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मिलिए त्रिपुरा के आदिवासी चित्रकार और मूर्तिकार रोहित देबबर्मा से

त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में रहते हैं रोहित देबबर्मा, एक शख्सियत जिन्होंने पिछले कुछ सालों में बहुत नाम कमाया है। रोहित एक अद्भुत मूर्तिकार और चित्रकार हैं। इन्होंने कई प्रसिद्ध हस्तियों के चित्र के साथ-साथ मूर्तियां बनाई हैं।

रोहित ने त्रिपुरा के पूर्व राजा महाराजा वीर विक्रम किशोर माणिक्य की भी एक मूर्ति बनाई है और यह मूर्ति इन्होंने वर्तमान राजा श्री प्रद्योत माणिक्य को भेंट की। तब से रोहित की कला त्रिपुरा में प्रसिद्ध हो गई। मुझे भी रोहित के बारे में टीवी से ही जानकारी मिली।

रोहित ने पूर्व राजा महाराजा वीर विक्रम किशोर माणिक्य की मूर्ति वर्तमान राजा श्री प्रद्योत माणिक्य को भेंट दी।

आज कोरोना के काल में रोहित अगरतला में कॉलेज खुलने का इंतज़ार कर रहे हैं। मैं उनसे अगरतला में मिली और उनकी कहानी जानी। 

प्रश्न: क्या आप अपने बारे में कुछ बता सकते है?

रोहित: मुझे बचपन से ही चित्रकला और मूर्तिकला में दिलचस्पी थी। पिछले साल मैंने खुमुलवंग की एक अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल से माध्यमिक पास किया। इस साल मैं अगरतला के आर्ट कॉलेज में एडमिशन लेने आया हूं। कोरोना के कारण एडमिशन की प्रक्रिया रुक गई है। यहां सभी कॉलेज और स्कूल बंद हैं। अब मैं कॉलेज के खुलने का इंतज़ार कर रहा हूं, ताकि मैं प्रवेश ले सकूं।

प्रश्न: आपने किस उम्र से चित्रकला और मूर्तिकला में रुचि ली?

रोहित: स्कूल जाने से पहले ही मुझे पेंटिंग में दिलचस्पी थी। मैं चित्रकला का आनंद लेता था। कक्षा 1 और 2 में मुझे पता चला कि जिस कला से मुझे दिलचस्पी है, उसे चित्रकला कहा जाता है। उस उम्र में मैंने शिल्पकला के बारे में नहीं जाना।

पेंटिंग बनाते हुए रोहित।

कुछ वर्षों बाद यह रुचि विकसित हुई। उससे पहले मैं चित्रकला, स्केचिंग और पेंटिंग किया करता था। फिर धीरे-धीरे पता चला कि जो लकड़ी, मिट्टी और पत्थर पर नक्काशी की जाती है और मूर्ति बनाई जाती है, उसको स्कल्पचर कहा जाता है।

प्रश्न: आपने मूर्तिकला पर हाथ आज़माने का फैसला कब लिया? क्या आपके पास कोई शिक्षक था?

रोहित: मैंने मूर्ति बनाना किसी से नहीं सिखा। मेरे पास कोई शिक्षक नहीं था। मैंने खुद से ही मूर्ति बनाना सीखा है। मैं बचपन से मूर्ति बनाता हूं, वह चाहे मिट्टी की हो या लकड़ी की हो। मूर्ति बनाने के साथ-साथ मैं हास्य चित्र (कैरीकेचर) भी बनाने लगा।

टेराकोटा से बनाई हुई कछुए की मूर्ति।

मेरे आस-पास के लोगों को देखकर उनके चित्र बनाना मुझे अच्छा लगता है। मैंने स्वतंत्रता सेनानी की मूर्ति और त्रिपुरा के पूर्व महाराजा श्री वीर विक्रम किशोर माणिक्य देबबर्मा की भी मूर्ति बनाई है।  

प्रश्न: आप तो प्रसिद्ध कलाकार बन चुके हैं। टीवी पर, न्यूज़ पर, सभी जगह आपकी चर्चा है। अब आपका अगला कदम क्या होगा?

रोहित: मैं कोई बड़ा कलाकार नहीं हूं, मैं अपने आप को अभी भी विद्यार्थी समझता हूं। मुझे अभी भी इस कला रूप के बारे में बहुत कुछ सीखना है। मुझे मेरी कला में और समाज में बहुत सारी उन्नति और सुधार लाना है।

रोहित ने सौरिश देबबर्मा का, जो ठाकुर परिवार के सदस्य हैं, स्केच बनाया और उन्हें भेंट किया।

रोहित की कला अद्भुत है और त्रिपुरा को उन पर गर्व है। रोहित जैसे ऐसे कई आदिवासी कलाकार हैं, चाहे वे गायक हों, अभिनेता हों या चित्रकार हों, उनके बारे में हमें कम ही जानकारी होती है।

त्रिपुरा के आदिवासियों में कला कूट-कूटकर भरी हुई है। हमें ऐसे कलाकारों को ढूंढकर उन्हें और उनके काम को बढ़ावा देना चाहिए। मैं चाहती हूं रोहित जैसे आदिवासी कलाकारों के बारे में पूरा देश और पूरी दुनिया जाने।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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