केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान जी का 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वो दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के मसीहा तथा समाजवादी धारा के सबसे बड़े धुरंधर के रूप में जाने जाते हैं। वो देश की राजनीति में बहुत बड़ी सुंदरता छोड़ कर गए हैं, जिसको भर पाना असंभव है।
वो भारत के गिने-चुने नेताओं में से एक थे जिनकी स्वीकार्यता सभी दलों में थी। दलगत जातिगत भावना से अलग रामविलास पासवान जी का एकमात्र लक्ष्य था भारत के गरीबों-वंचितों को उनका अधिकार दिलाना। वो अपने अनेक भाषणो में कहते थे कि हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है, उसके बाद ही कुछ और है।
देश के सबसे पिछड़े गाँव सहरबन्नी से निकलकर दिल्ली के लुटियंस ज़ोन में अपना गढ बनाने वाले रामविलास पासवान जी हमेशा देश के विकास को केंद्र में रखकर राजनीति करते रहें। यही कारण है कि राज्य की राजनीति में उनकी ज़्यादा हस्तक्षेप नहीं दिखी और वो लगातार केंद्र में बिहार और वंचितों के एक बड़े धड़े का प्रतिनिधित्व करते रहें।
सर्वप्रथम वो अलौली से समाजवादी आंदोलन के अंतर्गत काँग्रेस के खिलाफ 1969 में विधानसभा चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद छात्र राजनीति में आए फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लगातार आठ बार लोकसभा के लिए चुने गए और वर्तमान में वो राज्यसभा में सदस्य और केंद्रीय मंत्री थे।
जब बी पी मंडल की सरकार 1990 में बनी तो उस समय रामविलास पासवान जी केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री बनें। उस समय इस विभाग को कल्याण विभाग कहा जाता था। उनके सचिव थे पीएस कृष्णन। पीएस कृष्णण बताते थे कि अगर रामविलास पासवान नहीं होते तो मंडल आयोग को लागू करना असंभव था।
उसके पीछे उनका कहना था कि समाजवादी सरकार में ऊंची जाति के लोगों की वर्चस्व थी और जहां तक ब्यूरोक्रेसी की बात है, उसमें भी ऊंची जाति के अधिक लोग थे और सारे के सारे मंडल आयोग को लागू करने के विरोध में थे। पार्टी और ब्यूरोक्रेसी के विरोध के बावजूद 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू हुई और भारत के पिछड़े वर्गों को 27% आरक्षण मिला।
यह अलग बात है कि वर्तमान परिदृश्य में मंडल आयोग को लागू करने में बिहार में कई नेता अपने आपको हीरो बताते हैं। उसमें लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार मुख्य हैं मगर मुख्य किरदार तत्कालीन सरकार में रामविलास पासवान जी का था। इस बात को उनके तत्कालीन सचिव पीएस कृष्णन मानते थे।
मंडल आयोग को लागू करने के अलावा रामविलास पासवान जी द्वारा देश को दिए गए बहुत सारे तोहफे हैं। उसमें लेबर रिफॉर्म्स, रेलवे में सुधार, कृषि में अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग, दलितों को न्याय देने के लिए एससी एसटी एक्ट, आदिवासियों को उनका भूमि अधिकार देने के लिए वन अधिकार अधिनियम इत्यादि शामिल हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि रामविलास जी मुख्यधारा की राजनीति के साथ ही मज़दूर संगठनों के भी नेता थे।
देश की जातिवादी राजनीति और मुख्यधारा की मीडिया ने रामविलास पासवान को दलित नेता के रूप में घोषित किया। जबकि उनके कार्यों को अगर देखा जाए तो वो पूर्ण रूप से राष्ट्र के विकास के लिए काम कर रहे थे। अपने भाषणों में भी वो कहते थे कि राष्ट्र पहले फिर पार्टी और जाति।
कल पटना के जनार्दन घाट दीघा पटना में रामविलास जी को पंचतत्व में विलीन किया गया। उनको उनके पुत्र चिराग पासवान ने मुखाग्नि दिया। इस अवसर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सहित केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, नित्यानंद राय, राज सिंह, अश्वनी कुमार चौबे इत्यादि मौजूद थे।
उनके अंतिम दर्शन और शव यात्रा में जो हुजूम उमड़ा, वह अकल्पनीय था। लगभग लाखों की संख्या में लोग आकर अपने मसीहा और नेता के अंतिम दर्शन को आतुर थे।
देश और बिहार की राजनीति में पासवान जी की महत्वपूर्ण भूमिका थी। अब यह चुनौती उनके पुत्र चिराग पासवान पर आई है। यह देखना लाज़मी होगा कि चिराग पासवान, रामविलास पासवान जी के कारवां को कहां तक आगे लेकर जा पाते हैं और अपने पिता द्वारा खींचे गए रिकॉर्ड को किस हद तक तोर सकते हैं?