Site icon Youth Ki Awaaz

“पति से पिटाई, यह तो हमारा रोज़ का है दीदी”

सुनने में यह बात कितनी सरल लगती है और हम सोचते हैं कि रोज़मर्रा की किसी बात का ज़िक्र हो रहा होगा। हर दिन कोई पति अपनी पत्नी पर हाथ उठा रहा है। सालों से यह देखती हुई पत्नियां अब इसे अपने जीवन का हिस्सा मान चुकी हैं। शायद उन्होंने अपनी शादी से पहले भी यही देखा था।

आज हम नारीवाद और नारीशक्ति की बात तो करते हैं लेकिन समाज का एक तबका इस आंदोलन से आज भी अनभिज्ञ है। हम सभ्य समाज की बात कर रहे हैं लेकिन समाज के उस हिस्से पर उतना ध्यान नहीं दे रहे हैं, जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए मध्यम और उच्चवर्ग पर निर्भर है। 

घर में काम करने वाली बाई और मज़दूरी करती औरत, इस तरह की कई महिलाएं हैं, जो काम करके अपना घर चला रही हैं। वह पैसे तो कमा लेती हैं लेकिन उन्हें वह सम्मान और पद नहीं मिलता जिसकी वह हकदार हैं।

ऐसी महिलाओं के पति या तो इनके साथ बाहर काम करते हैं या कुछ नहीं करते। घर में रहकर भी ना तो घर के काम में हाथ बटाते  हैं ना ही अपना फर्ज़ निभाते हैं। नशे में लिप्त कई पुरुष अक्सर अपनी पत्नियों के साथ मारपीट करते हैं। पत्नियां पैसा भी कमा कर लाती हैं और घर में मार भी खाती हैं।

खदीजा की कहानी 

फोटो प्रतीकात्मक है।

कहानी है 15 वर्षीया खादीजा की, जिसे जब शादी का मतलब भी नहीं पता था, तब उसकी शादी कर दी गई थी। बचपन में ही अपने पिता को खो चुकी खादीजा मालदा, पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं।

वह सातवीं कक्षा में ही थीं, जब उसकी शादी तय हो गई और वह आगे नहीं पढ़ पाईं। पति उससे उम्र में काफी बड़ा था और नौकरी नहीं करता था। शादी के बाद खादीजा काम की तलाश में अपने पति के साथ बुआ के पास नोएडा आ गई। उसकी बुआ पास के ही एक सोसाइटी में घर का काम करती थी और उसने खादीजा को भी काम पर लगवा दिया। खादीजा घर में काम करने जाती तो उसका पति काम के दौरान उसे कई बार फोन करता और पूछता कि वह कहां है? 

वह बार-बार बोलती कि काम कर रही है लेकिन वह तब भी फोन करता रहता। खादीजा ना ठीक से काम कर पाती और ना ही काम के बाद समय निकाल पाती थी। वह फोन ना उठाने पर उसे डांटता था। उसके घर लौटने के बाद उसके फोन के कॉल लॉग चेक करता और अनजान नंबर दिखने पर डांटता था। 

कुछ दिन तक ऐसे ही चलता रहा। फिर धीरे-धीरे पति का फोन कम आने लगा और खादीजा काम निपटाकर अपनी कुछ सहेलियों के साथ बैठती और बातें करती। अपने दोस्त-रिश्तेदारों से फोन पर बातें करती। इस कारण वह घर देर से पहुंचने लगी।

एक दिन की बात है, खादीजा काम पर नहीं आई। उसे फोन करने पर हर बार दूसरी तरफ से कॉल काट दी जाती। सबने समझा कि खादीजा ने बिन बताए छुट्टी ले ली है इसलिए कॉल काट दे रही है मगर ऐसा नहीं था।

कुछ दिन बाद खादीजा अपार्टमेंट के पीछे अपनी एक सहेली के साथ बैठी मिली। उसका चेहरा लाल और सूजा हुआ था। आंखें लाल थी और उसका शरीर कांप रहा था। पूछने पर वह कुछ नहीं बोली और रोने लगी। साथ बैठी उसकी सहेली ने बताया कि इसे इसके पति ने मारा है लेकिन क्यों मारा यह किसी ने नहीं बताया।

उसका चोटिल चेहरा और लगातार बहते आंसू उसकी मजबूरी बयान कर रहे थे। साथ बैठी उसकी सहेली ने कहा,

हमारा तो रोज़ का है दीदी, पैसा भी कमा के देते हैं और मार भी खाते हैं। घर में भी काम करते हैं, बाहर भी काम करते हैं, देर से पहुंचते हैं तो मार खाते हैं। पति शराब के नशे में रहता है, जुआ में हार के आता है तब भी मारता है। उसके मन का ना करो तो भी हाथ उठता है।

खादीजा की तरह ही ऐसी कई लड़कियां और महिलाएं हैं, जो रोज शोषित हो रही हैं। उन्हें डर है कि पति छोड़ देगा तो वह कहां जाएंगी परिवार भी उनका साथ नहीं देगा। इसी कारण अगर पति उसके सामने दूसरी शादी भी कर ले तो वह उसे छोड़कर नहीं जाती।

प्रताड़ना, शोषण और नारी के खिलाफ हिंसा समाज का ऐसा कलंक है, जो अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसे जीवन का अंश मानना और ऐसा होने पर चुप रह जाना गलत है।

कानूनी प्रावधान होने के बावजूद ऐसी घटनाएं कम नहीं हो रही हैं। कानून सबको बराबर का दर्ज़ा तो देता है मगर यह लोग कानून का सहारा लेने से कतराते हैं। इसके खिलाफ आवाज़ उठाने और सख्त कदम उठाने के लिए कानून से पहले संस्कृति और समाज का सहारा होना चाहिए। यह संस्कृति और समाज के कायदे-कानून ही तो हैं जो ऐसी महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकते हैं। 

यदि परिवार और समाज तिरस्कृत महिलाओं और पीड़िताओं को सहारा दे और उन्हें स्थान दे तो ऐसी महिलाएं भी सशक्त महसूस करेंगी और फिर इन्हें अपनी चोट को साड़ी और दुपट्टे से छुपाना नहीं पड़ेगा। फिर शायद पति की झूठी इज्ज़त बनाए रखने और उसकी मार से बचने के लिए महिलाओं को चुप नहीं रहना पड़ेगा।

Exit mobile version