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काश न्यूज़ चैनलों में हाथरस रेप की खबर को प्रमुखता से जगह मिल पाती

कई कोठरियां थीं कतार में
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई,
थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया
उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा
उसके बचपन से जवानी तक की कथा।

कितनी कमाल की बात है, एक रेप होता है और कथित चैनलों पर एक डिबेट के लिए जगह नहीं मिलती है। होगी भी क्यों? भई मुद्दा उनके लिए यह बड़ा थोड़े ही है। उनके लिए मुद्दा है किस हीरोइन ने क्या किया, उस मुद्दे में मसाला नहीं था, मुद्दे में थे सवाल, हां सवाल।

सुनकर अटपटा लगा ना? हां लगेगा ही क्योंकि भई हमारी आत्मा ने खुद से सवाल करना बंद कर दिया है। हम बस उनके दिखाए मसालों में ही खुश हैं। असल ज़िंदगी में दर्द तकलीफ से हमें क्या मतलब? इस मुद्दे को ट्रेंड भी नही होना था, होता भी कैसे क्योंकि ये कोई सेलेब्रिटी तो थी नहीं। ये थी महज़ एक गरीब दलित लड़की। दलित सुनकर अंग फड़फड़ाने लगे होंगे इस समाज के तथाकथिक रक्षकों के।

एक लड़की का बलात्कार होता है और वो आखिरकार अपनी ज़िंदगी से हार जाती है। सोचिए ज़रा अगर आपके अंदर का इंसान तनिक सा भी ज़िंदा है। क्या गलती थी उसकी? एक लड़की होना या एक गरीब घर में पैदा होना? 19 साल की लड़की उसे खेत में घसीटकर बारी-बारी से दुष्कर्म किया गया। उसके बाद उसे मारने के इरादे से उसकी गर्दन दबाई जाती है और उसे मरा समझ कर छोड़कर चले जाते हैं।

बच्ची बच जाती है फिर शुरू होती है उसके अस्तित्व की जंग। हां, ठीक पढ़ रहे हैं आप अस्तित्व की जंग, शासन- प्रशासन से लेकर मीडिया तक इन सबसे हारकर वो इस दुनिया को छोड़ कर चली गई। अपने जीवन को लेकर उसका यह सपना तो कभी नहीं होगा।

इस मुद्दे पर अभी भी राजनीति खत्म नहीं हुई, उसके साथ जो हुआ उन्हें झूठा बताया जा रहा है। जीभ नहीं कटी और हड्डी नहीं टूटी वगैरह-वगैरह। भई कहां से लाते हो इतनी बेशर्मी? एक लड़की, जिसके साथ दुष्कर्म हुआ, 20 दिन ज़िंदगी और मौत से लड़ने के बाद वो हार जाती है और तुमको बस यह कहना है कि केवल दुष्कर्म हुआ है, जीभ और हड्डी नहीं टूटी।

भई वाह! कितनी बेशर्मी से कह ले रहे हो। अपनी अंतरात्मा से पूछो ज़रा कि जिन हैवानों ने उसके साथ यह सब किया उनकी सज़ा सिर्फ इसलिए कम हो जाएगी, क्योंकि जीभ नहीं कटी और हड्डी नहीं टूटा?

इसका ट्रेंड ना होना, मीडिया पर इसके लिए जगह ना मिलना आपकी नाकामी है। यह नाकामी है आपकी कि सवाल पैदा होने बंद कर दिए गए हैं आपके। गांजा की खबर देखते-देखते वह आपके दिमाग में इतना असर कर चुका है कि आपकी आत्मा ने खुद से सवाल पैदा करने बंद कर दिए हैं।

उस लड़की को न्याय मिलने में ना जाने कितने साल लग जाएं लेकिन जब भी उन दरिंदों को सज़ा मिले वो समाज को सबक दे। ईश्वर उस बच्ची की आत्मा को शांति दे।

सबसे खतरनाक वो आंख होती है

जो सब कुछ देखती हुई जमी बर्फ होती है,

जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है

जो चीज़ों से उठती अंधेपन की भांप पर ढुलक जाती है।

 

जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई

एक लक्ष्यहीन दोहराव के उलटफेर में खो जाती है,

सबसे खतरनाक वो चांद होता है

जो हर क़त्ल, हर कांड के बाद

वीरान हुए आंगन में चढ़ता है

लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है।

 

सबसे खतरनाक वो गीत होता है

आपके कानों तक पहुंचने के लिए

जो मरसिए पढ़ता है,

आतंकित लोगों के दरवाजों पर

जो गुंडों की तरह अकड़ता है।

 

सबसे खतरनाक वह रात होती है

जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है,

जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते और हुआं-हुआं करते गीदड़

हमेशा के अंधेरे बंद दरवाज़ों-चौखटों पर चिपक जाते हैं।

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