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“मेरे गाँव में ज़्यादातर लोग इलाज के लिए अप्रशिक्षित डॉक्टरों के पास जाते हैं”

फोटो साभार- Flickr

भारत को गाँवों का देश कहा जाता है। आज जब पूरे देश में लॉकडाउन के हालात हैं तो ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति कभी जीविका के नाम पर तो कभी स्वास्थ्य सेवाओं आदि के अभाव के कारण गाँव से शहरों की तरफ गए थे, अपने वापस घर आने को व्याकुल हैं।

उन्हें लगता है कि इस समय गाँव ज़्यादा सुरक्षित है। गाँव छोड़कर शहर जाने के अनेक कारण होते हैं। उन सबकी भी कभी चर्चा करूंगा लेकिन आज मैं ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर चर्चा करना चाहता हूं।

मौका भी ऐसा बन पड़ा है कि इस दौर में स्वास्थ्य सेवाओं की ही जीवन के लिए सर्वाधिक आवश्यकता प्रतीत होती दिखाई देती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में नज़दीकी अस्पताल उपलब्ध नहीं है

मैं एक ग्रामीण परिवेश में पला-बढ़ा हूं। मैं बचपन से ही इस परिवेश की स्वास्थ्य सेवाओं को देखता आया हूं। मैंने देखा है कि हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में कोई नज़दीकी अस्पताल उपलब्ध नहीं हैं। अधिकतर अस्पताल ज़िला मुख्यालयों में ही होते हैं।

जनपद के अंतिम छोर पर स्थित गाँव की दूरी मुख्यालय से औसतन 55 से 60 किलोमीटर होती है। ऐसी स्थिति में कल्पना कीजिए अगर कोई व्यक्ति एकाएक किसी जानलेवा रोग जैसे- हार्ट अटैक आदि से ग्रसित हो जाए तो इतनी दूरी तय करने में ही कोई अनहोनी घट सकती है।

अप्रशिक्षित डॉक्टरों से इलाज करवाना ग्रामीणों की मजबूरी

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

सरकार नें यद्यपि इस स्थिति से निपटने के लिए गाँवों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खोले हैं लेकिन वहां कोई विशेषज्ञ डॉक्टर जाने को जल्दी तैयार ही नहीं होते हैं।

अगर कोई मुश्किल से तैयार भी होता है तो उस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर चिकित्सकीय उपकरण के अभाव के कारण अपने आपको इलाज करने में असहाय पाता है।

आज भी मैंने सामान्य दिनों में देखा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग अपने इलाज के लिए अप्रशिक्षित डॉक्टरों से सम्पर्क करते हैं।

ऐसा क्यो?

इसके दो पहलू होते हैं। एक तो ये डॉक्टर सीधे घर पर उपलब्ध रहते हैं और दूसरा यह कि ये डॉक्टर फीस नहीं लेते हैं। जो पैसे ये इलाज के लिए लेते हैं उनमें दवा ही दे देते हैं।

गरीब ग्रामीण सोचता है कि चलो डॉक्टर साहब ने सस्ता इलाज किया है। उसे इस बात की चिंता नहीं रहती कि यह डॉक्टर अप्रशिक्षित है और इनसे इलाज कराना उसकी जान के लिए खतरा हो सकता है। खैर, उन ग्रामीणों‌ के पास इसके अलावा विकल्प भी बहुत सीमित हैं।

प्रसव कार्य भी अप्रशिक्षित महिला ही करती हैं

आज भी मैंने ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसव कार्य देखा है। कुछ महिलाएं जिन्हें गाँव में प्रसव कार्य करने के लिए दक्ष माना जाता है, वे आत्मविश्वास के साथ यह काम करती हैं। भले ही उन्हें प्रसव कार्य की कोई विशेष जानकारी ना हो।

कई बार तो यह बहुत जोखिम भरा भी होता है। आज भी ग्रामीण भारत में जागरूकता, स्वास्थ्य सेवाओं की कम उपलब्धता आदि के कारण अधिकांश लोग घरेलू नुस्खों, जड़ी बूटियों आदि का प्रयोग इलाज के लिए ज़्यादा करते हैं।

कभी-कभी ये ग्रामीण झाड़-फूंक, जादू मन्त्र आदि के सहारे भी रोगमुक्त होने का प्रयास करते हैं। इन झाड़-फूंक, जादू मन्त्र से उपचार करने वालों को ग्रामीण बड़े ही सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।

स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने की ज़रूरत

इन सब स्थितियों से लोगों को निकालने के लिए ज़रूरी है कि स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर की जाएं। स्वास्थ्य सेवाओं को उस स्तर तक पहुंचाया जाए ताकि वह लोगों की पहुंच में हो। फिर लोगों को इन स्वास्थ्य सेवाओं से लाभ लेने के लिए जागरूक भी करना होगा जैसे कि आज कल आशा बहुएं, आगनबाड़ी सेविकाएं आदि को गाँवों में जाकर लोगों को जागरूक करने के काम में लगाया जा रहा है।

इससे यह होगा कि लोग इन स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति आकर्षित होंगे। यद्यपि पहले की तुलना में इन स्थितियों में काफी सुधार आया है और अधिकांश स्वास्थ्य सेवाएं पहले की तुलना में बेहतर भी हुई हैं।

आज ग्रामीण क्षेत्रों में आशा बहुएं, आगनबाड़ी सेविकाएं आदि ने ग्रामीणों में जागरूकता फैलाने के लिए बहुत मेहनत की है। फिर भी हम अपने आपको पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं कर सकते हैं। अभी भी मूल स्तर पर बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

कोरोना ने ग्रामीण क्षेत्रों में पांव पसार लिया तो क्या होगा?

आज भी कभी-कभी मैं यह सोचकर सिहर जाता हूं कि अगर कोरोना ने ग्रामीण क्षेत्रों में पांव पसार लिया तो क्या होगा? उन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां लोग सामान्य बुखार आदि के लिए घरेलू नुस्खों का सहारा लेते हैं। क्या वे इस विपदा को झेल पाएंगे?

मैं तो ईश्वर से दुआ करूंगा कि हमें इस विपदा से बचाएं। हमें इसके लिए खुद जागरूक होकर लोगों से दूरी बनाकर लॉकडाउन का पालन करना होगा।

साथ में हमें स्वास्थ्य मंत्रालय, सरकार के निर्देशों का पालन करते रहना होगा। हमें कोशिश करनी होगी कि यह रोग ग्रामीण क्षेत्रों में पसरने ही ना पाए। ध्यान रखना है कि बचाव ही इससे निपटने का सबसे बेहतर उपाय है।

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