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“इव टीज़िंग के खिलाफ आवाज़ उठाने पर मुझे रेप की धमकी दी गई”

जब मैं 17 वर्ष की थी तो मैं और मेरी सहेली लगभग शाम के 4 से 5 बजे के बीच 4 फरवरी के दिन अपनी दूसरी सहेली का जन्मदिन मनाने जा रहे थे। घर से थोड़ी दूर ही जाने के बाद देखा कि चलती सड़क, बहुत सारे घर और राहगीर मौजूद थे।

कुछ आवाज़ आई, “अबे आजा, चल हमारे साथ।” हम ठहर गए। बता दूं मैं और मेरी सहेली इन चीज़ों से डरने वालो में से बिलकुल नहीं थे क्योंकि सड़क पर छेड़खानी जैसी चीज़ें हम लड़कियों के लिए अब रोज़ की बातें हो गई हैं। 

मोहल्ले के पास के ही थे वे लड़के

मोटर साईकिल पर तीन लड़के थे। तीनों हमारे मोहल्ले के पास ही रहते थे।  हमने उन्हें पहले भी देखा था। अपनी मोटर साइकिल उन्होंने सड़क के एकदम किनारे लगा दी थी, जहां से ना हम ढंग से आगे जा सकते थे ना पीछे। हालांकि तब तक मन में कोई डर नहीं था लेकिन जल्द ही वे लड़के बदतमीज़ी पर उतर आए और उनके साथ ना चलने पर वे हमें जान से मारने की धमकी देने लगे।

बात यहीं खत्म नहीं हुई, जब मैंने उनसे कहा कि यह सड़क किसी की अपनी जागीर नहीं है, तो जवाब  आया, “ज़्यादा बोल मत रेप कर दूंगा।” बस यह सुनकर मैं डर से कांप उठी। वहीं, दूसरी ओर मेरी सहेली बातों से समझा रही थी कि हमने उनका ना कुछ लिया है, ना कोई मतलब है, हमें जाने दें। हमारे शोर मचाने पर लोग आए तो सही लेकिन उन्होंने तमाशा देखा, मुस्कुराया फिर अपने-अपने काम पर चल दिए। 

हमने उनके सामने उनके मोटर साइकिल नंबर की तस्वीर ली और पुलिस को फोन किया। पुलिस ने फोन नहीं उठाया और ना ही जवाब में फोन किया। यह देखकर तीनों लड़के हम पर हंसने लगे मानो उन्हें पहले से पता ही था कि ऐसा ही होगा। जब कुछ समझ ना आया तब हम दोनों जैसे-तैसे जगह बनाकर वहां से भाग गए।

घर जाना सही नहीं लगा, क्योंकि मैं अपनी माँ के साथ अकेले रहती थी और मेरी सहेली के परिवार वाले गँव गए थे। हमने जल्दी से ऑटो रिक्शा लिया और अपने दूरी सहेली के पास चले गए। रास्ते में हमने कम-से कम चालीस बार पुलिस को फोन किया परंतु पहले की तरह कोई जवाब नहीं आया।

ना पुलिस ने अपना फर्ज़ निभाया और ना किसी इंसान ने इंसानियत की खातिर मदद की

आगे क्या हुआ यह जानना उतना ज़रूरी नहीं है, जितना यह समझना कि ना पुलिस ने अपना काम किया और ना किसी इंसान ने इंसानियत की खातिर मदद की। इस घटना के बाद मैं इतनी परेशान हो गई कि नींद ही नहीं आती थी और अगर सो गई तो नींद में भी यह घटना भुला नहीं पाती। रातभर डर से रोती और बस सुबह का इंतज़ार करती।

आपको बता दूं कि यह पुरानी कहानी अब तक मुझमें ज़िंदा है। बस इसलिए आपको बता रही हूं ताकि आपको मालूम हो कि यह बस हम दो की कहानी नहीं है, जो ना अब पुलिस पर विश्वास रखती है और ना ही न्याय की उम्मीद रखती है, बल्कि ऐसी लाखों लड़कियां हैं जिसकी आवाज़ कोई नहीं सुनता।

हमें तो बस धमकी मिली थी मगर ना जाने कितनी लड़कियों के साथ बलात्कार जैसी भयानक घटना हो चुकी है। मैंने “ना जाने” शब्द का प्रयोग इसलिए किया क्योंकि यहां ना पुलिस है और ना ही सरकार ने कभी अपनी दिलचस्पी बलात्कार और महिला सुरक्षा के विषय पर दिखाई है। इसलिए यह मान लेना कि सरकार द्वारा दिए गए आंकड़े सही हैं, यह अत्यन्त कठिन है।

आवाज़ सुनी भी गई तो क्या उससे न्याय मिला?

यदि न्याय मिला भी तो कितने सालों के बाद? यह महत्वपूर्ण सवाल है। अगर सिर्फ पुलिस की बात की जाए तो हाल ही में हमने एक घटना देखी। हैदराबाद के बाहरी इलाके शादनगर में पशु चिकित्सक “प्रिया रेड्डी”(बदला हुआ नाम) के साथ गैंगरेप कर निर्मम हत्या करने वाले चारों आरोपित पुलिस द्वारा क्राइम सीन को रिक्रिएट करते वक्त एनकाउंटर में मारे गए।

गैंगरेप जैसी संगीन घटना को अंजाम देने वाले लोगों को ऐसी ही सज़ा मिलनी चाहिए थी। क्या इस पर सवाल करना सही नहीं रहेगा कि बिना कोर्ट में पेशी के किसी को उसकी ज़ुर्म की सजा दे देना आम जनता के न्याय व्यवस्था से उठते विश्वास को बढ़ावा नहीं देता?

अपने देश की पुलिस को सुरक्षा ना कर पाने के लिए ज़िम्मेदार ना मानना और पुलिस द्वारा अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करने में चूक होने पर खुद ही न्याय व्यवस्था अपने हाथ में ले लेना भारत जैसे देश की वर्तमान स्थिति पर दुःख और भविष्य के लिए चिंता का विषय है।

जनता ने भी पुलिस की इस हरकत की सराहना कर अराजकता तथा चल रही असंवैधानिक गतिविधियों पर अपनी सम्मत्ति देकर अपनी जागरूकता को सवालों के घेरे में ला दिया था। शायद पुलिस ने आज उसी शह का इस्तेमाल किया जो जनता ने उससे एनकाउंटर के बाद दी और उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक बलात्कार पीड़िता का बिना परिवार की सहमति के आधी रात को अंतिम संस्कार कर दिया। 

क्या यह सवाल आज आपके मन में नहीं उठता कि पुलिस को किस बात की जल्दबाज़ थी? किसने और कहां से दबाव डाला जिसकी शिकार बलात्कार और मौत के बाद भी एक मासूम बनी? क्यों सरकार 14 दिन चुप रही? क्यों देश की बेटियां रोज़ किसी की भूख का शिकार बन रही हैं और न्याय के नाम पर नामोनिशान मिटा दिया जाता है।

भारत में 2019 में हर दिन औसतन 87 बलात्कार के मामले दर्ज़ किए गए। तो वर्ष 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 4,05,861 मामले दर्ज़ हुए। अगर इन आंकड़ों की बात की जाए तो मेरा विश्वास है कि सरकार महिलाओं पर होने वाली अत्याचारों पर आंकड़े तो जारी कर देती है मगर उन आंकड़ो पर कभी खुद मुड़कर नज़र नहीं डालती।

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