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“प्रशांत की रिहाई से लोकतंत्र और संविधान पर मेरा भरोसा कायम रहा”

यह मैं अपनी निराशा को व्यक्त करने के लिए नहीं, बल्कि एक आशा भरी सुबह के लिए खुद को आश्वस्त करने के लिए लिख रही हूं। दोस्तों, मैंने प्रशांत से सामाजिक नियमों के खिलाफ और सभी बाधाओं को लांघते हुए शादी की, क्योंकि प्रशांत में हाशिए पर खड़े और उत्पीड़ित लोगों के लिए खड़े होने की हिम्मत थी।

मैं विश्वास करती हूं कि वह कल एक स्वतंत्र व्यक्ति होगा, क्योंकि मैं अब इसमें अकेली नहीं हूं। 21 अक्टूबर को निराशा का एक और दिन था जब तक मुझे खबर नहीं मिली कि प्रशांत को जमानत दे दी गई है। यह सुनते ही मैं खुशी से नाचने लगी।

मैं उन शब्दों में वर्णन नहीं कर सकती कि मैंने इन दो महीनों को कैसे बिताया है। मेरी मानसिक स्थिति पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। मैं सीधे फ्लैशबैक में गई और याद किया कि कैसे कुछ लोगों ने प्रशांत की गिरफ्तारी का जश्न मनाया।

कुछ ने तो यहां तक ​​लिखा कि उन्हें पुलिस एनकाउंटर में मार दिया जाना चाहिए। सोशल मीडिया से लेकर मीडिया संस्थानों तक हर दिन मैं यह बताने की कोशिश कर रही थी कि प्रशांत जेल में है और वह राज्य का शिकार है। मैं ना केवल प्रशांत के लिए लड़ रही थी, बल्कि उसकी गिरफ्तारी के लिए ज़िम्मेदार ब्राह्मणवादी व्यवस्था से लड़ रही थी था। यह लड़ाई फासीवादी सरकार के खिलाफ थी। मैं रोज़ थक जाती थी लेकिन प्रशांत के प्यार ने मुझे हिम्मत दी।

6 साल में भगवाधारियों ने हर उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने की कोशिश की है, जो बोलने की हिम्मत रखता था। उमर ख़ालिद से लेकर शरजील इमाम, सब उस तानाशाह सरकार के खिलाफ बोल रहे थे। जिस तरह से 6 सालों में मुसलमानों पर हमले हुए हैं और इसके अलावा फरवरी 2020 में दंगे हुए या यूं कहूं कि एक समुदाय को निशाना बनाया गया।

दलितों, मुसलमानों, आदिवासियों और महिलाओं पर लगातार हमले हुए और जो लोग इसके खिलाफ लिख रहे थे, उन्हें जेल में दाल दिया गया। आज हमारे संघर्ष  के सभी साथी जेल में बंद हैं और हम तब तक लड़ाई जारी रखेंगे, जब तक हर राजनीतिक कैदी जेल से बाहर नहीं आ जाता। पाश की कुछ पंक्तियों के साथ मैं अपनी बात खत्म करती हूं :-

हम लड़ेंगे

कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता,

हम लड़ेंगे

कि अब तक लड़े क्यों नहीं?

हम लड़ेंगे

अपनी सज़ा कबूलने के लिए,

लड़ते हुए मर जाने वाले की

याद ज़िंदा रखने के लिए।

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