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क्या कुरान में हलाला शब्द का ज़िक्र है?

मंगलवार को जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली में स्थित मुस्लिम महिला मंच द्वारा इस्लाम को समझने के लिए एक सप्ताह का ऑनलाइन सेमिनार चलाया गया।

इस सेमिनार का दूसरा दिन इस्लाम में महिलाओं की स्थिति के लिए समर्पित था। इस सेमिनार का नेतृत्व महिला आयोग की पूर्व सदस्य सईदा हमीद ने किया, जिन्होंने समाज में फैले कई प्रकार के संदेह को स्पष्ट करने के लिए पवित्र कुरान की आयतों द्वारा समझाया।

हलाला शब्द को लेकर सईदा हमीद ने क्या कहा?

हलाल शब्द, जिसका अर्थ होता है ‘शुद्ध।’ हलाला जैसे शब्द को अक्सर हमारा समाज घृणित नज़र से देखता है। इस शब्द को लेकर सईदा हमीद ने अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने हलाला की बात को समझाया और घृणा व्यक्त करते हुए कहा

मुस्लिम समाज में यह व्यापक रूप से माना गया है कि यदि कोई पुरुष, महिला को इस्लामी तौर पर तलाक देता है, यदि वह दोबारा शादी के बंधन में बंधना चाहता है, तो इसके लिए एकमात्र यही तरीका है कि महिला को किसी अन्य पुरुष से शादी करनी होगी। शादी के बाद उससे तलाक लेना होगा फिर वह अपने पहले पति से शादी कर सकती है।

सईदा हमीद ने इस बात का खंडन करते हुए कहा, “यह इस्लाम को बदनाम करने का सिर्फ एक तरीका है। इस तरह की प्रथा का कुरान में कोई ज़िक्र नहीं है। कुरान में ‘हलाला’ शब्द भी शामिल नहीं है।”

सेमिनार में प्रतिभागियों को शुरुआत में मुस्लिम महिलाओं के इतिहास के माध्यम से रूबरू किया गया। पैगंबर मोहम्मद की पत्नी खदीजा, पहली मुस्लिम थीं जिन्होंने मोहम्मद साहब पर ईश्वरीय ज्ञान या इल्हाम के प्राप्त होने के बाद सबसे पहले उनको देखा था। उस समय मोहम्मद साहब की उम्र 40 वर्ष थी। 

उस समय पैगम्बर मोहम्मद बहुत घबराए हुए थे और भयभीत भी थे। खदीजा ने उनको समझया और दिलासा दिया। इसके बाद वह उनको एक इसाई पादरी के पास ले गईं। तो उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद को समझाया कि ईश्वर की तरफ प्राप्त हुआ संदेश अत्यंत महत्वपूर्ण था। ईसाई पादरी ने भविष्यवाणी कर के बताया कि तुम्हारा जीवन कठिन होगा। साथ ही साथ तुम्हारे पास जीवन जीने का समय कम है। इस्लाम का समर्थन करने का काम अधिक समर्थित नहीं हो पाएगा।

वहीं, कर्बला की लड़ाई के बाद पैगम्बर मोहम्मद की बेटी फातिमा की बेटी ज़ैनब ने कई उपदेश दिए। अपने भाई इमाम हुसैन के शहीद होने के बाद उन्होंने काफी समर्थन जुटाया। यहां यह बात साफ है कि शुरुआती इस्लाम में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण थी। महिलाएं सिर्फ जीवनसाथी के रूप में नहीं देखी जाती थीं। 

चार शादियों पर सईदा हमीद ने क्या कहा?

इस बारे में सईदा कहती हैं, “कुरान में एक पुरुष चार शादियां कर सकता है मगर उसको अपनी चारों पत्नियों को एक तरह से सम्मान और प्रेम देना होगा। सबके साथ एक जैसा ही व्यवहार करना होगा। कभी-कभी पुरुष निष्पक्षता से व्यवहार करने में असमर्थ होते हैं। इसलिए यही बेहतर है कि पुरुष सिर्फ एक शादी करे।”

अरब प्रायद्वीप में पूर्व-इस्लामिक जनजातियों ने कई विवाहों की अनुमति दी। दरअसल, जंग के बाद अकसर महिलाएं विधवा हो जाती थीं, जिसे लेकर चिंतित मोहम्मद साहब ने एक से ज़्यादा शादियों के लिए कहा ताकि हर किसी का घर बस सके और कोई विधवा ना रहे। यह अपने समय में क्रांतिकारी कदम था। 

सईदा हमीद ने यह भी बताया कि पहली बार महिलाओं को संपत्ति के अधिकार दिए गए थे। वहीं, दूसरी ओर पैगंबर को मारने की योजना बनाई गई थी, क्योंकि उन्होंने महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी की अनुमति दी थी। पैगम्बर की पहल से पहले महिलाओं के साथ जानवरों से भी ज़्यादा बदतर व्यवहार किया जाता था। यह भी एक क्रांतिकारी कदम था, जिसने पैगम्बर मोहम्मद के कई दुश्मनों को जन्म दिया।

राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य के नेतृत्व में पवित्र कुरान की सप्ताह भर की परीक्षा 31 अक्टूबर तक जारी रहेगी। गौरतलब है कि बुधवार को सत्र दलित और मुसलमानों पर केंद्रित था।


नोट: इस लेख को मूल रूप से रोसम्मा थॉमस ने लिखा है, जो पुणे स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जिसका हिन्दी अनुवाद YKA यूज़र इमरान खान ने किया है।

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