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बैंक से अपने ही पैसे निकालने के लिए लॉकडाउन में तरस गएं गाँव के लोग

व्यक्तिगत अनुभव

कोरोना महामारी के कारण अचानक हुए लॉकडाउन ने ना केवल इंसानों को एक ही जगह पर रोक दिया बल्कि देश की अर्थव्यवस्था सहित बैंकिंग सिस्टम को भी प्रभावित किया। इस दौरान अन्य कोरोना योद्धाओं के साथ बैंक कर्मचारीगण भी पुलिस और स्वास्थ्यकर्मियों की तरहअपनी सेवा दे रहे थे। देश में सब कुछ ऑनलाइन होने का मतलब ग्रामीण क्षेत्रों में वैसा नहीं होता जैसा दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में या फिर टेलीविजन पर दिखता है। लॉकडाउन में वक्त की ज़रूरत को देखते हुए सामाजिक दूरी का पालन आवश्यक था। साथ ही सभी कामों में गति बनाए रखना भी उतना ही ज़रूरी था। लेकिन यह ना होने के कारण असल चुनौती ग्रामीण क्षेत्रों के बैंक ग्राहकों के सामने आई।

बैंकों में ऑनलाइन प्रक्रिया लॉकडाउन और बाढ़ की दोहरी मार झेलते राज्यों में और भी ज़्यादा गंभीर स्थिति से जूझना पड़ा – एक ओर  बिजली की अनिश्चितता और दूसरा इंटरनेट की अनिश्चितता। मैंने व्यक्तिगत स्तर पर मेरे गाँव में लॉकडाउन में लंबे वक्त रहकर ग्रामीण जीवन के कष्ट को बेहद करीब से अनुभव किया है। मुझे लगा गाँव में रहने वाले लोग डिजिटल भारत की संकल्पना में इन खामियों और कोरोना जैसी महामारी के समय में इनसे जूझने की एक बोझिल सी कोशिश कर रहें थे।

सारण, बिहार

ग्रामीण डिजिटल बैंकिंग का एक ताज़ा उदाहरण मैं बिहार में अपने गाँव में देखकर अभी लौटी हूं। सारण में मेरे गाँव की एक खास बात यह है कि जब स्वतंत्र भारत में सब कुछ निर्माण हो रहा था, तो यह उन चंद खुशकिस्मत गांवों मे से एक था जहां बैंक, पोस्ट ऑफिस, सरकारी स्कूल और ब्लॉक बनाए गए थे।

तस्वीर-दिनांक 25 अगस्त 2020: सारण के एक गाँव का लगभग 50 साल से अधिक पुराना पोस्ट ऑफिस, जिसके एक ओर बाढ़ और दूसरी ओर नदी का पानी हैं

डिजिटल बैंकिंग का एक लाभ यह है कि एक क्लिक पर बेहद कम समय में पैसों का हस्तांतरण हो जाता है। किन्तु विडंबना यह है कि इसी के साथ ऑफलाइन प्रक्रिया पर पूरी तरह पाबंदी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः बिजली आती -जाती रहती है और साथ में इंटरनेट भी, जिस वजह से ग्रामीणों को हर रोज़ अपने ही खातों से अपना ही पैसा निकालने के लिए चक्कर लगाने पड़ते हैं।

पोस्ट ऑफिस में भी हर रोज़ इसी तरह कि कहानी शुरू होती है- और वह है वहां के कर्मचारियों का अपने सर्वर लिंक का इंतज़ार। तमाम लोग घंटों देकर भी अपने पैसों के लेन-देन का काम नहीं कर पाते। सर्वर का लिंक जब कभी कुछ वक्त के लिए आता भी है तो, वह दिन के दोपहर या शाम को आता है वह भी थोड़े से समय के लिए, जिसमे आप जितना काम कर सकते हैं, कर लीजिए।

सर्वर लिंक के आने के इंतज़ार में, मैंने अपने चार दिन बिताएं और उस दौरान कई लोगों की कहानियां सुनी, जिन्होंने कोविड–19 के भयंकर वक्त में भी घंटों वहां पूरा दिन इंतज़ार किया, परेशानियां झेली। एक बूढ़े व्यक्ति पिछले तीन दिन से लगातार अपने कई महीनों की पेंशन को लेंने के लिए दो गाँव दूर से आ रहें थे। दो गाँव दूर छोटी रिक्शा वाली गाड़ी में, क्योंकि शहरों की तरह हर गाँव में पोस्ट ऑफिस या बैंक नहीं होते हैं। “उन्होंने कर्मचारी से विनती करते हुए कहा कि रोज के 40 रूपये (लॉकडाउन से पहले 20 रूपये थे) लगते हैं, तीन दिन से आ रहा हूँ आप लोग कुछ तो करों ताकि मेरे पैसे निकाल सकूं”।

पोस्ट ऑफिस कर्मचारी सिर्फ यही दोहरा पाएं कि चाचा कल फिर आकर देख जाना, आप हमें देख ही रहें हैं हम भी इंतज़ार ही कर सकते हैं। इतना ही नहीं आम तौर पर कोई भी पोस्ट ऑफिस 5 बजे के बाद खुला नहीं होता है, मगर इन दिनों अपने लॉगिन लिंक के इंतज़ार में ये कर्मचारी भी शाम के 6 बजे तक इंतज़ार करते हैं। इस अनुभव से मन में डिजिटल प्रक्रिया के बारे में संशय होना स्वाभाविक है।

एक और व्यक्ति जिन्हें पैसों की बहुत ज़रूरत थी अपनी परेशानी में पोस्ट ऑफिस कर्मचारी से ही बहस में उलझ गए। एक कर्मचारी ने निराश होकर कहा कि लोग यहाँ इतनी परेशानियां लेकर आते हैं कि आप खुद पर नियंत्रण ना रखें तो रोज़ मार-पीट हो सकती है। निराशा से उन्होनें कहा कि ‘हम रोज़ घर से इस सर्वर लिंक के इंतज़ार और परेशान लोगों से गाली खाने ही आते हैं, हमें इसी गाली की तनख्वाह मिलती हैं’। इसी पोस्ट ऑफिस में पहले भी पूरा दिन लगता था, क्योंकि यह कई गांवों के बीच में अकेला है, मगर तब भी 1-2 दिन में कागज़ी काम और पैसे का लेन – देन हो जाता था। और आज अगर चार दिन लगता हैं तो किसी अधिकारी को कहीं पर संज्ञान लेना चाहिए|

पोस्ट ऑफिस की तरह ही कुछ हाल गाँव के सरकारी बैंक का भी है, जहां सिर्फ एक गाँव के लोगों के ही खाते नहीं बल्कि आस–पास के 6-7 गांवों के लोग शामिल हैं। आम दिनों में आप इस बैंक में अपने किसी भी काम से जाएं, तो पूरा दिन लगना निश्चित था। फिर आजकल तो दूरी बनाकर काम करने की बात है। एक दिन तो जब पूरा दिन लिंक नहीं था, बैंक कर्मचारी भीड़ को रोकने के लिए अंदर से ताला लगाकर बैठ गएं। और बाहर लोग लगभग 4 बजे तक इंतज़ार में खड़े रहें।

डिजिटल भारत बिना ग्रामीण बैंकिंग में सुधार किये सफल नहीं हो सकता हैं। पीटीआई के हवालें से (19 सितंबर 2020) कई प्रमुख अखबारों में छपी खबर के अनुसार, NSA प्रमुख श्री डोवल के एक ताज़ा बयान ने और भी गंभीर सोच में डाल दिया। जिसमें श्री डोवल के इस वक्तव्य को उजागर किया कि, पिछले कुछ सालों में देश में ऑनलाइन मनी ट्रांसफर से संलग्न आपराधिक प्रकरणों में और ऑनलाइन असुरक्षा में वृद्धि हुई है। साथ ही उन्होंने आश्वासन दिया की सरकार जल्द ही साइबर सिक्योरिटी पॉलिसी – 2020 लाएगी।

अंत में, ग्रामीण डिजिटल बैंकिंग की इन चुनौतियों को सुलझाएं बिना डिजिटल भारत का सपना, सपना ही रहेगा। कुछ दिनों तक कागज़ वाली पुरानी व्यवस्था और नए डिजिटल भारत की प्रणाली साथ–साथ चले तो शायद बेहतर होगा। बिजली की अनिश्चितता के कारण अपने ही खाते से जुड़े कामों के लिए 4 दिन लगातार मेहनत के बाद भी जब कुछ हाथ ना लगे, तो ये महसूस होता है कि यहां के लोग तो ये सब काफी वक्त से झेल रहे हैं। डिजिटल बैंकिंग और सुरक्षित हस्तांतरण के सम्मुख ग्रामीण क्षेत्रों में चुनौतियों का मायाजाल है, जिस पर अभी भी बहुत काम करने की ज़रूरत है। अगर आप ये मानते हैं कि भारत की आत्मा गाँव में बसती है तो डिजिटल भारत और डिजिटल बैंकिंग ग्रामीण क्षेत्रों का भी अधिकार है। लेकिन साथ उसके सामने आने वाली बाधाओं को ढांचागत रूप में सुलझाना ज़रूरी है।

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