिति का पूर्ण आभास कर पाते हैं। यही मैं चाहता हूं कि पाठकों के मन में भी सवाल जागे और वे भी सही गलत में भेद करें। सरकार और समाज में अनेक विकृतियों को बाहर लाएं और साथ-साथ उनका समाधान करने की कोशिश करें।

शुरुआती दौर में मेरे लिखने का कारण एक विवशता थी मगर आज यह एक आत्मविश्वास से भरे सागर के समान हो चुकी है, जो बस शब्दों के रूप में बहना चाहता है। खुले आसमान की तरह कहना चाहता है।

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