डिप्रेशन या अवसाद का शाब्दिक अर्थ मैं 25 साल की उम्र में समझी थी लेकिन इसका सामना मैंने 6 साल की उम्र में ही कर लिया था। 6 साल की उम्र में अपने पिता को खोने के बाद मुझे डिप्रेशन ने जकड़ लिया था।
मैं हर दिन उदास और मायूस रहने लगी थी। लोगों से बात करना बंद कर दिया था और खुद को एक बक्से में बंद कर लिया था। कभी अचानक ही मैं फूट फूटकर रोने लगती थी। सोचती थी कि पापा कहां चले गए हैं।
लोगों के साथ मेरे कड़वे रिश्ते
खुद से सवाल पूछती थी लेकिन कोई उत्तर नहीं मिलता था। मेरे डिप्रेशन का प्रभाव मेरे हर रिश्ते पर पड़ा। मेरा स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था। स्कूल जाने से कतराने लगी थी, क्योंंकि वहां भी कोई दोस्त नहीं बन पाता था।
इसके अलावा टीचर्स के साथ भी संबंध पर असर पड़ा। मेरे सहपाठी मुझे चिढ़ाते थे। मेरा मज़ाक बनाते थे और मुझे तंग भी किया करते थे। घर आती थी तो भाई के साथ संबंध भी मीठे नहीं थे, बल्कि कड़वाहट थी। हर वक्त छोटी-छोटी बातों पर उसका डांटना और लड़ना मेरे अवसाद और अकेलेपन को और बढ़ा देता था।
मम्मी से भी खुलकर कह नहीं पाती थी कि मुझे ये सब महसूस क्यों हो रहा है, क्योंंकि मुझे ही पता नहीं था कि मैं उदास क्यों महसूस कर रही हूं। बड़े होते-होते मेरा अकेलापन और बढ़ता गया और मायूसी और बढ़ गई। घर से बाहर भी नहीं जाने दिया जाता था और एक घुटन के साथ घर में रहना पड़ता था। मुझे याद है मेरी टीचर्स भी मुझे पसंद नहीं करती थी, मेरा मज़ाक बनाती थी। मेरे डिप्रेशन को वो भी नहीं समझ पाईं थी। डिप्रेशन को घर में भी कोई नहीं समझ पाया था।
प्यार की तलाश ने मुझे और जकड़ लिया था
इसके बाद जब मैं बड़ी हुई तो एक लड़के के साथ रिलेशनशिप में आई लेकिन उसके साथ ने मेरे डिप्रेशन को और बढ़ा दिया। उसने मुझे हर बात पर टोका और मेरे संघर्ष को मज़ाक की तरह लिया। बचपन से लेकर जो परिवार के साथ कड़वाहट थी, उसने उसे भी गंभीरता से नहीं लिया, बल्कि मुझे ही उसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया।
हमारे अलग होने के बाद मैं गहरे अवसाद में चली गई थी। मुझे याद है मैं 15 दिन तक अपने बिस्तर से भी नहीं उठ पाई थी। मुझसे कुछ भी नहीं हो रहा था। काम भी नहीं कर पा रही थी और ना ही ऑफिस जा पा रही थी।
मैंने अपने इलाज का ज़िम्मा खुद उठाया
इसके बाद मैंने मम्मी को समझाया कि मुझे लगता है कि मुझे डिप्रेशन है। उनके जवाब से मुझे और तकलीफ पहुंची फिर भी उन्होंने मेरी हालत देखते हुए एक डॉक्टर को दिखाया लेकिन उससे मुझे फर्क नहीं पड़ा। मुझे नींद आने में परेशानी हो रही थी। मुझे हर बात पर रोना आ रहा था फिर मैंने तय किया कि मैं खुद ही अब डॉक्टर के पास जाऊंगी।
मेरी एक दोस्त ने मेरी हालत को देखते हुए मुझे दिल्ली में स्थित संजीवनी के बारे में बताया और मैं वहां गई। संजीवनी में कोई फीस नहीं लगती है और आपका काउंसलिंग का खर्च बच जाता है। वहां गई तो उन्होंने एक डॉक्टर का पता बताया फिर मेरा वहां जाना हुआ।
मुझे पता है मेरे परिवार ने मेरा साथ नहीं दिया, बल्कि मेरे डिप्रेशन को लेकर मुझे जज किया। मैं बहुत अकेली हो गई थी फिर भी मैंने ठान लिया था कि अकेले ही अपना इलाज करवाऊंगी। मैं वहां गई फिर मैंने अपनी दवाई ली और अपना प्रॉपर इलाज शुरू किया।
सहारा मिलना फिर बिछड़ना मेरे ज़ख्मों को हरा करने जैसा था
इसी दौरान मैं प्रशांत से मिली और उनसे मिलने के बाद मेरी हालत में सुधार होने लगा। उनको पहली मुलाकात में ही मैंने अपने डिप्रेशन के बारे में बताया और उन्होंने मुझसे कहा कि मैं तुम्हारे साथ हूं। मैं जब भी परेशान होती थी तो वो मुझे हंसाया करते थे और मेरी परिवारिक परेशानियों को भी समझा करते थे। उन्होंने मुझे कभी जज नहीं किया। मेरी हालत में काफी सुधार हो गया था लेकिन बचपन के खालीपन से अभी भी मैं उबर नहीं पा रही थी।
18 अगस्त 2020 को जब प्रशांत की गिरफ्तारी हुई, तो मुझे लगातार 5-6 बार एंग्ज़ाइटी अटैक आए और मेरी दोस्त जोलीन ने मेरी मदद की। उसने मुझे एक डॉक्टर के साथ जोड़ा और अब फिर से मैं अपना इलाज शुरू कर रही हूं।
डिप्रेशन से मैं 6 साल की उम्र से जूझ रही हूं। खालीपन, उदासी और हर बार असुरक्षित महसूस करना ये सब डिप्रेशन के ही लक्षण हैं। डिप्रेशन सबको अलग तरह से प्रभावित करता है। आप यह नहीं कह सकते कि वो तो खुश था तो उसे डिप्रेशन कैसे हो सकता है? डिप्रेशन किसी भी कारण से किसी को भी हो सकता है।
डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है, चाहे वह कोई सेलिब्रिटी ही क्यों ना हो
अक्सर ऐसा होता है जब कोई सेलिब्रिटी डिप्रेशन से जूझता है, तो हम सोचने लग जाते हैं कि इनको कैसे डिप्रेशन हो सकता है? इनके पास तो हर एक चीज़ है लेकिन मैं साफ कर दूं कि मानसिक अवस्था से हर तरह का व्यक्ति जूझ सकता है।
एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद मैंने सोचा था कि मेंटल हैल्थ को लेकर लोग संजीदा होंगे लेकिन तमाम मीडिया चैनल्स ने निराश कर दिया।
मीडिया चैनलों ने तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइंस को भी फॉलो नहीं किया, जो कहती है कि अवसाद या डिप्रेशन से जुड़ी जानकारी देते वक्त हमें संवेदनशील होना चाहिए लेकिन न्यूज चैनल्स ने इस पर अब तक कोई माफी भी नहीं मांगी है।
मैं चाहती हूं कि डिप्रेशन को लोग संजीदगी से लें और जजमेंटल ना बनें ताकि मेरे जैसे हर व्यक्ति को इससे जूझने में आसानी हो। हर व्यक्ति से मेरी अपील है कि इस पर बात करें और बोलना कम, बल्कि सुनना शुरू करें। इसके अलावा मेडिकल हेल्प लें। इसमें शर्म महसूस ना करें। माता-पिता से भी मेरी यही गुज़ारिश है कि दोस्त बनकर अपने बच्चों की बात सुनिए।