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माहवारी के दिनों में महिलाओं को अवकाश देने के लिए उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल

सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में महिलाओं के एक महत्वपूर्ण मुद्दे को इंगित करते हुए एक जनहित याचिका दाखिल की गई। इस जनहित याचिका में न्यायालय से यह मांग की गई है कि सरकार को माहवारी के दौरान महिलाओं को सवेतन अवकाश देने और आवधिक आराम देने का निर्देश दिया जाए।

यह निश्चित ही एक बड़ी पहल की शुरुआत करने वाली याचिका साबित हो सकती है। अनेक महिला कर्मचारियों से पीरियड्स के समय आने वाली परेशानियों के सम्बंध में हुई बातचीत में मैंने इनकी समस्याओं को करीब से जाना है।अधिकांश महत्वपूर्ण कार्यालयों में आज भी पीरियड फ्रेंडली टॉयलेट्स के अभाव हैं।

जो सामान्य शौचालय होते हैं, वहां भी ऐसी स्थिति नहीं होती कि आसानी से पैड्स बदले जा सकें। शुरुआती दिनों में जब ब्लड ज़्यादा आता है, उस समय उन्हें पैड्स बदलने की जगह के अभाव के कारण काफी मुश्किलों का सामना करना होता है।

ऐसी स्थितियों में संक्रमण का भी खतरा बना रहता है। ऐसे में महिला कर्मचारी अनेक समस्याओं को सहते हुए विपरीत परिस्थितयों में काम करने को बाध्य होती हैं।

विभिन्न कार्यालयों में कार्यरत इन महिलाओं द्वारा बताई गई बातों की पुष्टि विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षणों से भी हुई हैं। विभिन्न शहरों के 2000 से ज़्यादा महिलाओं पर किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि 60 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म के दौरान तैराकी और योग आदि क्रियाकलाप नहीं कर पाती हैं। इस सर्वे में लगभग आधी महिलाओं ने कहा कि पीरियड्स के दौरान वे अपने काम पर ध्यान नहीं दे पाती हैं।

58 प्रतिशत महिलाओं ने यह माना कि पीरियड्स उनकी कार्य क्षमता पर कुछ असर डालता है। 8 प्रतिशत महिलाओं ने इस सर्वे के दौरान यह बताया कि उन्हें पीरियड्स के दौरान कार्यालयों में सिर्फ इस नाते आलोचना झेलनी पड़ती है, क्योंकि इस दौरान वे ठीक से काम नहीं कर पाती हैं।

महिलाओं को होने वाली इन परेशानियों को देखते हुए दिल्ली मज़दूर संघ ने यह याचिका अधिवक्ता राजीव अग्रवाल के ज़रिये दाखिल की है। इस याचिका में अवकाश सहित वेतन के अलावा माहवारी को मानव सम्मान से जोड़ा गया है। यह भी मांग की गई है कि महिलाओं को माहवारी के दौरान आराम, स्वच्छ शौचालय और सैनिटरी नैपकिन की व्यवस्था की जाए।

याचिका में माहवारी को बहुत ही संवेदनशील विषय बताया गया है और कहा गया है कि ये सब सुविधाएं बहुत पहले ही दे दी जानी चाहिए थी। सोमवार को पीठ के ना बैठने के कारण इस मामले की सुनवाई नहीं हो सकी और इसे 23 नवम्बर के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया है।

बता दें कि कुछ समय पहले स्वतंत्रता दिवस के अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके स्वास्थ्य के खातिर ‘प्रधानमंत्री जन औषधि योजना’ के तहत एक रुपये में सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराने की बात कही थी। लाल किले की प्राचीर से इस विषय का ज़िक्र करने पर प्रधानमंत्री की खूब तारिफ भी हुई थी।

ये दो घटनाएं पहले प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सैनिटरी नैपकिन का जिक्र और अब इस मुद्दे पर जनहित याचिका दाखिल करना एक बात ज़रूर साबित करती है कि लोग अब पीरियड्स जैसे मुद्दे पर जागरूक हो रहे हैं और बोलने के लिए तैयार हो रहे हैं।

फिर भी पीरियड्स पर चुप्पी तोड़ने और जागरूक करने की लड़ाई अभी लंबी चलेगी। याचिका पर क्या निर्णय आता है, यह तो अभी भविष्य के गर्त में है। हां, यह ज़रूर है कि इस याचिका ने उम्मीद की एक किरण दिखाई है और इस याचिका पर जो भी निर्णय आएगा वह निश्चित ही मील का पत्थर साबित होगा।

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