यह शायद कई लोगों के लिए एक रहस्योद्घाटन होगा कि बिहारी मुस्लिम मतदाता पूरे बिहार की 100 विधानसभा सीटों पर जीत और हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जबकि 50 सीटें एसी हैं जहां पर मुस्लिम मतदाता वह न्यूनतम 18 प्रतिशत से लेकर अधिकतम 74 प्रतिशत तक हैं।
फिर भी बिहार राज्य के राजनीतिक क्षेत्र में बिहारी मुस्लिम का हिस्सा अब तक उनकी जनसंख्या के आधार पर बहुत कम रहा है और लगातार यह घटता ही जा रहा है।जब मुसलमानों के प्रतिनिधत्व की बात आती है, सभी धर्मनिरपेक्ष दलों के राजनीतिक तौर तरिके पर प्रश्नचिह्न उठना ज़रूरी है। जैसा की आपको भी पता होगा पिछले 30 साल से बिहार की राजनीति लालू यादव और नीतीश कुमार के इर्दगिर्द घूम रही है।
आज से पंद्रह साल पहले तक लालू – राबड़ी की सरकार में मुसलमान को महत्वपूर्ण पद प्राप्त थे लेकिन नीतीश कुमार की सरकार आने के बाद परिदृश्य बिल्कुल बदल चुका है और सरकार में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सांकेतिक रह गया है। वर्तमान समय में नीतीश कुमार की सरकार में केवल एक मुस्लिम मंत्री हैं वह भी अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के इस से आप समझ सकते हैं कि इस सरकार में क्या अहमियत है मुस्लिम प्रतिनिधित्व की।
प्रतिनिधित्व
उदाहरण के लिए, वर्तमान विधानसभा में 24 मुस्लिम विधायक हैं जो की जनसंख्या के अनुपात में बहुत कम हैं। जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में16.9 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। इसलिए आनुपातिक रूप से कम से कम 40 विधायक होने चाहिए थे।
2015 के चुनाव में 24 मुस्लिम विधायक चुनकर आए थे। 2000 के चुनावों के बाद ये पहली बार था, जब इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम विधायक जीते थे। 2000 के चुनाव में 29 मुस्लिम विधायक चुने गए थे।
2015 में सबसे ज्यादा 11 मुस्लिम विधायक राजद से थे। कांग्रेस के 27 विधायकों में से 6, और जदयू के 71 में 5 मुस्लिम विधायक बने। भाजपा के 53 में से एक भी विधायक मुस्लिम नहीं है।
1985 में सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे
1951 में बिहार में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। उस वक्त यहां 276 सीटें होती थीं। उस वक्त कुछ सीटों पर एक से ज्यादा विधायक भी चुने जाते थे। 1951 में कुल 330 विधायक चुने गए थे, जिनमें से 24 मुस्लिम थे।
उसके बाद 1957 में चुनाव हुए, जिसमें 319 विधायकों में से 25 मुस्लिम थे। 1962 में 21 मुस्लिम विधायक जीते। सबसे ज्यादा 34 मुस्लिम विधायक 1985 के चुनाव में चुनकर आए थे। जबकि, सबसे कम 16 मुस्लिम विधायक अक्टूबर 2005 के चुनाव में आए।
बिहार जिलावार मुस्लिम विधायक 2015 में जीते
थलांचल किशनगंज में, कटिहार, अररिया और पूर्णिया में क्रमश: 70, 45, 44 और 38 प्रतिशत प्रतिनिधित्व के अनुसार मुस्लिम 24 में से 11 विधायक हैं। मधुबनी, सहरसा और पूर्वी चंपारण दो-दो विधायक जीतने में कामयाब हुए।
दरभंगा, सीतामढ़ी, पश्चिमी चंपारण, शिवहर, गोपालगंज, आरा, समस्तीपुर और रोहतास से एक-एक विधायक जीतने में कामयाब हुए।
कम प्रतिनिधित्व का कारण
इतने कम संख्या में प्रतिनिधित्व का मतलब है बहुत सारे दल मुसलमानों को टिकट नहीं देकर हाशिये पर रखना चाहते हैं। जैसे की आपको पता होना चाहिए सीवान, मुज़फ़्फ़रपुर, बेगुसराय, सुपौल, बांका, गया, औरंगाबाद जहानाबाद, नालंदा, भागलपुर, मुंगेरआदि जिलों से प्रतिनिधित्व नदारद हैं।
प्रतिनिधित्व न होने का एक कारण यह भी है की धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के द्वारा जनसंख्या के अनुपात में उचित मौके नहीं दिए जाते हैं। पार्टियों ने अबतक वोट बैंक के तरह इस्तेमाल करने का काम किया है।इस से अधिक कुछ भी नहीं समझा है।