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भाजपा और मोदी सरकार के महिमामंडन में लगे पिताओं के नाम एक पुत्र का खुला पत्र

पूज्य पिताजी,

सादर प्रणाम

अब तक तो मैं ठीक हूं, उम्मीद है आप भी ठीक होंगे। मुझे अपनी परवरिश का कोई ऐसा दौर याद नहीं जब सक्रिय रूप से घर में राजनीति पर चर्चा होती हो। हां, इतना ज़रूर पता था कि आप भाजपा समर्थक हैं और मुझे इसमें कभी कोई आपत्ति वाली बात नज़र नहीं आई।

आए भी तो कैसे, मैंने तब कभी शीर्ष भाजपा नेताओं को देश के साथ खिलवाड़ करते नहीं देखा, बल्कि मुझे तो उनके भाषण भी बहुत पसंद आते थे और उनका व्यक्तित्व भी। फिर चाहे वे वाजपेयी हों, सुषमा स्वराज हों, अरुण जेटली हों, रविशंकर प्रासाद हों या फिर राजीव प्रताप रूडी या फिर अपने बेगूसराय के ही भोला सिंह।

इनमें से कुछ नेता तो अब रहे भी नहीं और जो हैं वे अब इज़्जत करने लायक नहीं रहे। आपकी या किसी की भी भाजपा के प्रति जो अगाध श्रद्धा है, उससे मुझे सचमुच बहुत चिढ़ होती है। मैं समझता था कि आप सब देश की तत्कालीन सरकारों को बदलने के लिए भाजपा के साथ खड़े हैं, क्योंकि वे सरकारें जनता के लिए अच्छा काम नहीं कर रही हैं।

यह कभी समझ नहीं आया कि आप सब भाजपा के वफादार सिपाही हैं। मुझे लगता था कि हम सब देश के वफादार नागरिक हैं, ना कि किसी पार्टी के लठैत।

पूरी दुनिया इस बात की गवाह है कि जहां-जहां भी धर्म की डोर पकड़कर सत्ता चलाई जाती है, वहां खुशहाली बस मुंगेरीलाल के हसीन सपने बनकर रह जाते हैं। क्या आपको लगता है कि इन 6 सालों की भाजपा सरकार अच्छे दिन ले आई?

काला धन समाप्त कर दिया या क्या कम भी कर पाई? अपराध खत्म हो गए? कृषि की समस्याएं सुधरी हैं या और बिगड़ी हैं? बेरोज़गारी घटी है या और बढ़ गई है? समाज में शांति है या एक समुदाय में दूसरे समुदायों के प्रति नफरत बढ़ी है? क्या सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास कायम हो पाया है? मैं आपसे जानना चाहता हूं।

मैंने आज तक कभी पूछा नहीं लेकिन आज पूछता हूं। आप भाजपा के समर्थक क्यों हैं? क्या आपके लिए बस हिंदुत्व की विचारधारा ही काफी है? 

देश को अंग्रेज़ों से आज़ाद करवाने की लड़ाई में किसी हिंदुत्ववादी नेता का नाम कभी सामने नहीं आया। यह देश हिंदू, मुसलमानों, सिक्खों, ईसाइयों और भारत के तमाम अन्य धर्मावलंबियों का है, इसलिए आज़ादी की लड़ाई में भी हर धर्म के लोग थे लेकिन ऐसा कोई नहीं था जो कहे कि हमारा धर्म सही और तुम्हारा गलत।

बड़े अफसोस की बात तो यह है कि आप जिस सरकार को अपने प्रचंड बहुमत से देश का सिरमौर बना रहे हैं, वह एक दिन आपकी इस औलाद को सलाखों के पीछे डालते समय रत्ती भर के लिए भी नहीं हिचकेगी, क्योंकि मैं और मेरे जैसे बहुत से लोग पहले काँग्रेस की आलोचना करते थे और हम अब भाजपा की आलोचना करने से डरें, ऐसा नहीं होने वाला है।

वह दौर अंग्रेज़ों का था, जब हुकूमत पर उंगली उठाना अपराध था। इसलिए उसे गुलामी कहते थे। यह लोकतंत्र है, इसमें सरकारें हमारी हुज़ूर नहीं, नौकर होती है। जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा।

किसी पार्टी या पार्टी के नेता की निंदा करना देशद्रोह या देश विरोधी नहीं होता है। लोकतंत्र में देशहित यही है कि आप अपने विधायक, सांसद और मंत्रियों के काम की समीक्षा और आलोचना करके ही उन्हें अपना नेता बनाए रखने या नहीं रखने का फैसला करते हैं। जब तक हम यह काम नहीं करेंगे, हमारा देश रसातल में गिरता ही चला जाएगा।

कहावत है अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। भारत की मौजूदा स्थिति भी यही बना दी गई है। जिस देश की मीडिया और सरकार के पास अपने ही देश के मज़दूरों, किसानों और पीड़ित-पीड़िताओं के लिए रत्ती भर सहानुभूति नहीं है, जिस देश की मीडिया में कृषि, जीवन की आम और मूल समस्याओं, हमारे अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर कोई चर्चा ही नहीं होती, वह देश खुद को विश्वगुरु कहे तो इसे अपने मुंह मियां मिट्ठु बनना ही कहेंगे।

विश्वगुरु होना तो दूर की बात, अपने पड़ोसियों तक को संभालने में हम नाकाम हैं। नेपाल और भूटान से हमारी (भारत की) दोस्ती में दरारें आई हैं। पाकिस्तान से हमारा रिश्ता बदला नहीं है। चीन हमारे घर में घुसा बैठा है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हमारी सरकार की कोई इज़्जत नहीं है।

खुशहाल देशों की सूची में भारत का कोई नामों-निशान तक नहीं है। बदहाल देशों की सूची में हम श्रीलंका और बांग्लादेश तक से पिछड़ने लगे हैं। इस बीच हम विश्वगुरु होने के झूठे अभिमान में डूबे हैं। झूठ को पकड़ने और सच बताने की ज़िम्मेदारी मीडिया की थी लेकिन वह तो बिक ही चुका है। बिका नहीं होता तो यकीन मानिए, मैं आज भी मीडिया में ही काम कर रहा होता। 

मीडिया के सहारे यह सरकार पूरे देश को झूठ और बकवास की कैद में डाल चुकी है। महत्वपूर्ण क्या है? ज़रूरी विधेयकों पर चर्चा और बहस या किसी हीरो-हीरोईन का गाँजा या चरस पीना? महत्वपूर्ण क्या है? डंडे मारकर सड़क से पैदल जा रहे मज़दूरों को भगाना या उनके रहने, खाने, पीने का इंतज़ाम करना?

उम्मीद है आप मुझे इन सवालों के जवाब देंगे। मुझे बताएंगे कि भाजपा में ऐसे कौन से गुण हैं, जो इस पार्टी के प्रति आपकी वफादारी पर आंच नहीं आने देते? मैं जानना चाहूंगा।

आपका प्रिय,

ताल-बेताल

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