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जामिया मिल्लिया इस्लामिया के 100 साल, जिसके लिए गाँधी भीख तक मांगने के लिए तैयार थे

जामिया मिल्लिया इस्लामिया एक आम विश्वविद्यालय नहीं है। इसकी बुनियाद में लगाया गया हर एक पत्थर हिंदुस्तान को आज़ादी दिलाने के काम आया। यह विश्वविद्यालय हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति से निकली हुई एक आग है। 29 अक्टूबर 1920 को शुरू की गई जामिया ने बड़े ही शान के साथ 2020 में अपने 100 साल पूरे कर लिए।

जामिया ने अपनी गोद में अनगिनत वीरों को देश की सेवा के लिए तैयार किया। हमारे प्यारे हिंदुस्तान में यह प्यार, भाईचारा और शांति का जीता-जागता प्रतिक है। हमें गर्व है कि जामिया जैसे संस्थान हमारे देश में हैं।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया की कहानी वर्ष 1920 में उस वक्त शुरू होती है, जब महात्मा गाँधी के नेतृत्व में पूरे देश में अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आन्दोलन अपने चरम पर था। उसी वक्त भारत में खिलाफत आन्दोलन का नेतृत्व अली बन्धु कर रहे थे।

दोनों ही आंदोलनों का एक ही उद्देश्य था। अंग्रेज़ी हुकूमत को उखाड़ फेंकना। पूरा देश अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंक चुका था। इस आन्दोलन में सबसे पहले अंग्रेज़ी सामानों एवं संस्थानों का विरोध हो रहा था, जिसमें हमारे नौजवानों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और अंग्रेज़ी शिक्षण संस्थानों का खुलकर विरोध किया।

अंग्रेज़ी शिक्षा के खिलाफ बनाया गया जामिया

अंग्रेज़ी शिक्षा को हिंदुस्तान में बढ़ावा देने और अपने सरकारी कार्य के लायक मुलाज़िम तैयार करने एवं अंग्रेज़ी संस्कृति को भारतवासियों पर थोपने के मकसद से 1904 में अंग्रेज़ों द्वारा ‘इंडियन यूनिवर्सिटीज़ एक्ट’ पारित किया गया, जिसकी मदद से हिंदुस्तान के अलग-अलग जगहों पर अंग्रेज़ी माध्यम में संचालित स्कूलों एवं कॉलेजों को स्थापित किया गया।

गाँधी जी और अली बन्धु द्वारा चलाया जा रहा आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी था कि पूर्ण रूप से अंग्रेज़ी शिक्षा का बहिष्कार किया जाए, जिसके पश्चात् इस आन्दोलन से पांच भारतीय शिक्षण संस्थानों को स्थापित किया गया, जिनमें जामिया मिल्लिया इस्लामिया, अलीगढ़ 1920, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद 1920, काशी विद्यापीठ, वाराणसी 1921, बिहार विद्यापीठ, पटना 1921, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ, पुणे 1922 शामिल हैं।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के राष्ट्रवादी शिक्षक एवं छात्र इस आन्दोलन के सदस्य के रूप में सक्रिय हो गए, जिनमें मौलाना महमूद हसन, मौलाना मोहम्मद अली, हाकिम अजमल खान, अब्दुल माजिद ख्वाजा प्रमुख चेहरा थे। महात्मा गाँधी और मोहम्मद अली के निवेदन करने पर शेख उल हिन्द मौलाना मेहमुदुल हसन ने आगे आकर क्रांतिकारियों की टीम का नेतृत्व संभाला जो कि कुछ ही समय में पूरे हिंदुस्तान में हिन्दू-मुस्लिम एकता के साथ यह आन्दोलन अपने चरम पर जा पहुंचा।

अलीगढ़ में एक और जामिया

जामिया की आधारशिला 29 अक्टूबर 1920 को अलीगढ में रखी गई। शुरुआती दिनों में जामिया को कृष्णा आश्रम में चलाया गया। जामिया की आधारशिला की घोषणा सह भाषण अलीगढ़ के जामा मस्जिद में मौलाना महमुदुल हसन की उपस्थिति में (मौलाना महमुदुल हसन के बीमार होने के कारण) उनके शिष्य मौलाना शब्बीर उस्मानी ने पढ़ी।

शुरू में जामिया अलीगढ़ में चार कमरों में शुरू की गई जो कि बहुत कम थे। मेरठ के नवाब इस्माइल खान, जो कि जामिया कमेटी के सदस्य भी रहे और देश के कई नवाबों और ज़मींदारों की मदद से जामिया को बीस टेंट भेजे गए, जिसको लाल दिग्गी मैदान में लगाया गया, जो कि शुरुआती समय में जामिया में पढ़ाई के लिए इस्तेमाल किया गया।

जामिया को एक बेहतर शिक्षण संस्थान बनाने के प्रयास

जामिया, अलीगढ़ में पांच साल उसके संस्थापकों द्वारा बहुत ही उर्जा और लगन के साथ चलाई गई। हाकिम अजमल खान जो कि एक राष्ट्रवादी स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें जामिया का पहला चांसलर नियुक्त किया गया। मौलाना मोहम्मद अली जामिया के संस्थापक सदस्यों में रहे। उन्हें जामिया का पहला कुलपति नियुक्त किया गया। जामिया ने अपना पहला दीक्षांत समारोह 1921 में मनाया। जामिया ने राष्ट्रवादी उद्देश्य के आधार को मानते हुए अपना दरवाजा सभी के लिए खोला हुआ था।

मोहमम्द अली ने अपने शुरू के तीन साल जामिया का पाठ्यक्रम बनाने में दिए ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सके। शिक्षकों द्वारा बच्चों के बीच व्याख्यान दिए जाते थे, जिनमें इतिहास, अर्थशास्त्र, भाषा और साहित्य की पढाई करवाई जाती थी। मीर तकी मीर, मिर्ज़ा सौद और अल्लामा इकबाल के काम ज़्यादा हावी रहते थे। मोहम्मद अली खुद प्रतिदिन कुछ घंटे बच्चों के बीच बिताया करते थे। वो चाहते थे कि बच्चे किताबी तालीम से ज़्यादा तथ्यात्मक और सामाजिक सोहार्द से जुड़ी शिक्षा प्राप्त करें।

करोल बाग में जामिया

साल 1925 की बात है ग्रीष्म अवकाश के दौरान जामिया को अलीगढ़ से दिल्ली के करोल बाग में स्थानांतरित किया गया, जहां जामिया पिली कोठी, तालीमी मरकज़, मकतब जामिया, क़ुतुब खाना, इत्यादि नामक भवनों में चली।

1925 आते-आते जामिया के सामने यह चुनौती आ गई थी कि जामिया आगे चल पाएगी या नहीं। इसी को लेकर जामिया कमेटी की मीटिंग 28 जनवरी 1925 को पुरानी दिल्ली में स्थित हाकिम अजमल खान के पैत्रिक निवास शरीफ़ मंजिल में रखी गई। जामिया कमेटी के सदस्यों के साथ एक लम्बी और तीखी बहस हुई और सहमती असहमति के आधार पर जामिया जीत गई और यह फैसला किया गया कि जामिया करोल बाग में स्थानांतरित कर चलाई जाएगी।

गाँधी जी ने जामिया को एक नई ज़िन्दगी दी

उसी मीटिंग में महात्मा गाँधी भी मौजूद थे और वो सीधे-सीधे जामिया के पक्ष में खड़े थे। उन्होंने वहां मौजूद सभी सदस्यों को भरोसा दिलाया कि जामिया वैसे ही चलेगी जैसे चल रही है। उन्होंने कहा अगर पैसे की ज़रूरत पड़ी और मुझे जामिया के लिए भीख भी मांगनी पड़ी तो मांगूगा।

गाँधी जी ने जामिया को चलाने के लिए हर वो प्रयास किया जो उनसे हो सका। साथ-ही-साथ उद्योगपति जमनालाल बजाज, लेखक महादेव देसाई जैसे कई लोग जामिया को आर्थिक मदद देने को आगे आए।

महात्मा गाँधी का जामिया मिल्लिया इस्लामिया से बहुत ज़्यादा लगाव था। उनके पोते रसिकलाल गाँधी का जामिया स्कूल में नामांकन हुआ था। दुर्भाग्यवश वो किसी बीमारी के कारण ज़्यादा दिन तक जीवित नहीं रह सके। 1935 में गाँधी जी ने जामिया का दौरा किया और उन्होंने कहा कि मेरी ख्वाहिश थी कि मैं अपने पोते को जामिया के बच्चों के साथ देख सकूं। उन्होंने हिन्दू महासभा द्वारा लगाए आरोपों को खारिज़ किया कि जामिया में हिन्दू बच्चे और शिक्षक नहीं आ सकते।

डॉ. ज़ाकिर हुसैन ने जामिया को संवारा

मार्च 1926 में डॉ. जाकिर हुसैन डॉक्टरेट की उपाधि लेकर भारत लौटे और जामिया के तीसरे कुलपति के रूप में योगदान लिया। जून 1926 में डॉ.जाकिर हुसैन और मोहम्मद मुजीब, गाँधी जी से मिलने साबरमती आश्रम गए और वहां नई तालीम के बारे में विस्तार से चर्चा की।

डॉ. जाकिर हुसैन और जामिया के चांसलर हाकिम अजमल खान के दौर में जामिया एक नई और व्यवस्थित विश्वविद्यालय के रूप में ख्याति बना पाई। मौजूदा समय में जामिया जिस रूप में दिख रही है, उसका श्रेय डॉ. ज़ाकिर हुसैन को जाता है। हालांकि जामिया को जामिया बनाने में सब लोगों ने अपने-अपने समय मौजूदगी दर्ज़ कराई है ।

ओखला में जामिया

जामिया का तीसरा और आखरी स्थानान्तरण दिल्ली के ही ओखला में किया गया। 01 मार्च 1935 को ओखला में जामिया के पहले भवन मदरसा इब्तदाई के निर्माण के लिए आधारशिला जामिया प्राइमरी स्कूल के सबसे कम उम्र के छात्र अब्दुल अजीज़ ने रखी।

शुरुआत में यहां तीन भवनों का निर्माण किया गया, जिसको मदरसा इब्तदाई, मदरसा सांवि एवं उस्तादों का मदरसा के नामों से जाना जाता है। 1936 में ही जामिया के दूसरे कुलपति डॉ. मुख़्तार अहमद अंसारी दुनिया से रुखसत हो गए। जामिया के लिए यह बहुत ही दर्द भरा समय रहा। अब्दुल माजिद ख्वाजा जामिया के तीसरे कुलपति बनाए गए।

दन्त चिकित्सालय कॉलेज जामिया मिल्लिया इस्लामिया

जामिया ने अपने देश का बंटवारा भी देखा और गुस्सा भी झेला। सन् 1947 की बात है जब हिंदुस्तान आज़ादी की नई सुबह देख रहा था। तभी देश के कई हिस्सों में आग लगी हुई थी। उसी आग का शिकार करोल बाग में  स्थित जामिया की वो इमारतें भी हो गईं, जिनमें संस्थान 1925 से चल रहा था। आज़ादी के बाद सन् 1948 में जामिया को पूर्ण रूप से ओखला में ही स्थापित कर दिया गया।

आज़ादी के बाद सरहद के दोनों तरफ कत्लेआम हो रहा था। इंसानों को इंसान नहीं समझा जा रहा था। सिर्फ और सिर्फ धर्मों के नाम से यह तय किया जा रहा था कि किसकी हत्या करनी है और किसकी नहीं। उसी समय दिल्ली में भी वही दृश्य था। तब जामिया के बच्चों और शिक्षकों द्वारा सरहद पार से आए लोगों और विस्थापितों के कैम्प में जो कि पुराना किला, कालका जी और लाल किले में बनाया गया था, वहां सेवा और राहत सामग्री उपलब्ध करवाने में दिन रत लगे थे ।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया केंद्रीय विश्वविद्यालय, नई दिल्ली

जामिया को सन् 1962 में डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्ज़ा प्रदान किया गया। सन् 1988 जामिया के इतिहास में एक स्वर्णिम पल आया जब जामिया मिल्लिया इस्लामिया को पूर्ण रूप से एक केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्ज़ा प्रदान किया गया, जिसका श्रेय जामिया के कुलपति रहे प्रो.अली अशरफ को जाता है। उनके ही अथक प्रयासों का नतीजा रहा कि जामिया एक केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्ज़ा प्राप्त कर सका।

जामिया आज जिस मुकाम पर दिख रहा है, इसमें मौलाना मुहम्मद अली जौहर, मौलाना अबुल कलाम आजाद, महात्मा गाँधी, हाकिम अजमल खान, मौलाना महमूद हसन, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, डॉ. मुख़्तार अहमद अंसारी, अब्दुल मजीद ख्वाजा जैसे संस्थापक सदस्यों और ना जाने कितने गुमनाम लोगों के नामों एवं उनके योगदानों नहीं भुलाया जा सकता।

मॉस्को बेस्ड राउंड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में दुनियाभर के 1100 विश्वविद्यालय में जामिया ने 538 वां रैंक हासिल किया। टॉप 25 भारतीय केंद्रीय विश्विद्यालयों में जामिया को तीसरा रैंक प्राप्त हुआ। NIRF के रैंकिंग में जामिया मिल्लिया इस्लामिया को पहले पायदान पर जगह मिली। वहीं, अलग-अलग कई रैंकिंग में जामिया ने अपनी जगह बनाने में सफलता पाई।

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