बुधवार शाम यूपी के जिला बागपत में रमाला थाने में तैनात SI इंतेशार अली को दाढ़ी रखने की वजह से एसएसपी ने सस्पेंड कर दिया। बृहस्पतिवार को मेरी SI इंतेशार से फोन पर बातें हुई। बेहद ही ईमानदार अफ़सर हैं वो।
अपने विभाग को लेकर उनका कहना है कि मुझे विश्वास है न्याय मिलेगा और प्रशासन मेरे साथ अच्छा ही करेगा, क्योंकि दाढ़ी रखते हुए मुझे विभाग और जनता की तरफ़ से सम्मान मिलता रहा है। अब मुझे सस्पेंड किया गया है, उम्मीद करता हूं कि प्रशासन मेरे साथ अच्छा सलूक कर बहाल करेगा। हां एक बात ज़रूर कह देना चाहता हूं कि नमाज़ी परेजगार व्यक्ति हूं, दाढ़ी हरगिज़ नहीं कटवा सकता हूं।
अब गौर कीजिए बाकी की तीन तस्वीरों पर, दिसंबर 2018 में सूबे के मुखिया गोरखपुर जाते हैं, जहां प्रवीण कुमार सिंह नामक पुलिस अफसर ड्यूटी पर रहते हुए हाथ जोड़कर अपने पद की गरिमा को गिराते हुए अपने पैरों से भी और लोगों की नज़रों से भी गिर जाता है।
मुखिया के गले में फूलों की माला डालता है, टीका लगाता है। इस अधिकारी पर किसी आला अधिकारी ने कार्रवाई नहीं की। एक पुलिस अफसर सूबे के मुखिया को पूजता है लेकिन एक मुस्लिम अफसर ड्यूटी पर रहते हुए दाढ़ी भी नही रख सकता।
बागपत प्रशासन का कहना है कि इंतेशार को कई बार दाढ़ी कटवाने के लिए नोटिस भेजा गया लेकिन उन्होंने आला अधिकारियों के आदेशों को दरकिनार कर ड्यूटी को जारी रखा। अब उनके खिलाफ अधिक शिकायतें आने लगी थीं, इसलिए उनके लिए संस्पेंशन ऑर्डर जारी करना पड़ा।
इस मामले में जब एसएसपी को कॉल लगाया तो पीआरओ से बात हुई, जिनसे सवाल किया कि जब सिख दाढ़ी और पगड़ी के साथ ड्यूटी कर सकता है, तो मुस्लिम दाढ़ी के साथ ड्यूटी क्यो नहीं कर सकता?
पीआरओ ने जवाब में कहा कि यदि किसी मुस्लिम पुलिसकर्मी या अफसर को दाढ़ी रखनी, है तो उसके लिए उन्हें आला अधिकारियों से अनुमति लेनी होती है, जिसकी अनुमति इंतेशार जी के पास नही थी, इसलिए उनको सस्पेंड किया गया और सिखों के लिए दाढ़ी व पगड़ी बांध ड्यूटी करने का कानून बना हुआ है।
इंतेशार ने न्यूज़ 18 से बात करते हुए कहा कि उन्होंने 2019 में दाढ़ी रखने की अनुमति मांगी थी मगर आला अधिकारियों ने उन्हें आज तक अनुमति नही दी। इतना कहते हुए इंतेशार जी से बात खत्म हुई!
इस मुल्क़ में भेदभाव अपने चरम पर है, मुस्लिम क्या खाएगा, क्या पहनेगा, कहं जाएगा, यह अब देश का कानून या जनता नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन तय कर रहा है। इसलिए सत्ता से संरक्षण प्राप्त लोगों ने कई बार देश के कानून को जलाने की कोशिश की। यहां तक कि कानून से चलने वाली संसद के सामने तो कानून को सरेआम जला भी दिया गया।
हिन्दू तिलक लगाकर ड्यूटी कर सकता है लेकिन मुस्लिम दाढ़ी रखकर ड्यूटी नहीं कर सकता है, क्योंकि भेदभाव चरम पर और कानून ताक पर है। हिन्दू कलावा बांधकर ड्यूटी कर सकता है लेकिन मुस्लिम कुर्ता पायजामा पहनकर ड्यूटी नहीं कर सकता है, क्योंकि भेदभाव चरम पर है और कानून ताक पर है।
हिन्दू अफसर सरकारी ऑफिस में मूर्तियां रख पूजा कर सकता है लेकिन मुस्लिम महिला नकाब पहनकर ड्यूटी नहीं कर सकती है, क्योंकि भेदभाव चरम पर है और कानून ताक पर है। लोकतंत्र की सरेआम गला रेतकर हत्या की जा चुकी है, हद तो तब हो जाती है जब अभिव्यक्ति की आज़ादी-आज़ादी चिल्लाने वाले मीडिया हाउसेज़ मुस्लिम महिला को नकाब पहनने पर नौकरियों से निकाल देते हैं, क्योंकि भेदभाव चरम पर है, लोकतंत्र का चौथा पिलर ही लोकतंत्र का किलर है और कानून ताक पर है।