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“डिप्रेशन से बाहर निकलने का मेरा तरीका, जो आपकी मदद कर सकता है”

Depressed man

डिप्रेशन, यह नाम सुनकर या पढ़कर एक ऐसे‌ शख्स का चित्र मन में बनता है, जो बहुत उदास है। हज़ारों की भीड़ में होकर भी खोया हुआ है, जो ठीक से खाना नहीं खाता! यहां तक कि बोल‌ना भी कम कर दिया है।

वह लोगों से बचकर निकलता है, सामूहिक बोल-चाल से दूर-दूर रहने लगता है। वह अपना आत्मविश्वास खो चुका है, जिस कारण लोगों के सामने डरा और सहमा सा रहता है। अपने आप को कहीं-ना-कहीं चोट पहुंचाता है, बहुत चिंतित रहता है। कभी-कभी अजीबो गरीब बातें करता है, जिसमें मरने के ख्याल जैसी बात का ज़िक्र करता है।

अंदर से टूट चुका है और पागलों सा फेसबुक पर पोस्ट डालकर अपनी संवेदनाएं व्यक्त करता है।

आखिर डिप्रेशन है क्या?

अगर जिस किसी को भी ऊपर कही किसी भी बात पर उसके मन में उसी की छवि बनती है, तो इसका मतलब उसे भी ज़िंदगी के किसी मोड़ पर डिप्रेशन बीमारी का शिकार होना पड़ा है।

क्या करें डिप्रेशन चीज़ ही ऐसी है! जिंदगी में अच्छा ना कर पाने का डिप्रेशन, जिंदगी में किसी के छोड़ जाने का डिप्रेशन, लोगों से ताने खाने का डिप्रेशन या माँ-बाप की उम्मीदों पर खड़ा ना उतर पाने का डिप्रेशन आदि।

ये डिप्रेशन शब्द तो एक है मगर उसकी वजहें बहुत सारी हैं। हम चाहकर भी इसकी चपेट से बच नहीं पाते। WHO कहता है कि डिप्रेशन एक मेंटल डिसॉर्डर है, जिसके मरीजों की संख्या पूरी दुनिया‌ में 300 मिलियन है।

इसकी चपेट में हर एक उम्र का शख्स है। मतलब एक बच्चे से लेकर जवान और बूढ़े तक, जो हैरान और परेशान करने वाली बात है। डिप्रेशन ही वजह है कि आज लोगों में बीमारियों की संख्या भी बढ़ने लगी है और जब डिप्रेशन चरम पर पहुंच जाता है, तो यह हर एक केस में सुसाइड का सबसे बड़ा कारण बन जाता है। सालभर में 8 लाख लोग सुसाइड करते हैं, जिनमें 15 से 29 वर्ष तक की उम्र के बच्चों की संख्या बहुत अधिक है।

क्या आपको यह पढ़कर हैरानी हुई?

सच कहूं तो मुझे नहीं हुई, क्योंकि 15 से 29 वर्ष तक की उम्र वह होती है, जब हमें कहा जाता है कि तुम्हें कुछ बनना है, कुछ करना है, तुम्हें कैसे चलना है, कैसे रहना है, कैसे दिखना है, कैसे बोलना है, क्या नहीं बोलना है, क्या नहीं करना है, क्या नहीं खाना है? जात-पात, धर्म, प्यार, समाज, लोग, हैसियत, औकात, तमीज़, इज़्जत, खानदान, मान-मर्यादा, कुल, वंश, सपने, बोझ आदि।

इतना सब कुछ हम पैदा होते ही सुनना शुरू कर देते हैं और जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे ही मन के अंदर का बच्चा, परिवार और समाज की नज़र में अधेड़ हो चुके पुरुष विचार के बीच संघर्ष होने लगता है।

यही टकराव है कि हम फिर खुद के ही दुश्मन बन जाते हैं और धीरे-धीरे डिप्रेशन में जाने लगते हैं। अगर कुछ मन अवसाद के इस जहर से खुद को बचा लेता है, तो वो प्यार में पड़कर या धोखा खाकर इससे अछूता नहीं रह जाता।

तो देखा आपने डिप्रेशन के कई कारण हैं, कई वजहें हैं। अगर आप सोच रहे होंगे कि यह सब मुझे कैसे पता? तो आइए बताता हूं। वैसे एक लेखक के तौर पर खुद को ही अवसाद से ग्रस्त बता देना अच्छा तो नहीं लग रहा मगर क्या करें समाज के एक तबके को अगर आपकी बात सुनानी है, तो उन्हें खुद की कहानी से जोड़ना ही पड़ेगा।

मेरी कहानी

मेरी कहा‌नी बस इतनी है कि मैंने ज़िंदगी में बहुत कुछ हासिल करने की कोशिश की है, जिसके कई हिस्सों में निराशा भी मिली है। निराशा का दौर कुछ ऐसा था कि जिसे सबसे ज़्यादा मोहब्बत की, उससे भी ब्रेकअप हो गया है।

कहा जाए तो सोने पर सुहागा हो गया और निराशा मानो साया बनकर मंडराने लगी। ना मन कहीं लगता ना, किसी से बात करने का मन करता‌। वो दौर कुछ ऐसा था कि सोशल मीडिया, जो अरबों लोगों से भरा पड़ा है, वो भी काटने को दौड़ता था।

इस तनाव में 2 से 3 हज़ार दोस्तों से भरी पड़ी फेसबुक आईडी को डिलीट कर दिया। मतलब मन धीरे-धीरे एक सुनसान राह पर निकलने को चल पड़ा था। वो बार-बार कोशिश करता मगर मैं एक बेहतर कल की उम्मीद में फिर आंखें मूंद लेता। मैं पूरी तरह से खुद में था।

इत‌ना सब करने के बाद एक ख्याल जो मेरे मन में कभी नहीं आया, वो था मर जाने का, क्योंकि मैं उसी वक्त लोगों से दूर भागना तो चाहता था लेकिन मुझे उनकी बहुत ज़रूरत थी।‌ इस मामले में भी मैं बेकार निकला, क्योंकि यह सच है कि लोगों के पास ज़रा सा भी आपके ख्याल सुनने का या हाल जानने का वक्त नहीं होता है, क्योंकि उन्हें आपको सुनना ही नहीं है।

मैं इस बात से नाराज़गी भी जाहिर नहीं करता, क्योंकि कभी-कभी हम किन्हीं लोगों के इतने पास होते हैं तब भी अपना हाल बताने का मन या हिम्मत नहीं करते। मैंने जिंदगी के इस छोटे से हिस्से में बहुत कुछ तो नहीं सीखा मगर‌ इतना ज़रूर सीखा है कि हमें खुद का नज़रअंदाज़ होना कभी अच्छा नहीं लगता और खासकर उस वक्त जब आपको लोगों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत हो। तो फिर सवाल उठता है कि इस डिप्रेशन से बाहर कैंसे निकलें? और यही सवाल बार-बार खुद से करने की ज़रूरत भी है?

डिप्रेशन से बाहर कैसे निकलें?

इस डिप्रेशन से बाहर निकल‌ने के लिए फिर से मेरी कहानी की ओर जाते हैं। जहां मैंने सबसे बात कर‌ना बंद कर दिया और लोगों से दूरी बना ली। इसका यह मतलब नहीं था कि मैं बात करना नहीं चाहता था, बल्कि इसका मतलब था कि मैं उन लोगों से बात करूं जिनसे बात करके अपनी‌ कहानी कह सकूं।

इसी खोज में बहुत सारे डेटिंग एप्प पर गया इस उम्मीद में कि शायद कोई मिले जो मुझे समझ पाए मगर एक भी एप्प काम नहीं आई। फिर जाकर मुझे लिखने वाले बहुत से एप्प मिले, जैसे- Your Quote, Nojoto, Mirake और मैंने उन सबको इंसटॉल कर लिया।

मैं हमेशा से लिखता था मगर उस वक्त मनोदशा कुछ और ही थी। मैं धीरे-धीरे मन की बात शायरी या कविता से करने लगा और लोग भी धीरे-धीरे जुड़ने लगे। पहली बार किसी जगह मुझे लगा कि मुझे यहां किसी को फॉलो नहीं करना, बल्कि अपना गुबार निकालना है मगर मैं इसमें भी नाकामयाब रहा।

क्योंकि उस प्लेटफॉर्म पर इतने लिख‌ने वाले थे कि उनके बीच मुझे एक अवसादग्रस्त मिल ही गया, उसके विचार मुझसे भी भयानक थे और मन मुझसे भी कहीं विचलित। कहते हैं कि एक अवसादी मन ही दूसरे अवसादी मन की मनोदशा जानता है। यही कारण है कि मैं उसकी पीड़ा जान गया।

मैंने अंजान लोगों से बात ना करने की ठानी थी और जो खुद अवसादग्रस्त था उसे ही समझाने और जीवन का ज्ञा‌न देने लगा। ऐसे ही मैं धीरे-धीरे लोगों से घुलने लगा, जिसमें लोग दिल टूट जाने की कहानी से लेकर अपने कैरियर के उतार- चढ़ावों की बात मुझसे करने लगे और मैं जो खुद बीमार था उनकी नज़र में एक अच्छा इंसान बन गया।

जब मेरा मन अलग ही दिशा की ओर बढ़ चला

यह सब करते करते मेरा मन कुछ अलग ही दिशा में जाने लगा यह सोचकर कि हम कितने‌ पागल हैं, जो जिंदगी को ज़िंदगी ना समझकर बोझ समझते हैं। प्यार को प्यार ना समझकर अभिशाप समझते हैं और इंसानों को इंसान ना समझकर भगवान समझते हैं, जिनके बिना जी‌ना बहुत मुश्किल लगता है।

मुझे नहीं पता यह कहानी किसको समझ आई मगर इस कहानी में छुपे राज़ को जो समझ गया, वो ज़िंदगी में चाहकर भी डिप्रेशन में नहीं जा सकता। कोई ज़रूरी नहीं कि कोई आपको समझे, बल्कि आप कोशिश करो कि किसी के उलझन में खुद की गुत्थी सुलझाते चले जाएं, जैसा मैंने किया।

मेरी‌ कहानी‌ में मैंने लोगों को सुना और आज तक वही करता आ रहा हूं। ना जाने कितनी कहानियां लोगों की मैंने सुनी हैं, ना जाने कितने किस्से हैं, जो उन्होंने मेरे साथ शेयर किए हैं और ना जाने ऐसे कितने वाकिया हैं, जहां उन्होंने सबसे पहले मुझे ही बताया है। जिसे मैंने एक बहुत ही खूबसूरत कहानी की तरह सुना है और उन्हें एक बहुत अच्छा कहानीकार माना है।

जिसके बाद उनके मन, उनके बोझ को लेकर एक नहीं, दो दिमाग साझा हो जाते हैं, जो उसी कल्पना को सोचने लगते हैं जिससे कहानीकार गुज़र रहा है और कहानी के अंत में इसी कहानी को एक अच्छा मोड़ देना पड़ता है। यही कारण है  कि मुझे कहानियों से इतना लगाव है, क्योंकि इसके आखिरी हिस्से में अक्सर एक खूबसूरत मोड़ आ जाता है, जिसके होने पर कहानी और बेहतरीन हो जाती है।

हमें भी असल जिंदगी‌ में यही कोशिश करनी है कि एक कहानी को आखिरी में बस एक खूबसूरत मोड़ देना है, जिससे डिप्रेशन का ‘D’ भी आपके मन‌ में नहीं आएगा मगर कभी अगर भूले-भटके ये ‘D’ आपके ज़हन में आए तो बस इस ब्लॉग पर आकर इस ‘D’ के साथ शेयर करना है, क्योंकि कहते हैं ‘Sharing is Caring’ और केयर तो करनी पड़ेगी आपकी, क्योंकि आप एक बेहतरीन पाठक जो हैं।

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